Sunday, June 26, 2011

बचपन का व्यापार (The Business of Childhood)

As we are taking longer strides towards the development of our country, as our country is taking strong measures to become a "Developed" country from a developing entity, a big problem of Child-Labor looms our future. There is a saying that a child is not born but rather gives birth to many relationships. It gives birth to a father, a mother many acquaintances and most importantly it gives birth to a hope. A hope for a better future. It gives everybody a second chance of living their lives or rather shaping their lives. However, it becomes really nasty when childhood is actually forced to do certain work prematurely, which should be kept for only the mature class.

The bane of child-labor has not been totally eradicated, rather it is on the increase day by day. Though there have been measures to control this and also making this a criminal offence, still under the supervision of government itself there are many projects that are involved in this dirty work of child labor. Our country, which we want to make an example in front of the whole world is indeed setting new examples of course in the wrong directions by the means of child labor.



हिन्दुस्तान की अवाम में
तरक्की का जोश हैं ....
उस जोश के पीछे छुपा
कहीं बचपन खामोश है .....

संसद में चलता है जब
चर्चा भारत निर्माण का
भारत के ही कोने में कहीं
होता हनन सन्मान का

होता है जब भी उन्नती के नाम पर
हर गली कुचे में ...कोलाहल ....
पीता है तभी वजूद देश का
तंत्र से परोसा हुआ हलाहल ....

पाठशाला छोड़ कर क्यों
नन्हे हाथ आज उठाते कुदाल
क्यों वोह आँखें ...सपने हो जिसमे
देखते अपने ही जीवन में भूचाल ...

नानी की कहानिया नहीं है अब
बस शोर है ज़ालिम शहर का ...
ए हिन्दुस्तानी ...हो जा खबरदार
इशारा है है आते कहर का .....

जब पिस्ता है बचपन यूँ
खानों में ...बंजर मैदानों में
तब सुरीले आवाज़ भी
आने से इनकार करते कानो में....

भावी भारत क़ैद है आज
बाल - श्रम के सलाखों में ..
फिर सुन्दर भारत का सपना
कहाँ आये उन नन्ही आँखों में ?

चीख है कहीं ...दर्दनाक सा
क़त्ल होते बचपन की आखरी गुहार
सोते इस प्रजातंत्र में कहीं
भविष्य को बचाने की पुकार.....



क्या कोई हैं जो सुनता है
बड-बोलो के बीच मासूम को?
क्या कोई फिर से देगा आग
बुझते हुए जूनून को ?

आज का "रामू" बनेगा जब कल
नामी कोई गुंडा मवाली .....
सब कोसेंगे उसे ही आखिर
कौन देगा इस तंत्र को गाली?

नन्हे हाथ सडको पर अब
धोते है गाडी के शीशे ....
कलम उन हाथो में देने को
करता है कौन कोशिशे?

पल पल लुटता बचपन आज
मांगता इस देश से हिसाब है
क्यों बोलू " भारत महान है "?
मांगता येही जवाब है .....

प्रगती के पथ पर चलता
कहीं "कमल" तो कहीं "हाथ" है ....
छाप किसी भी चिन्ह में लगे पर
बचपन को शेह और मात है ...

वोट देकर बुद्धीजीवी पीते चाय नन्हे हाथो से ...
फिर कहीं देते है गाली दबाके ज़बान दांतों से ...
" देखो देश का हाल बुरा है ...हाल बुरा है बच्चों का "
सच में देश में होता है क़त्ल आज केवल सच्चों का ...

बाल-श्रम थमता नहीं ...बस बढ़ता हैं जैसे पेट्रोल के दाम
फिर भी हम कहते है शान से की करते है नेता काम ....

इस श्राप को अब ख़त्म करो ....तोड़ो इसके हर एक तार
बढ़ना हो आगे तो बस आगे बढ़ो
बांध करो बचपन का व्यापार ......

पढ़े रामू ....पढ़े मुन्नी...बने सक्षम हर काम में
रहे आगे इस देश का नाम ...दुनिया के हर नाम में. ...

