As we are taking longer strides towards the development of our country, as our country is taking strong measures to become a "Developed" country from a developing entity, a big problem of Child-Labor looms our future. There is a saying that a child is not born but rather gives birth to many relationships. It gives birth to a father, a mother many acquaintances and most importantly it gives birth to a hope. A hope for a better future. It gives everybody a second chance of living their lives or rather shaping their lives. However, it becomes really nasty when childhood is actually forced to do certain work prematurely, which should be kept for only the mature class.
The bane of child-labor has not been totally eradicated, rather it is on the increase day by day. Though there have been measures to control this and also making this a criminal offence, still under the supervision of government itself there are many projects that are involved in this dirty work of child labor. Our country, which we want to make an example in front of the whole world is indeed setting new examples of course in the wrong directions by the means of child labor.
हिन्दुस्तान की अवाम में
तरक्की का जोश हैं ....
उस जोश के पीछे छुपा
कहीं बचपन खामोश है .....
संसद में चलता है जब
चर्चा भारत निर्माण का
भारत के ही कोने में कहीं
होता हनन सन्मान का
होता है जब भी उन्नती के नाम पर
हर गली कुचे में ...कोलाहल ....
पीता है तभी वजूद देश का
तंत्र से परोसा हुआ हलाहल ....
पाठशाला छोड़ कर क्यों
नन्हे हाथ आज उठाते कुदाल
क्यों वोह आँखें ...सपने हो जिसमे
देखते अपने ही जीवन में भूचाल ...
नानी की कहानिया नहीं है अब
बस शोर है ज़ालिम शहर का ...
ए हिन्दुस्तानी ...हो जा खबरदार
इशारा है है आते कहर का .....
जब पिस्ता है बचपन यूँ
खानों में ...बंजर मैदानों में
तब सुरीले आवाज़ भी
आने से इनकार करते कानो में....
भावी भारत क़ैद है आज
बाल - श्रम के सलाखों में ..
फिर सुन्दर भारत का सपना
कहाँ आये उन नन्ही आँखों में ?
चीख है कहीं ...दर्दनाक सा
क़त्ल होते बचपन की आखरी गुहार
सोते इस प्रजातंत्र में कहीं
भविष्य को बचाने की पुकार.....
क्या कोई हैं जो सुनता है
बड-बोलो के बीच मासूम को?
क्या कोई फिर से देगा आग
बुझते हुए जूनून को ?
आज का "रामू" बनेगा जब कल
नामी कोई गुंडा मवाली .....
सब कोसेंगे उसे ही आखिर
कौन देगा इस तंत्र को गाली?
नन्हे हाथ सडको पर अब
धोते है गाडी के शीशे ....
कलम उन हाथो में देने को
करता है कौन कोशिशे?
पल पल लुटता बचपन आज
मांगता इस देश से हिसाब है
क्यों बोलू " भारत महान है "?
मांगता येही जवाब है .....
प्रगती के पथ पर चलता
कहीं "कमल" तो कहीं "हाथ" है ....
छाप किसी भी चिन्ह में लगे पर
बचपन को शेह और मात है ...
वोट देकर बुद्धीजीवी पीते चाय नन्हे हाथो से ...
फिर कहीं देते है गाली दबाके ज़बान दांतों से ...
" देखो देश का हाल बुरा है ...हाल बुरा है बच्चों का "
सच में देश में होता है क़त्ल आज केवल सच्चों का ...
बाल-श्रम थमता नहीं ...बस बढ़ता हैं जैसे पेट्रोल के दाम
फिर भी हम कहते है शान से की करते है नेता काम ....
इस श्राप को अब ख़त्म करो ....तोड़ो इसके हर एक तार
बढ़ना हो आगे तो बस आगे बढ़ो
बांध करो बचपन का व्यापार ......
पढ़े रामू ....पढ़े मुन्नी...बने सक्षम हर काम में
रहे आगे इस देश का नाम ...दुनिया के हर नाम में. ...
भविष्य अगर चाहिए सुहाना ...
गर चाहिए तुम्हे सुकून हमेशा
बांध करो इस बाल-श्रम को
चमकेगा देश का रेशा रेशा .....
बाल-श्रम एक अभिशाप है | इस अभिशाप का निदान और इससे मुक्ति अत्यंत आवश्यक है, अन्यथा इस देश का उज्वल भविष्य अधर में झूल जाएगा | यह केवल एक कविता नहीं पर एक गुहार है उन सभी बुद्धीजीवियों को जो यह मानते हैं कि इस श्राप से मुक्त होना इस देश के भविष्य के लिए ही नहीं परंतू वर्त्तमान के लिए भी उतना ही आवश्यक है | देश कि मस्तक की रेखाएं लिखने वाली यह संविधान में जहाँ प्रावधान हैं इस घिनोने अपराध को रोकने का, वहीँ इन प्रावधानों में कई शुक्ष्म छिद्र के कारण-वर्ष अपराधी दण्डित नहीं हो पाते |
हमारे न्याय-प्रणाली में या तो उचित नियोमो का अभाव है या फिर न्यायिक पदाधिकारियों में इच्छा-शक्ती कि कमी जिस कारण यह कुप्रथा अभी भी बे रोक-टोक चल रही हैं | निर्बल प्रजा और उससे भी ज्यादा दुर्बल प्रजातंत्र में बचपन का मोल शायद ही कोई लगा पाए परन्तु मुझे आशा है कि इस कविता को पढने व् समझने के पश्चात उस निर्बल एवं अभागे प्रजा में एक चेतना जागेगी कि वह स्वयं ही अपना भाग्य व् भविष्य दोनों परिवर्तीत करने के लिए सठीक एवं सबल पग उठाये और एक सुमुचे भारत का नव-निर्माण करें |
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