Saturday, July 9, 2011

जिंदा हूँ मैं ....(Living)

कोई इसे जूनून कहता है तो कोई फिर इसे बस अंदाज़-ए-बयां का खिताब देता है | सच, हम हमारे ज़िंदगी को जिस नज़र से भी देखे ये अहम् नहीं हैं, अहम् तो यह हैं के हम किसी भी हालात में जिंदा रहते हैं और वोह भी तब तक जब तक हमारे ज़िंदगी की डोर टूट नहीं जाती हैं | जभी मैं आगे या फिर पीछे की ओर देखता हूँ वहां मुझे ज़िंदगी अपने सभी मुश्किलात से जूज्ती हुई नज़र आती हैं | कहते हैं की उपरवाला हमे इस जहाँ में भेजते है ताके हम हर मुश्किलात का सामना करते हुए भी हमारे ज़िंदगी को बचा कर रखें | सबसे अहम् यह बात हैं की आप अपना ज़िंदगी जिए, किस तरह से जिए ये फिर बाद की बात हैं| कुछ ऐसा जैसे के आप किसी दौड़ का हिस्सा हो तो सबसे पहले यह ज़रूरी हैं की आप वोह दौड़ पूरी करे, फिर यह बात का फैसला होता है की आप इस दौड़ में कौनसे स्थान पर हैं | ज़रूरी वोह स्थान भी हैं, बशर्ते आप वोह दौड़ पुरी करे| इसलिए सबसे पहले इस बात का खुलासा होना ज़रूरी हैं की हम क्या करें जिससे हम यह ज़िंदगी जी सके क्योंकि ज़िंदगी में हमे चढ़ाव के लिए जहाँ खुद को जोश से भरना हैं वहीँ उतार के लिए भी हमे होश का भी सहारा लेना चाहिए |

यह कविता उसी जिंदा रहने के जद्दोजहद के ऊपर केन्द्रित हैं |



शेहेर के किसी कोने में
बरसात से छुपा कोई परिंदा हूँ मैं
हा शायद ओंची उड़ान के उम्मीद पर
किसी हाल पर जिंदा हूँ मैं ........

मैंने किसी की ओर देखा नहीं
पर जहाँ सारा क्यों है मेरी ओर देखता ?
पल भर के लिए कहीं चैन हो हुआ नसीब
तो मेरे ओर अपनी बेचैनी क्यूँ है फेंकता?

जहाँ की इस हरक़त पर कहीं मैं शर्मिंदा हूँ...
हाँ इसी हाल में शायद अभी बी जिंदा हूँ ...

कहीं मेरे दिल में उम्मीद थी
खुशगवार कुछ बदले पलों का..
साये में सुकून के बीते जो उन
ख़ुशी से कुछ गीले पलों का

उन हलके पलों में कुछ ख्याल उंदा हूँ मैं
ज़माने के तानाशाही पर भी जिंदा हूँ मैं |

क्या सही, क्या गलत हर बात मुझे लुभाते हैं
जहाँ की हर दिक्क़त अब रास मुझे आते हैं
नादाँ कुछ इंसान यहाँ फिर भी मुझे डराते है
उनकी यह बातें जो जनाब बस बातें हैं .....

अभी भी तारीफों के बीच एक निंदा हूँ मैं ...
बदसलूकी है बहुत पर जिंदा हूँ मैं.....

हर लम्हा मेरे ख्वाबो का
क़त्ल सरे आम हुआ हैं
सपने जो कहीं आँखों में तरे थे
वोह कहीं अब बेनाम हुआ हैं

सपनो के महल में हकीकत का बाशिंदा हूँ मैं
खंडहर ही सही....उसीमे जिंदा हूँ मैं ......

परबत ऊंचे थे तो सहारा मुझे बादलों का था
लहेरे तूफानी में थे सहारे किनारों के ...
दिल तो मेरा खुश था मेरे छोटे घरोंदे में ...
पर ख्वाब थे मुझे ऊंचे मीनारों के ....

हर आशियाँ में छुपा हुआ कोई तिनका हूँ मैं
जहां मुझे बता अब किनका हूँ मैं ?
तेरे हर ज़ुल्म में बसा तेरा गुरूर हूँ मैं
तेरे ज़लालत में भी जिंदा ज़रूर हूँ मैं ....

हर क़ैद से फरार होता परिंदा हूँ मैं
पंख मेरे कटे फिर भी जिंदा हूँ मैं.....


So live your life.....

1 comment:

  1. अति सुंदर , प्रभावी ..... बधाई

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