भविष्य अगर चाहिए सुहाना ...
गर चाहिए तुम्हे सुकून हमेशा
बांध करो इस बाल-श्रम को
चमकेगा देश का रेशा रेशा .....




बाल-श्रम एक अभिशाप है | इस अभिशाप का निदान और इससे मुक्ति अत्यंत आवश्यक है, अन्यथा इस देश का उज्वल भविष्य अधर में झूल जाएगा | यह केवल एक कविता नहीं पर एक गुहार है उन सभी बुद्धीजीवियों को जो यह मानते हैं कि इस श्राप से मुक्त होना इस देश के भविष्य के लिए ही नहीं परंतू वर्त्तमान के लिए भी उतना ही आवश्यक है | देश कि मस्तक की रेखाएं लिखने वाली यह संविधान में जहाँ प्रावधान हैं इस घिनोने अपराध को रोकने का, वहीँ इन प्रावधानों में कई शुक्ष्म छिद्र के कारण-वर्ष अपराधी दण्डित नहीं हो पाते |

हमारे न्याय-प्रणाली में या तो उचित नियोमो का अभाव है या फिर न्यायिक पदाधिकारियों में इच्छा-शक्ती कि कमी जिस कारण यह कुप्रथा अभी भी बे रोक-टोक चल रही हैं | निर्बल प्रजा और उससे भी ज्यादा दुर्बल प्रजातंत्र में बचपन का मोल शायद ही कोई लगा पाए परन्तु मुझे आशा है कि इस कविता को पढने व् समझने के पश्चात उस निर्बल एवं अभागे प्रजा में एक चेतना जागेगी कि वह स्वयं ही अपना भाग्य व् भविष्य दोनों परिवर्तीत करने के लिए सठीक एवं सबल पग उठाये और एक सुमुचे भारत का नव-निर्माण करें |

Monday, June 20, 2011

Ye Dilli ki Kahaani hai (Story of Delhi....)

When I saw the movie "Delhi-6", honestly, I did not like it. I couldn't actually understand that how can one person be so obsessed with a particular area and a small incident that happened in Delhi, long back. I never visited this city, with an Idea of exploring it. However since 2009, or so, by God's grace, and also my professions contribution, I have come to Delhi on and off. In the initial phases, the city appeared to be very warm and sharp. Probably never explored it in totality. But once you be in a city and come over and over to it for a long time you tend to actually know it not only from the angle of a tourist but also with an angle of a denizen.

The story of Delhi is really complex. However, everything that is complex is not bad. So as to say our body itself is a complex machinery and we cannot call it a bad creation. So is the case with Delhi. The beauty of this city lies in its complexity and the ability to appear new every time you come over here.

The poem below is dedicated to this wonderful city called Delhi, which is also the capital of India.




कभी शोर बरपाता शेहेर के बीच
तालाब का खामोश पानी है ...
इस शेहेर का क्या कहना .....
ये भारत की राजधानी है ......

दिलवालों के शेहेर में आकर
दिल लगाना फ़िज़ूल हैं
दिल के टुकड़े उड़ते है यूँही यहाँ
इन्हें पिरोहना फ़िज़ूल है ....

पराठो के सतह के नीचे
सत्ता का जोश पिसता हैं
लाल होठों के मुस्कराहट में
वफ़ा का खून रिसता हैं ....

कभी है लम्बी रुकावट यहाँ
तो कभी तेज़ रवानी है
यह शेहेर है दिल्ली .....
भारत की राजधानी है .......

"अमर-जवान" के आग के पीछे
होश खोती कई जवानी हैं ....
"राज-पथ" के सख्त सतह पर
चलती अब रानी है .......

मेट्रो रेल के बिना यहाँ
एक दिन भी मुश्किल जीना है
उस मेट्रो के स्टेशन तक लाते
बहता रिक्शा-वाले का पसीना हैं ...

मीटर से ओटो चलते नहीं
बस ज़बान की कीमत भारी है ....
कहीं जो कभी दो मीटर की धमकी
तो सर काटने की तैयारी हैं

चाट के कुछ चटपटे चटकारे
छोले भठूरे के बाद लम्बी डकार
इतने से भी दिल न भरे
तो सुनो कुल्फी वाले की पुकार ....

