Tuesday, August 30, 2011

The Indian Politician......

One third of our hard earned money we pay out to a system that doesn't care for us even one percent. Our hard earned money that comes after so much toiling and so much sacrifice is a mere tool to satisfy the luxuries of the elected members of our constitution and so called government servants. The administrative officers who are bearing big offices believe that it is their right to be bribed and weighed with money. As you do this again and again you get a feeling that you are residing in some kingdom of medieval era where the king just exploits the subjects and does nothing for their benifit.

On top of that you see uneducated and unqualified people being your rulers. The entire system rots in a way that anybody who cares to jump into it for cleaning it himself bathes in the dirt and becomes a pig.

My poem below is inspired by this situation of India that has existed over the years after independance.





संभल कर चल राही
की राह ये कठोर है
इस राह में हर सेठ
छुपा हुआ चोर है .....

संसद तक जाती है यह
पर दिशा इसकी गोल है
गोल आकार में छुपा यहाँ
हर किसीका पोल हैं...
आँखों को खोलेगा तो सोचेगा तू चला किस ओर है
इस राह में हर सेठ छुपा हुआ चोर हैं ......

सफेदी पे इनके न जा तू
दिल तो इनके काले हैं
शैतान के मौसेरे भाई है ये
असुरों के साले हैं .....
हर बुराई के साथ बंधी इनके कमीज़ की डोर हैं
इस राह में हर सेठ छुपा हुआ चोर हैं .......

बापू के ये भक्त है तभी
अमीर बनना इनका तकदीर हैं
समझ में न आये तुझे तो देख
नोट में भी उनकी तस्वीर हैं .....
कोई यहाँ भेड़िया है तो कोई सावन का मोर है
इस राह में हर सेठ छुपा हुआ चोर हैं .......

तेरे घर के बाहर ये
बम के गोले बरसाते हैं
तेरी गाढ़ी कमाई समेट कर
तुझे दाने दाने को तरसाते हैं
ताक़त के नशे में इनकी आत्मा भी सराबोर हैं
इस राह में हर सेठ छुपा हुआ चोर हैं .....

सुबह से शाम तक खटता है तू
फिर कर ये लेकर जाते हैं
उसी पैसो से फिर इनके बच्चे
लन्दन परिस घूम आते हैं ...
दिन में ये कुछ अलग से हैं, रात में ये कुछ और हैं
इस राह में हर सेठ छुपा हुआ चोर हैं ......

तेरे घर में रोशनी कम हैं
इनके घर में हैं रोशनदान
तुझे न मिलेगी दो गज ज़मीन
इनके पास हैं बड़ा मैदान
शौक इनके जवानो जैसे बस दिखने में ही प्रौर है
इस राह में हर सेठ छुपा हुआ चोर हैं ......

गोल इमारत में होती सभी
बातें गोल गोल हैं ....
दिन, महीने...साल बीते पर
इनको न हमारा मोल हैं ....

हर सुबह और भोजन के बाद
चीखते है चिल्लाते हैं
कडवे से हकीकत में यह
झूठ का शहद मिलातें हैं ...

मत देख तू इनके चेहरों को, हर शक्स हरामखोर हैं
इस राह में हर सेठ...छुपा हुआ चोर हैं ......



Sunday, August 28, 2011

खुली जुल्फें ...... (Beautiful Hair)

Some sights can take your breath away and some sights can take your life. But what happens when one comes accross a kind of a sight that keeps him alive just to kill himself. Well some combinations of beauty can be deadly and they can come in innocent packages. The problem with the journey called love is that it starts from the body and ends only on the soul. Since Soul is always an unreachable target so Love never ends....Well...People say that.....



The poem below is about one such journey ....midway....that describes the beauty that lies in hair......




हवा का झोंका कुछ मंद मंद लहराता हैं

रेशमी तुम्हारे जुल्फों का घेरा

आँखों में जाल सा फेहराता हैं ......



