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इंतज़ार का वो एक पल
जब तेरी धड़कने थोड़ी रुकी थी
मेरी तलाश में जब
आँखों की पलकें यूँ झुकी थी
याद है आज भी मुझे वो तेरा वक़्त से रूठना
कैसे भूलों में वोह लड़प्पन का ज़माना ........
दिल के यूँ धड़कने का जब
मतलब मुझे पता न था ,
तुझे यूँ रिझाने का जब
करतब मुझे पता न था
नशे में झूमने के लिए जब काफी था तेरे आँखों का पयमाना
कैसे भूलूँ मैं वोह लड़प्पन का ज़माना ......
कोने से मेरे खिड़की के
देखता मैं जब बादल तेरे बालों में
झंकार सी यूँ होती थी मेरे दिलमे
जब हिलकारें पड़ती तेरे गालों में|
तेरे गालों के उन हीलकारों में डूबने में मेरा मन क्यूँ माना
कैसे भूलूँ मैं वोह लड़प्पन का ज़माना .......
जब तुम कभी बहाती थी आंसूं
तो आग क्यूँ लगती थी मेरे हर मकाम में ?
तुमसे मिलना ... तुम्हे मानना... देखना तुम्हे यूँ ही
कहीं सुबह घुल जाती थी शाम में?
तेरे उन आसुओं में मेरा यूँ ही तर जाना ......
कैसे भूलूँ मैं वोह लड़प्पन का ज़माना .........
तुम हो आज कहीं दूर या पास
पता नहीं क्यूँ फिर भी मुझे हैं आस
दुआ दे रही हो तुम कहीं मुझे उठाके अपने हाथ
चली तो फिर भी गयी तुम यु पल भर निभाके साथ
तुम नहीं हो पर फिर भी तुम्हारा मुझे याद आना
सच है !!!! नहीं भूलता मुझे वोह लड़प्पन का ज़माना ........
With lots of love.....
Kalyan
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