कनोट प्लेस में बैठे बैठे
नौजवान कोई ख्वाब पिरोता है
तो इनर आऊटर के चक्कर में
कोई नौसिखिया घबराता हैं ....

कभी हैं यहाँ हसीं के फव्वारे
तो कभी आँखों में पानी है .....
ये शेहेर है अजीब दिल्ली
ये भारत की राजधानी हैं ......

समंदर यहाँ नहीं है बस
यमुना का मीठा पानी है
यहाँ दिल में समंदर रखते है लोग
और बाकी अजीब कहानी है ....

कोई है यहाँ सांसाद का चाचा
तो कोई विधायक का भतीजा है
कोई तार जोड़े अपनी प्रधान मंत्री से
तो फिर राष्ट्रपती का जीजा है ......

दिल जहाँ हो महलों से बड़ा
और छोटी सी पेशानी है
ये शेहेर है दिलवालों की दिल्ली
ये भारत की राजधानी है .....

इस शेहेर मैं हस सुकून थोडा ....थोड़ी सी परेशानी है .....
राजधानी भारत की....ये दिल्ली की कहानी है ........

zindagee chalee yun hi (Life went on.....)

The most complex thing in this entire world is to actually analyze or introspect ones own life. Looking from various angles, one may be confused how one would like to actually shape up his/her life. There is a very famous dialogue from the film Anand; "Zindagee badee honee chaahiye lambee nahin ", life must be big and not long. It in a way sums up how one should look at life. The beauty of living is not in length but in its vastness and utility. However, in some cases life should just be allowed to flow, it should not be analyzed but enjoyed, not waiting for a conclusion but an inference that others can draw to actually shape their lives. The poem below of mine signifies these aspects of life...



ज़िंदगी चली यूँ साँसों के पटरी पर
के अब वक़्त का पता चलता नहीं
इस ज़िंदगी की मसरूफियत को अब
जीने का वक़्त मिलता नहीं.....

शायरों की आदत है यूँही
लफ़्ज़ों में दिल को घोल देते है
दौलत तो बस यादों की हैं
जिनसे हम ज़िंदगी को तोल देते है ....

कहता है कोई हमसे के
इतने बेताब क्यों है हम ?
हमे अब हसरत आसमान की है
उन्हें हम ये बोल देते हैं .......

दिल का धड़कना मजबूरी है
तो दिल को हम बनाते है ग़ुलाम
जो दिल धडके धडकनों के बिना
शायद उसी दिल को करते है सलाम

दिलजला मैं हूँ नहीं, आग इस दिल में प्यास की लगी हैं.....
जिस पल को ढूँढ रहा हूँ, उसकी तलाश में लगी है .....

शायद वोह पल कहीं यादों के पन्नो में खो गया है .....
की आज दिल भी करता है इशारे कुछ हो गया है.....

हवा का जो झोंका आता है
कहता है के आज होगी उम्मीदे पूरी
हवा को भी शायद कहीं
मेरे दिल को बेहलाना है ज़रूरी ......

पल पल उठता तूफ़ान जो
हसरतों को उडाता हैं
उन तुफानो के गिरफ्त में ही
हसरतों का अम्बार मिलता है .....

आज कहीं क़ैद है कुछ अरमान
दिलके सिसकते हुए कोने में ....
उन अरमानो को आज
आज़ादी का इकरार मिलता है .....

सोचता हूँ जब कहीं मैं
कि साँसों के तार क्यों बज रहे हैं
लगता हैं युहीं मुझे कि
कहीं दूर कहीं कई दुल्हन सज रहे हैं...

छुप के करते हैं इशारे
आँखों के रंगीन झरोखे से ....
वोह आँखें जो कभी
रहते थे हमसे रूखे-रूखे से....

सुनता हूँ मैं आहट तेरे
कहीं पास आने का ....
जैसे कोई महखाना सुनता शोर
छलकते पयमाने का .....

उन पयमानो में कुछ बूँदें हमारे नाम का रखना तू
ए ज़िंदगी इस खाकसार के लिए रंगीन शाम रखना तू ....

