Sunday, August 28, 2011

नफरत....नफरत....नफरत.....(Hatred all the way)

After having written so many poems on love...somebody requested me to write a poem on hatred. Well, many of my friends who know me closely always said that I will not be able to fulfill this request as hatred is something that I never could express in my peoms earlier also in its entirety. I could not express the absolute hatred of a hurt heart in my poems. Well, I tried my best but then it never took a good shape.

I am trying to express absolute hatred in this poem.

The poem is dedicated to all those who love to HATE.





नफरत की आंधी में मैंने
प्यार का जाम पिया हैं
प्याले छलक न जाए जानिब
ऐसा काम किया हैं ......


दिल, दुनिया और दर को छोड़
आज मैं आया हूँ खुदको पाने
तेरे आशिक से अच्छा सनम
दुनिया मुझे पागल माने .....


तुमसे करूं मैं प्यार क्यों ?
दुनिया हसीनो से खाली नहीं |
के प्यार मेरा अनमोल हैं
तुम्हे देने वाली गाली नहीं .....


सिमटते जज़बातों को ऐ हसीं
तेरे मरहम की ज़रुरत नहीं ....
मरता मैं मरता हूँ सही पर
तेरे रहम की ज़रुरत नहीं .....


समझती तुम हो भले के
मुझे कहीं लगी हैं चोट ...
बता दू मैं तुम्हे ऐ बेवकूफ
समझने में तुम्हारे है खोट


फूलों के वार से कभी
चोट पत्थर को लगते नहीं ...
हवा कितनी भी गर्म हो पर
गहरी नींद से हम जागते नहीं ....


हमारे सपने भी आज कल
इंतज़ार तेरा करते नहीं ...
तेरी झूठी बातों पर अब
हमारे अरमान मरते नहीं ....


मेज़ पर तेरे ख़त रख कर
राख उन्हें मैंने किया हैं ...
जो रिश्ता कभी था ही नहीं ...
उस रिश्ते को जला दिया हैं ...


तेरे तोहफे...तस्वीरे तेरी
डस्ट-बिन को सपूत हैं
याद तुम्हारी नहीं आयेगी
दिल मेरा मज़बूत हैं ......

तुम समझती हो कहीं
किसी देश की रानी हो तुम
माफ़ करना ऐ नासमझ
गटर का गन्दा पानी हो तुम ...

इस जहाँ में अगर कभी
जनानो का निकले जनाज़ा
तो कब्र में तुम पहले जाओ
उसमे ही आएगा मज़ा

जो मरते तुम्हारे सुर्ख गालो पर
गालिओ के मोहताज है वोह
तारीफ़ जो करे तेरे खुले बालो पर
गधो के सरताज है वोह ....

जब देखा अन्दर से तुम्हे
लगी तुम बहुत भद्दी
जैसे के रेशमी डब्बे में
बंध हो कागज़ की रद्दी ....

मोहब्बत जो तुझसे किया
खता मुझसे हो गयी
जाना जब तेरे चेहरे को तो
एहसासे कहीं सो गयी ...


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