The poem below mentions a pityful condition of this country....totally shattered with the deaths of farmers.


बेसबब आज क्यों कोई
आँखें लाल करता है...
बेवजह क्यों कोई
अपनी मौत मरता है?
जो शख्सने सींचा ज़मीन को
कभी खून से कभी पसीने से;
उस इंसान को कहीं रोका है
इस वतन ने जीने से ......
मेरा तेरा और सबका
पेट जो दिन-भर भरता है
कहीं किसी कोने में इस मुल्क के
खामोश मौत मरता है |
कभी सुखा तो कभी बाड़
कुदरत की हर मार वो सहता है|
हो नमी ज़मीन पर या आंसूं आँखों में
हमसे कुछ न कहता है |
सोला सिंगार हम करते है जब
अकेला वोह बारिश की राह ताकता है|
हम तो कुछ कदम चल कर थक गए
पर किसान कभी न थकता है |
क्यों फिर इस वतन में
उसे हक अपना मिलता नहीं,
क्यों आखिर संसद में कोई
उसके कारण हिलता नहीं |
बंगाल हो, गुजरात हो
या हो महाराष्ट्र की ज़मीन;
किसान हमेशा दुखी है
ये तुम आज कार्लो यकीन |
आज़ादी के चौसठ साल
पर किसान अभी भी भूखा है;
देखो इस देश की हालत
जहाँ है शोपिंग - मॉल की हरियाली
और कहीं सुखा है |
जो अनाज तुने खरीदा दाम देके
चक्मकते शोपिंग मॉल से ....
खून में डूबा अनाज है वोह
देखले उसे तू नज़रों में तोल के |
सरे बाज़ार क्यों होती है
त्योहारों की किलकारी ;
दिवाली में अँधेरा है किसान के घर
और होली में है खून की पिचकारी |
बज रहा है डंका कहीं
ऐश्वर्या और उन्नती का
अनजान है अन्नदाता कही
देश के इस गाती का |
सेलफोन की घंटी कहीं
कहीं है एस एम् एस का जलवा
किसान के घर में बस पड़ा है
दुःख और चिंता का मलबा |
वोट मांगते नेताजी भी
दुखसे उसके अनजान है ;
शायद किस्मत है इस देश की
जो रजा ही इसका बेईमान है |
कभी फांसी, कभी ज़हर
तो कभी नाहर में लाश तरता है
है रे भारत ; किसान यहाँ
क्यों अपनी मौत मरता है |
ऐ खुदा है कहीं तो
ज़मीन पर आ के देख ज़रा
किस तरह तेरा अक्स भी
आईने से डरता है |
अनाज उगाके शायद कहीं
गुनाह उसने किया हो शायद;
सारा मुल्क जहां चैन से सोया
वोह भूखी राते जगता है |
हिन्दुस्तान की अवाम उठो
करो कुछ देश के सन्मान का |
पेट अपना बहुत भरा है
अब पेट भरो किसान का |
Save the Farmer..... Save India.