लालच मुझे तेरी लम्बाई का नहीं
हसरत मुझे तेरे ऊंचाई कि है .....
ए ज़िंदगी , फरेब के ताने बानो के बीच
तलाश मुझे तेरे सच्चाई कि है ......

Sunday, June 12, 2011

Badsoorat pyaar ( The ugly face of love)

As I wrote in the poem before that love may be beautiful or ugly, this poem is actually showing the ugly face of love. As there come deciet in relationships, they just fall appart. Deciet is not like a storm, rather it is like a termite, which actually eats you up from inside. A storm can be handled. One can actually duck down or seek shelter during storm but then when it is a "termite problem", it becomes rather diffucult to actually identify it in the first step and when the problem is revealed it is too late for anybody to respond or address it.
Deciet gives love that ugly face, that it sometimes deserves. If all love stories were rosy-dovy then there would not be any kind of uncertainity in any relationships, but then GOD makes the world a balanced place. So where there is the evolvement of love there also can be an element of deciet.




एक सफ़र जो कहीं हुआ
शुरू आज अधुरा है ...
के आज प्यार के इम्तेहान में
धोखे का मौका पूरा है ......

कहीं कहीं चर्चा आम हैं
इस दिल के टूटने का
तो फिर कहीं है एक शिकायत
एतबार के लुटने का ..

जब कहा था तुने के
प्यार तुझे है हर पल
तो शायद तेरे दिल से
झूठा इकरार हुआ था...
जब कहा था तुने के
तू भी रहा है जल
शायद वहेम मुझे हुआ
के तुम्हे प्यार हुआ था .......

प्यार की तेरी बदसूरती
मुझे कर गयी झंजोड़
कितनी आसानी से तुने
मेरे दिल को दिया तोड़ ..

इंतज़ार जो मैंने किया
क्या उस इंतज़ार का नहीं मोल
चाहता हु मैं की मैं राहू चुप
अब तू ही मुझे कुछ बोल ....

पल भर भी मैंने जिसे
आँखों से न किया ओझल
उस शक्स ने ही दिया
धोखा मुझे हर पल

गर प्यार है येही तो
प्यार की मुझे दरकार नहीं
की और भी हा ग़म मोहब्बत के सिवा
मैं प्यार के लिए बेक़रार नहीं ....

सारे जो बंधन तोड़े मैंने
वोह टूटे बंधन आज उड़ाते मज़ाक है
आग प्यार की लगी थी जो
धोखे की हवा अब उड़ाते राख है .....

सुरीली वोह बातें तुम्हारी
चुभती है आज इस दिल को मेरे
बांध करो कोई वो सारे तराने
गूंजते है आज भी जो महफ़िल में मेरे

आग लगाते प्यार को आज
आग लगे तो बेहतर है ....
की दिल जले किसीका तो बात क्या
ये मोहब्बत जले तो बेहतर है ....

काली शक्ल प्यार की ये
दिल को मेरे डराती है
की अँधेरा हर जगह है जो
अँधेरा वोह कराहती है

प्यार जो बनी गाली
उस प्यार को मैं भूल गया
प्यार को मैंने खुद लटकाया
और अपने आप में झूल गया

इस मोहब्बत का राक्षस आज
खाने मुझे आता है
मारा इसको तोडके तुझसे रिश्ता
अब अकेलापन की भाता है ....

परवाह मुझे अब ये नहीं
ज़माना मुझे क्या कहता है
की अब प्यार मुझे नहीं है और
नफरत लहू में बहता है ......

फाड़ा मैंने सारे ख़त वोह
जो तुने मुझे लिखे थे
रस्ते में मैं जाता नहीं
जिस रस्ते में तुम दिखे थे ....

नजराने प्यार के जला दिए
जब भरोसा तुमसे उठ गया
ज़िंदगी अभी भी चल रही है
क्या हुआ जो यार रूठ गया

समझना मत के प्यार की आग
मुझे भी जलाके बुझ जायेगी
की इतनी आग तो मुझमे भी है
दुनिया भी इसमें समा जायेगी

कहा था मैंने की सफ़र मेरा अधूरा है
पर लगता है अब मुझे की तेरे बिना ही सफ़र पूरा है

Not all things end on a happy-note. Love may also come with its ugly side. So never be blind in love.