खुले ये बाल है तो कुछ

हालत दिलों के है नाज़ुक

रुके धडकनों पर आज ये

जुल्फें बरसाते हैं चाबुक ....



आँखों का नशा तेरा जो

तेरे ज़ुल्फ़ ने कुछ ढका हैं

बिन पिए कोई शाराबी जैसे

महखाने के पास रुका हैं ...



कौन कहता है की क़त्ल हत्यारों से होते है ...

कौन कहता हैं की मौत की होती है वजह ...

आँखों के वार से तेरे जान बहुत गयी हैं

तेरे जुल्फों के लहराने से बहुत हुए कलह



समझते थे जो इन अदाओं को

मासूम से कुछ करवटें ....

क़ैद उन नासमझो को कर लिया है

तुम्हारी जुल्फों के सिलवटें



लहराकर जुल्फों को तुम्हारा

चुपके से मुस्कुराना ...कातिल है ....

जिसे तुम....तुम्हारी जुल्फें हासिल हो

उसे न मांग कर सब हासिल हैं ......



बारिश है बहार ...काले कुछ बादल हैं

पर तेरे जुल्फों के अंधेरो में

रोशन जहाँ भी पागल हैं ......


नफरत....नफरत....नफरत.....(Hatred all the way)

After having written so many poems on love...somebody requested me to write a poem on hatred. Well, many of my friends who know me closely always said that I will not be able to fulfill this request as hatred is something that I never could express in my peoms earlier also in its entirety. I could not express the absolute hatred of a hurt heart in my poems. Well, I tried my best but then it never took a good shape.

I am trying to express absolute hatred in this poem.

The poem is dedicated to all those who love to HATE.





नफरत की आंधी में मैंने
प्यार का जाम पिया हैं
प्याले छलक न जाए जानिब
ऐसा काम किया हैं ......


दिल, दुनिया और दर को छोड़
आज मैं आया हूँ खुदको पाने
तेरे आशिक से अच्छा सनम
दुनिया मुझे पागल माने .....


तुमसे करूं मैं प्यार क्यों ?
दुनिया हसीनो से खाली नहीं |
के प्यार मेरा अनमोल हैं
तुम्हे देने वाली गाली नहीं .....


सिमटते जज़बातों को ऐ हसीं
तेरे मरहम की ज़रुरत नहीं ....
मरता मैं मरता हूँ सही पर
तेरे रहम की ज़रुरत नहीं .....


समझती तुम हो भले के
मुझे कहीं लगी हैं चोट ...
बता दू मैं तुम्हे ऐ बेवकूफ
समझने में तुम्हारे है खोट


फूलों के वार से कभी
चोट पत्थर को लगते नहीं ...
हवा कितनी भी गर्म हो पर
गहरी नींद से हम जागते नहीं ....


हमारे सपने भी आज कल
इंतज़ार तेरा करते नहीं ...
तेरी झूठी बातों पर अब
हमारे अरमान मरते नहीं ....


मेज़ पर तेरे ख़त रख कर
राख उन्हें मैंने किया हैं ...
जो रिश्ता कभी था ही नहीं ...
उस रिश्ते को जला दिया हैं ...


तेरे तोहफे...तस्वीरे तेरी
डस्ट-बिन को सपूत हैं
याद तुम्हारी नहीं आयेगी
दिल मेरा मज़बूत हैं ......

तुम समझती हो कहीं
किसी देश की रानी हो तुम
माफ़ करना ऐ नासमझ
गटर का गन्दा पानी हो तुम ...

इस जहाँ में अगर कभी
जनानो का निकले जनाज़ा
तो कब्र में तुम पहले जाओ
उसमे ही आएगा मज़ा

जो मरते तुम्हारे सुर्ख गालो पर
गालिओ के मोहताज है वोह
तारीफ़ जो करे तेरे खुले बालो पर
गधो के सरताज है वोह ....

