The first short poem that I would like to present infront of all of you is about forgetting. Yes, like love, hatred and liking; forgetting something too is a very good emotive expression. More so when you try to forget something that is always at the back of your mind. When some thing or somebody becomes a part of you then actually to forget or rather forego that particular object becomes the most difficult job ever. The poem below of mine describes the same.
बूँद बूँद जो दिखे मुझे ओस के
तो लगता जैसे तेरे अश्क बहें हो
जिस जगह मैं हुआ तुझसे रुखसत
वहीं मेरे भी अरमान के राख रहें हो .....
सुर्ख होठों से छुपती मुस्कराहट के पीछे
दस्तक हैं कहीं तेरे दिल के ग़म का ...
तभी तो बदनाम हूँ मैं हर गली मोहल्ले में
खिताब तुमने दिया है ज़ालिम सनम का ....
सुनने से पहले ही शोर कानो में बरपाता है
अरमानो की अर्थी को फूलों से सजाता है ...
फिर भी क्यों है आज भी मुझे तेरा ऐतबार
क्यों आज भी मुझे हैं तेरे साथ का इंतज़ार .....
भूल चूका हूँ मैं तुझे ये शायद मैं कह न पाऊँ ....
ये बात और है की तेरे बिना भी मैं रह न पाऊँ ....
nice
ReplyDeleteLovely words...It's difficult to live without someone you love...
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