LIFE.....a four lettered word...like any other four lettered words used these days. However, is it only about these four letters that a particular life can be confined to? Life is not about living...it is about completing a journey? I remember the dialogue in the movie ASOKA in which the emperor asks a monk "Who can be more accomplished than an emperor?" and the monk replies "A traveler. A traveler who completes his journey." What a philosophy to define life in simple words. This journey of heartbeats, thoughts, memories, love, hatred, feelings, logic, avarice and many other characteristics is endless and many a times ends without a destination. The purpose of the life is to complete this journey so that nothing remains incomplete.
I have, in my poem below tried to explain these aspects of life.
होठों के फासलों के बीच हैं
हंसी और ग़म का तकाजा
ज़िंदगी हंसीं हैं पर फिर भी रुलाती हैं
शायद ज़िंदगी का येही हैं मज़ा ....
जीना पड़ता हैं किसी किसी को
और कोई यूँ ही जी लेता हैं ....
कोई नुमाईश करता अपने ज़ख्मो का
तो कोई ज़ख्म सी लेता हैं ...
सख्त परतो के बीच में हैं यहाँ
नर्म मलाई की कुछ परतें
कोई ज़िंदगी के सखते से घबराता
तो कुछ मलाई के फिसलन से डरतें ...
पढ़ाती क्यों यह ज़िंदगी आखिर
हर पल एक नया पाठ हैं ???
इस ज़िंदगी में सांसें अकेली नहीं
ग़म और ख़ुशी की साठ-गाठ हैं ...
सवाल ये भी उठता हैं मन में
ज़िंदगी की आखिर ज़रुरत क्या हैं?
जवाब तभी मिलता मुझे हैं के
इस सवाल में भी ज़िंदगी की सूरत हैं |
होती अगर न ज़िंदगी तो
सवाल जवाब होते कहाँ ?
सन्नाटो से भरे जहाँ में फिर
हिसाब-किताब होते कहाँ ?
सर फिरे इस दुनिया में आज
ढूँढता मैं हूँ ज़िंदगी के माने
ज़िंदगी मेरी क्या है ..क्यों हैं ...
ये बनाने वाला ही जाने ....
जानू मैं बस आज इतना की
न जीत मिली न हार मिला
ए ज़िंदगी तेरे होने से बस मुझे
कुछ लोगों से प्यार मिला ...
इस प्यार को मैं दौलत मानु
या मानु इसे मैं पल खुशगवार
जो भी हुआ बस अच्छा ही हुआ
ज़िंदगी के लिया मैं हूँ तैयार ........
Live life....complete the journey....
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