जब देखा अन्दर से तुम्हे
लगी तुम बहुत भद्दी
जैसे के रेशमी डब्बे में
बंध हो कागज़ की रद्दी ....

मोहब्बत जो तुझसे किया
खता मुझसे हो गयी
जाना जब तेरे चेहरे को तो
एहसासे कहीं सो गयी ...


Monday, August 22, 2011

Krishna....Come back to earth

Today is Janmashtami. A festival that marks the birth of a new hope. A festival that reminds us about the fact that evil, however powerful and accepted it may be is always defeated in the hands of good and also raises a kind of hope that whenever there will be a rise in evil, whenever there will be a rise is unscrupulous means, whenever there will be a rise of malice there will be an incarnation of the Lord Himself in any form to actually mitigate these.

Today as we have so many problems in the country it has become necessary for the Lord himself to re-incarnate.




सुना है हमने की पाप कुछ बढ़ रहा हैं ....
सच्चाई के ढाँचे में झूट का परत
चढ़ रहा है .......

हाल कुछ ऐसा है की रक्षक ही भक्षक है
अनपढ़ जाहिल जो भी थे आज
बने समीक्षक हैं ......

देश का कहना क्या....जैसे एक दलदल है
कीचड़ के इस भंवर में कोई
ढूँढता गंगा-जल है ......

कभी टू जी ...कभी आदर्श...चोरी तो आदत है
इस चोर राज में खोता महत्व
हर एक शहादत है ..........

पूछते हम तो कहते वो के भगवान् भी माखन चोर है
हर इंसान सोचे आज यह देश आखिर
चला किस ओर है ?????

गीता का जो पाठ पढाया शायद कहीं खो गया
इस देश की नसीब देखो...यहाँ
अपना पराया हो गया .....

अर्जुन के तीर भी अब काम न आयेंगे
सर फिरे जहाँ में वो तीर भी
कमान में लौट आयेंगे .....

कुछ लोग मिलके करेंगे पुरे जहाँ का हिसाब
जस्मीन के पंखुडियो से होता आज
सच्चे रक्त का रिसाब ........

आज कहाँ पर हो प्रभु के संकट धर्म पर आया है
कर्म के कर्मठ रहों पर अब
काला साया छाया है ........

भ्रष्टाचार के बिगुल के शोर में
मुरली का सुर दब गया है ....
के मुरली के तार छेड़ कर भी
दुराचार कब गया है ?????

कुछ ऐसा काम करो प्रभु
के हट जाए ये आषाढी मेघ
रोशनी फिर से सूरज का हो
विकास का बढे वेग .....

लौट आओ अब धरा पर तुम की
अब धरा कापे हैं ...
हर निर्दोष यहाँ पर आज
खराब नसीब नापे हैं ......

किसी रूप में किसी रंग में
आओ तुम तो हो भला
सचाई का नहीं तो फिर
घुटने वाला यहाँ गला

बीता कल ....छूटा पल...और यादें (The past and the moments gone by)

I have often thought about the fact that how would it be like to actually confront the past when you know that at some point of the time the fault was your's. Well really not easy. In such cases I think it is good to actually remmeber the good moments that you enjoyed and forget the bitter ones. However, whenever your confront such past in reality then you always feel that every sight that is looking at you is actualy showering arrows.




घुमते वोह लटो ने आज फिर
मुझे आज नींद से जगाया हैं
चका चोंध रौशनी में आज आया
हल्का सा एक साया हैं .....

सोचता है दिल क्यों आज की
फिर कहीं तू देती हैं दस्तक
क्यों आज भी मेरे तन्हाई में
कहीं होती तेरे हँसी की खट खट ...

हलके से मेरे इरादों में आज
ये कौनसी एक गहराई हैं ....
की दुबके देखता हूँ जब मैं
लगा की कहीं तू आई है .......

आज भी मेज़ के उस पार
रखा मैंने भरा जाम हैं ....
की शायद हवा के साथ आता
तेरे इश्क का पैघाम हैं ....