Thursday, June 9, 2011

Kya bataaoon...Kya hai tu (What you Are.....)

People say that it is very difficult to know how to actually describe the person you love. The person is actually an illusion that cannot be described but only felt to be fooled and then left alone. Love is both divine and selfish. This poem is showing only the good qualities of Love. An initial response of a lover is scripted in this poem.




कभी मैंने जो देखा था
अधूरा ख़्वाब है तू...
जहाँ से पुरे जो सवाल करता था मैं
शायद कहीं उस सावाल का जवाब है तू ......

दुखती रगों में मेरे
दुश्मन का वार है तू ...
कभी सुई की चुभन तो
कभी तलवार है तू .....
सुबह सुबह मिला कोई
ताज़ा खबर है तू....
रात की तन्हाई में कहीं
मेरा सबर है तू......

गली कुचे में गूंजती कहीं
शहद सी आवाज़ है तू ....
कभी ग़म की आख़री सांस
कभी खुशी का आगाज़ है तू .....
हुस्न पर फ़िदा है जो,
उनके लिए तू है आफताब ...
अक्ल के दाएरे से दूर है
नहीं है अब धडकनों का हिसाब

गरम साँसों पर सेंकती कुछ
ठंडी आँहों की लड़ी है तू
प्यार से देखकर कहीं घायल करदे
ऐसी कोई छडी है तू.....
दीदार मैंने तेरा किया पर
न मिती मेरे दिल की प्यास
मिलोगी कब तुम फिरसे मुझे
बस यही है एक आस .......

प्यार तुझे तो करते होंगे बहुत पर
मेरा प्यार कुछ कम नहीं......
मेरा दिल कहीं न हो तुझसे दूर
ज़माने का मुझे कोई ग़म नहीं ......

पलकों के नीचे तेरे मैंने
आशियाँ बनाया हैं कुछ यादों का .
रहने जो तुम न आओ इस घर में तो
मज़ार बनेगा तुम्हारे वादों का .....

पता मुझे है की इस बाज़ार में
वादों का कोई मोल नहीं होता
पर सच शायद है ये भी की
सूरत पर सीरत का भाव-तोल नहीं होता .....

सच की आदत अब नहीं मुझे
झूठ तेरी रास आती हैं
ज़िंदगी के हर मोड़ पर
तेरी सूरत पास आती है .......

Wednesday, June 8, 2011

Pyaar me ...Kya Nahin....(What not in love...)

Sometimes love comes like a lightning stroke. You never know and you are in love. Your habits, your emotions, your behavior takes a drastic turn when in love. Many scientists have tried to research but they have been futile to actually decode this emotion called love. I am trying to explore the story of a person who changed totally in Love. His ideas vanished and from a strong rock he became a molten candle.... The poem below is all about how love can change you.




खामोश एक कोने में तू
बैठके सोचा करती है
जिसने कभी तोडा था दिल तेरा
आज उसीके प्यार में मरती है ....
क्या नहीं होता है जब दिल होता है बेक़रार ....
टूटे दिल को जोड़ देता है यह प्यार .....

तेरे कलाइओन में बंदी घड़ी में
जहां वक़्त की कमी रहती है ....
अफ़सोस अब आँखों में तेरे
आंसूं की नमी रहती है ......
बेवक्त ही तुझे इस इश्क ने किया बेज़ार
हर वक़्त अब तुझपे हावी रहता है प्यार.

बातें तो तू करता था हमेशा
करके नाप और तोल.....
अब उसी जुबां से कहता है तू
"मेरे बातों का क्या मोल? "
गूंजते आवाज़ को ले गया इश्क खामोशी के पार ...
अंगार भरे जुबां को बनता बेजुबान ये प्यार.......

कभी सर्कार तो कभी संचार
तो भड़कता तू कभी यारों पे
आज चुप है तू, लगता तुझे है
बसेरा है तेरा तारों पे .....
शोर भरे माहोल पर हुआ मौसिकी का वार ...
की औरंगजेब को तानसेन बनता है ये प्यार ....

