As I start my blog of poetry, I start with one of the most sensitive topics in the world, man and woman. The concept that men are from Mars and women are from Venus is a very good concept and that is what has been marked in this poem of mine. As I start my new blog of poetry this is my tribute to that concept.
कुछ इस तरह हुआ है
जहाँ का बटवारा
यह ज़मीन हैं मेरा आशियाँ
और वो ज़मीन हैं तुम्हारा |
मैं तो मंगल का पहरेदार हूँ और तू परी है शुक्र की
साथ हम रहते है इस जहाँ में तो बात है फ़िक्र की |
नाज़ुक है यह अहम् मेरा .......चुभती हैं क्यों बातें तुम्हारी
मैं मंगल का पहरेदार और तू है शुक्र की परी ............
क्यों मिलती नहीं कभी यह राहें
होठ तो कहते हैं बहुत कुछ
पर फिर भी बुलाती नहीं है बाहें |
साथ ये क्यों होता है क्यों इस जहाँ पर भारी
मैं मंगल का पहरेदार और तू शुक्र की परी ...........
कहाँ किसी मुख ने की जीवन नाम चलने का है
साथ साथ न सही पर प्यार नाम मिलने का है
कुछ दूरियन तुम करो तय और कुछ मैं करू
तुम्हारे आने से पहले तुम्हारी करीबी से क्यों डरू
क्यों हर पल मुझे उलझाती है हर उलझन तुम्हारी
मैं मंगल का पहरेदार और तू शुक्र की परी ...........
तुम्हारे ज़हन में जो आता है वो मुझे क्यों भाते नहीं
मेरे हर काम का सलीका तुम्हे रास आते नहीं |
तुम्हारी हर बात का मैं पलट के क्यों देता हूँ जवाब?
मेरे हर भूल का तुम बखूबी रखती हो हिसाब |
मेरी हर बात हैं गलत और क्यों हैं सही हर बात तुम्हारी
मैं मंगल का पहरेदार और तू शुक्र की परी ...........
क्यों फिर भी अधुरा हैं मेरा जहाँ तुम्हारे बिना?
तुम नहीं तो फिर क्यों है बेकार मेरा यूँ जीना?
साथ तुम्हारा मैं क्यूँ चाहता हूँ ?
तुमसे आज मैं ये कहता हूँ
मीठा मुझे फिर भी लगता है तुम्हारा हर वार ;
अजीब हैं पर शायद .....इसी को कहते है प्यार
समझने में तुझे अब शायद बीत जायेगी ये उम्र हमारी
आखिर.... मैं हूँ मंगल का पहरेदार और तू है शुक्र की परी .........
Love is a journey and the essence of every journey is in the companionship. So live together and stay together.
Kalyan.
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