नशा मुझे शराब का नहीं
नशा हैं जुदाई का .....
खुदा से बेरूख हुए वो
मेरे यार के खुदाई का ...

क्या था वो हमारे बीच ?
इश्क, या कुछ और था? ....
पल भर में गुज़र जो गया
सदीओ से लम्बा दौर था ....

सहमी रातो में तेरा मेरे
करीब आकर लिपटना यूँ
फिर कहीं, कभी लाज के मारे
बाँहों में अपने सिमटना यूँ ...

कुछ बेख़ौफ़ से पल थे वो
और मौसम भी आवारा था ...
दिल्लगी अगर थी वो तो
दिल्लगी मुझे गवारा था .....

क्यों छूं कर निकल गयी
मुझे तेरी हसीं हर अदा?
क्यों आज भी याद है मुझे
तुझसे किया हर वादा ?

वादें जिन्हें मैं भूला चूका हूँ ....
हसीं कुछ चेहरे जिन्हें रुला चूका हूँ ...

देखते मुझे हैं वोह चेहरे कुछ गोर से
नज़र के ये तीर चलते हैं तेरी ओर से .....


Wednesday, August 3, 2011

अलफ़ाज़...ज़िंदगी के (some words of life)

LIFE.....a four lettered word...like any other four lettered words used these days. However, is it only about these four letters that a particular life can be confined to? Life is not about living...it is about completing a journey? I remember the dialogue in the movie ASOKA in which the emperor asks a monk "Who can be more accomplished than an emperor?" and the monk replies "A traveler. A traveler who completes his journey." What a philosophy to define life in simple words. This journey of heartbeats, thoughts, memories, love, hatred, feelings, logic, avarice and many other characteristics is endless and many a times ends without a destination. The purpose of the life is to complete this journey so that nothing remains incomplete.

I have, in my poem below tried to explain these aspects of life.





होठों के फासलों के बीच हैं
हंसी और ग़म का तकाजा
ज़िंदगी हंसीं हैं पर फिर भी रुलाती हैं
शायद ज़िंदगी का येही हैं मज़ा ....

जीना पड़ता हैं किसी किसी को
और कोई यूँ ही जी लेता हैं ....
कोई नुमाईश करता अपने ज़ख्मो का
तो कोई ज़ख्म सी लेता हैं ...

सख्त परतो के बीच में हैं यहाँ
नर्म मलाई की कुछ परतें
कोई ज़िंदगी के सखते से घबराता
तो कुछ मलाई के फिसलन से डरतें ...

पढ़ाती क्यों यह ज़िंदगी आखिर
हर पल एक नया पाठ हैं ???
इस ज़िंदगी में सांसें अकेली नहीं
ग़म और ख़ुशी की साठ-गाठ हैं ...

सवाल ये भी उठता हैं मन में
ज़िंदगी की आखिर ज़रुरत क्या हैं?
जवाब तभी मिलता मुझे हैं के
इस सवाल में भी ज़िंदगी की सूरत हैं |

होती अगर न ज़िंदगी तो
सवाल जवाब होते कहाँ ?
सन्नाटो से भरे जहाँ में फिर
हिसाब-किताब होते कहाँ ?

सर फिरे इस दुनिया में आज
ढूँढता मैं हूँ ज़िंदगी के माने
ज़िंदगी मेरी क्या है ..क्यों हैं ...
ये बनाने वाला ही जाने ....

जानू मैं बस आज इतना की
न जीत मिली न हार मिला
ए ज़िंदगी तेरे होने से बस मुझे
कुछ लोगों से प्यार मिला ...

इस प्यार को मैं दौलत मानु
या मानु इसे मैं पल खुशगवार
जो भी हुआ बस अच्छा ही हुआ
ज़िंदगी के लिया मैं हूँ तैयार ........

Live life....complete the journey....