आँखें जो तेरी हमेशा
उगलते थे गरम आग ...
कहीं उन आँखों के बीच
दिखा है आज अनुराग ...
कहता था तू के तुझे
नहीं है परवाह ...
आज तडपाती है तुझे
किसीके जुदाई की अफवाह
हर सख्त चट्टान पर हुयी हलके बादल की बौछार
की बंजर ज़मीन को भी नम करता है प्यार.......

क्या क्या होता है और क्या नहीं इस प्यार में
दिल कहीं होता है और जान कही
जज्बातों के व्यापार में ......
ये कैसा बाज़ार है जहाँ हर कोई लूटना चाहता है ....
की लूटके ही शायद शेहेंशाह होता है कोई प्यार में......


Everything changes.....Even Scientific Facts.....IN LOVE...

Sunday, June 5, 2011

Praja ka koi mol nahin ( No value for citizens)

As the government decides to harshly end the peaceful protest of Baba Ramdev against some serious issues it reminds us the times where we had British ruling over us and then inflicting atrocities on our citizens. Those were the times where India was imperially dominated. Today in the days of democracy also the demons of Democracy (Read the UPA government) have left no stones unturned to show their might by means of (un)lawful agencies to actually stop somebody from speaking the truth.

What I really feel that the citizens have become just resources for garnering votes. Just before the elections Stupid celebrities of Bollywood just gather in various commercials to actually propagate the Idea of voting, not understanding, actually what is the advantage of voting. For them democracy is all about voting and nothing else.

The poem below of mine is to make every people aware of the fact that today there is no role of "Praja" in "Prajatantra".



क्या करें अभी हम जनता
की अभी ये माहोल नहीं ...
प्रजातंत्र है मगर इस तंत्र में
प्रजा का कोई मोल नहीं ....

सरकारे बनती है, मिटते हैं
पर लोग अभी निराश है ...
हो किसान या मजदूर
हर वर्ग यहाँ हताश है .....
नौकरशाह और राजनेता है
बस और कोई सौल नहीं
प्रजातंत्र है, मगर इस तंत्र में
प्रजा का कोई मोल नहीं.....

कहीं दूर समंदर सात पार
बिकती है देश की साख
कठिन कमाई का धन जहाँ
पल भर में होता है राख ...
कब समझेंगे नेता ये देश है
कोई फूटबल नहीं .....
प्रजातंत्र है, मगर इस तंत्र में
प्रजा का कोई मोल नहीं...

कहीं पोलिस का डर तो
कहीं डर है खुद के खोने का
थकी आँखें करती है बयां
दास्तान जागती आँखों से सोने का ....
उन आँखों में जो है उम्मीदें
उन उम्मीदों का कोई तोल नहीं
प्रजातंत्र है, मगर इस तंत्र में
प्रजा का कोई मोल नहीं....

आवाज़ उठे जो कहीं पर
उस आवाज़ को करते खामोश है
बेवजह इस देश के नेता
दिखाते हमे रोष है .......
जनता में बस बचे हैं आंसूं
होंठों पर अब बोल नहीं...
प्रजातंत्र है, मगर इस तंत्र में
प्रजा का कोई मोल नहीं.......

पल पल तोडती दम लोकशाही में
कब तक ओधोगे कफ़न वोट का ......
कब तक चढाओगे इन हैवानो को
छप्पनभोग तुम नोट का??
इस गंदे पोखर में अब
तरता कोई शोल नहीं
प्रजातंत्र है, मगर इस देश में
प्रजा का कोई मोल नहीं....

लोगो का नेता जो बना
लोगो से ही दूर गया ..
सत्ता जो मिली हाथों में तो
नशे में सत्ता के चूर गया ....
कहता है बेशर्मी से फिर
"कोई दरवाज़ा तो खोल नहीं"
प्रजातंत्र है ; मगर इस तंत्र में
प्रजा का कोई मोल नहीं ........

