On top of that you see uneducated and unqualified people being your rulers. The entire system rots in a way that anybody who cares to jump into it for cleaning it himself bathes in the dirt and becomes a pig.
My poem below is inspired by this situation of India that has existed over the years after independance.
संभल कर चल राही
की राह ये कठोर है
इस राह में हर सेठ
छुपा हुआ चोर है .....
संसद तक जाती है यह
पर दिशा इसकी गोल है
गोल आकार में छुपा यहाँ
हर किसीका पोल हैं...
आँखों को खोलेगा तो सोचेगा तू चला किस ओर है
इस राह में हर सेठ छुपा हुआ चोर हैं ......
सफेदी पे इनके न जा तू
दिल तो इनके काले हैं
शैतान के मौसेरे भाई है ये
असुरों के साले हैं .....
हर बुराई के साथ बंधी इनके कमीज़ की डोर हैं
इस राह में हर सेठ छुपा हुआ चोर हैं .......
बापू के ये भक्त है तभी
अमीर बनना इनका तकदीर हैं
समझ में न आये तुझे तो देख
नोट में भी उनकी तस्वीर हैं .....
कोई यहाँ भेड़िया है तो कोई सावन का मोर है
इस राह में हर सेठ छुपा हुआ चोर हैं .......
तेरे घर के बाहर ये
बम के गोले बरसाते हैं
तेरी गाढ़ी कमाई समेट कर
तुझे दाने दाने को तरसाते हैं
ताक़त के नशे में इनकी आत्मा भी सराबोर हैं
इस राह में हर सेठ छुपा हुआ चोर हैं .....
सुबह से शाम तक खटता है तू
फिर कर ये लेकर जाते हैं
उसी पैसो से फिर इनके बच्चे
लन्दन परिस घूम आते हैं ...
दिन में ये कुछ अलग से हैं, रात में ये कुछ और हैं
इस राह में हर सेठ छुपा हुआ चोर हैं ......
तेरे घर में रोशनी कम हैं
इनके घर में हैं रोशनदान
तुझे न मिलेगी दो गज ज़मीन
इनके पास हैं बड़ा मैदान
शौक इनके जवानो जैसे बस दिखने में ही प्रौर है
इस राह में हर सेठ छुपा हुआ चोर हैं ......
गोल इमारत में होती सभी
बातें गोल गोल हैं ....
दिन, महीने...साल बीते पर
इनको न हमारा मोल हैं ....
हर सुबह और भोजन के बाद
चीखते है चिल्लाते हैं
कडवे से हकीकत में यह
झूठ का शहद मिलातें हैं ...
मत देख तू इनके चेहरों को, हर शक्स हरामखोर हैं
इस राह में हर सेठ...छुपा हुआ चोर हैं ......
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