Wednesday, August 25, 2010

Intezaar tumharey nazron ka ( waiting for that one sight)

Sometimes love is all about one sight of goodness that is showered upon somebody who loves you. There are people who are "practical", "Pragmatic", "real", "robust" but yet are captured in this unnerving feeling called love. This poem written by me is for those "Pragmatic" people who are so much in love but yet abashed to confide their feelings. This is a very rude sequel to my earlier poem pyaar chhupana. One can have a kind of a feeling of chauvinism in this poem, however this is how a "Practical" Man is, waiting for a confident signal, which is very rare to come.



बेरुखी तुम्हारी एक आदत सी बन गयी है
हमें यूँ बुलाना.... फिर हमही से नज़रें चुराना
एक शरारत सी बन गयी है ;
दिल तुम्हारा भी जानता है की प्यार तुम्हे हम से है
फिर तुम्हारा यूँ प्यार छुपाना
हिमाकत सी बन गयी है |

मेरी मोहाब्बत का इल्म तुम्हे होगा
मुझे इस पल की उम्मीद नहीं है शायद ;
मेरे धडकनों की ज़बान तुम समझोगी
मेरे दिल को इसकी ताकीद नहीं है शायद ;
पर जानता हूँ की बेक़रार तुम भी उतनी हो मेरे बिना
मेरे वीराः में निसार तुम भी उतनी हो मेरे बिना |


मौसम आज कहीं मुझे इशारा कर गयी है ,
मेरे ठंडे अरमानो में कुछ शरारा कर गयी है
कहते है ये बादल मुझसे के तुझपे मैं कुर्बान हो जाऊं
तेरे हर अंदाज़ पर यूँ ही मैं बेजुबान हो जाऊं |
दिल की सुनु मैं .....या सुनु मैं इस कमबख्त अक्ल की
सुरूर में तेरे झूमू में .......या देखू तासुर तेरे शक्ल की |


कहती कुछ नहीं तुम मुझसे पर
नज़रें बयां करती हैं हाले-दिल तुम्हारा
होठों से कलियाँ फूटती नहीं हैं,
पर आँखें करती हैं बेख़ौफ़ इशारा |
इशारों पे तुम्हारे भी मैं जी लूँगा
आँखों से तुम्हारे यु जाम पी लूँगा |
पर शायद ये ज़माने का तरीका नहीं है
दिल लगाने का सनम ये कोई सलीका नहीं है |


चाहता मैं तुम्हे बहुत हूँ ,
इसलिए तुम्हारे पास पास रहता हूँ
भूल से भी कोई भूल न हो तुम्हारे साथ
रब से ये बार बार कहता हूँ |
तुम सुन नहीं सकती मेरे खामोश दुआओं को
दिल अभी भी तुम्हारा अनजान हैं ,
कानो को अपने यूँ तकलीफ न दो ,
ये दुआएं मेरे दिल की ज़बान हैं |

मैं सिकंदर हूँ मेरे जहाँ का फिर भी
शिक़स्त मैंने खाई है उन पलकों की छाओं में,
मेरा वार चलता है हर सूबा में पर
धडकना अभी भी कहीं गिरवी है तेरे पाओ में |
ज़िंदगी की खैर मैं माँगता नहीं तुझसे,
मांगना मेरी शायद आदत नहीं हैं ;
गर तू मुझे न दे मेरे ज़िंदगी यु ही
मन मैं लूँगा की तुझे भी मोहब्बत नहीं हैं |

क्या तुम मेरे आँखों में मेरा प्यार देखती नहीं हो ?
उन दबे होंठों में इज़हार देखती नहीं हो?
मेरे रूखे से आवाज़ में क्या नहीं सुनती तुम तुम्हारी पुकार ?
क्यों बहरी हो तुम मेरी तरफ .....क्यों रहती हो परे मुझसे बार बार?
फिर भी खामोश ये मन क्यों तुम्हे चाहता है,
तुम्हारे बिना क्यों ये बेचैन रहता है ?

अगर कहीं तुम समझ न पाओ इस दिल की ज़बान को
तक़ल्लुफ़ न करना तुम ......न देना तकलीफ अपने अरमान को ........
करूंगा मैं तब भी इंतज़ार तुम्हारे नज़रें करम का
सकत दिल जो तुम्हारा है.....उसके नरम होने का |



So be a bit imaginitive. Sometime being practical doesn't pay off.

Kalyan

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