मिलावट इरादों में है तो कहीं
है मिलावट खेल में .......
बहार खाने के है लाले तो
बाते बिरयानी जेल में ......
फिर कहते है "कानून में हमारे
अभी कोई लूप-होल नहीं "
प्रजातंत्र है ; मगर इस देश में
प्रजा का कोई मोल नहीं .......

फोन घूमके कर दिया गोल
धन राशि कई करोड़ ....
फिर उस काली कमाई से,
कानून का रास्ता देंगे मोड़
कानून के गलियारों में अब
शुन्य भी लगे गोल नहीं
प्रजातंत्र है; मगर इस देश में
प्रजा का कोई मोल नहीं ........

तो फिर तू बैठ खामोश
देख तमाशा वजीर का
तेरी जेब करके खाली वो
देगा दर्जा तुझे फकीर का
गिनने से पहले नोट सारे
गायब धन कर देगा वो
मन खट्टा जो हो तेरा तो
गायब तन कर देगा वो .....

फिर भी हर चुनाव में चीखेगा तू
कहेगा " निराशा का माहोल नहीं "
समझेगा कब तू इस प्रजातंत्र में
तेरा कोई मोल नहीं ........

तू है साधन चुनाव का
जेब-कतरों और चोरों का .....
हे प्रजा, भोली-भाली .....
तेरे होने का कोई मोल नहीं .........


Democracy ...... Failed.......and DEAD...

Friday, June 3, 2011

Pehli Baarish (The first Rains)

As the monsoon spreads its arms across Mumbai, the people already tortured by the scorching heat get some relief. The first rains are not only an indication for the relief from the summers but bring about a lot of change in life and its flows. The affects of first rains are felt not only in the body but also in the soul. As the heat disappears the soul is drenched in the downpour of water from the sky in form of the first rains.

My Poem below explores the idea of drenching in the first rain that hits the town.




पसीने से चिप चिप
दोपहर को आखरी सलाम मिला है
सूखे हुए मिटटी को आज
नया पयाम मिला है |
बूंदों ने भिगो दिया तपते जहाँ को
पहली बारिश का आज कलाम मिला है |

कभी जो पंछी तपते थे
सूरज की धुप में रुक कर
राहत उन्हें मिली है आज
ठन्डे बूंदों पर झुक कर |
रुकते कदमों को आज नयी उड़ान मिली है |
पहली बारिश की इन्हें परवान मिली है ....

सारे शेहेर में अंगारे
हर आँखों में रोष था
उस गुस्से में कहीं
बारिश के आने का जोश था |
उस जोश को आज नया अरमान मिला है |
पहली बारिश का इन्हें दान मिला है |

प्यार भरे दिल जो
तरसते थे एक मुलाक़ात के लिए
मजबूर जो दिल थे
गरम हालात के लिए ,
उन गरम साँसों को आज ठंडी आह मिली है |
पहली बारिश से कहीं नयी राह मिली है |

नयी सोच है, नए है सपने
नए बहाने मिले है जीने के |
कहीं कागज़ की नाव तो कहीं गरम पकोड़े
कहीं मिटते दर्द है सीने के |
ज़िंदगी के सफ़र को जैसे एक मकाम मिला है |
मंजिल तो वाही है बस थोडा आराम मिला है |

कहीं घटती दूरियां
तो कहीं कोई आता है करीब ...
कहीं मिलने की बेताबी तो
कहीं है मिलन का नसीब |
साँसों के बीच जैसे फासले घटते हैं ...
पहली बारिश में कुछ दीवारे कटते है |

भीग मैं रहा हूँ पर
ये कौनसी आग जलती है
बारिश के कातिल बूंदों में
कहीं जान मचलती है ...
गीले समां में कुछ नए बाँध टूट गए हैं
पहली बारिश में जुदाई के पल रूठ गए हैं |

होठों पर तेरे आज
नयी सी एक नमी है ....
खामोश अधरों पर आज
बस बातों की कमी है |
बातें तो दूर तेरी अदाएं भी बिजली गीराते हैं
पहली बारिश में मेरे सांसों को सहलाते हैं |

दूर है क्यों मुझसे तू
इस रंगीन माहोल में ?
क्यों है तन्हाई हर पल
शेहेर के शोरोगुल में ?
इस शोरोगुल में कहीं मेरे दिल की आवाज़ न दब जाये...
पहली बारिश में कहीं इश्क का परवाज़ न दब जाये |

इंतज़ार था कितने दिन से मुझे
बूंदों के शरारो का ......
पतझड़ को दूर छोड़ आज कहीं
बारिश ने दिया है पता
बहारों का ........................

Welcome the first rains with lots of love and hope.......

Wednesday, June 1, 2011

Jab annadata bhookha marta hai (When farmers die Hungry)

It is amazing to know that while we are on the brink of being a developed nation in the first quarter of the 21st century, our country and its "Largest Democratic Establishment" is not able to control the Farmers' Suicide Problem. I was amazed when I bought Tomatoes at Rs 60 per KG. I was further amazed when I heard a news that the tomato farmer only got Rs 4 per KG for this priceless vegetable that he has made efforts growing. I wondered where that Rs 56 went and was cursing this rotten system. While I (The consumer) and He (The producer) both suffer it is the administration that makes a mockery of our helplessness. How can we actually call ourselves a developed nation when actually the food-grower is dying of hunger and misery.
The poem below mentions a pityful condition of this country....totally shattered with the deaths of farmers.




बेसबब आज क्यों कोई
आँखें लाल करता है...
बेवजह क्यों कोई
अपनी मौत मरता है?
जो शख्सने सींचा ज़मीन को
कभी खून से कभी पसीने से;
उस इंसान को कहीं रोका है
इस वतन ने जीने से ......

मेरा तेरा और सबका
पेट जो दिन-भर भरता है
कहीं किसी कोने में इस मुल्क के
खामोश मौत मरता है |

कभी सुखा तो कभी बाड़
कुदरत की हर मार वो सहता है|
हो नमी ज़मीन पर या आंसूं आँखों में
हमसे कुछ न कहता है |

सोला सिंगार हम करते है जब
अकेला वोह बारिश की राह ताकता है|
हम तो कुछ कदम चल कर थक गए
पर किसान कभी न थकता है |

क्यों फिर इस वतन में
उसे हक अपना मिलता नहीं,
क्यों आखिर संसद में कोई
उसके कारण हिलता नहीं |

बंगाल हो, गुजरात हो
या हो महाराष्ट्र की ज़मीन;
किसान हमेशा दुखी है
ये तुम आज कार्लो यकीन |

आज़ादी के चौसठ साल
पर किसान अभी भी भूखा है;
देखो इस देश की हालत
जहाँ है शोपिंग - मॉल की हरियाली
और कहीं सुखा है |

जो अनाज तुने खरीदा दाम देके
चक्मकते शोपिंग मॉल से ....
खून में डूबा अनाज है वोह
देखले उसे तू नज़रों में तोल के |

सरे बाज़ार क्यों होती है
त्योहारों की किलकारी ;
दिवाली में अँधेरा है किसान के घर
और होली में है खून की पिचकारी |

बज रहा है डंका कहीं
ऐश्वर्या और उन्नती का
अनजान है अन्नदाता कही
देश के इस गाती का |

सेलफोन की घंटी कहीं
कहीं है एस एम् एस का जलवा
किसान के घर में बस पड़ा है
दुःख और चिंता का मलबा |

वोट मांगते नेताजी भी
दुखसे उसके अनजान है ;
शायद किस्मत है इस देश की
जो रजा ही इसका बेईमान है |

कभी फांसी, कभी ज़हर
तो कभी नाहर में लाश तरता है
है रे भारत ; किसान यहाँ
क्यों अपनी मौत मरता है |

ऐ खुदा है कहीं तो
ज़मीन पर आ के देख ज़रा
किस तरह तेरा अक्स भी
आईने से डरता है |

अनाज उगाके शायद कहीं
गुनाह उसने किया हो शायद;
सारा मुल्क जहां चैन से सोया
वोह भूखी राते जगता है |

हिन्दुस्तान की अवाम उठो
करो कुछ देश के सन्मान का |
पेट अपना बहुत भरा है
अब पेट भरो किसान का |


Save the Farmer..... Save India.