People say that beauty lies in the eyes of the beholder. But what to do when the beholder himself is not aware of what or where the real beauty is lying. The beholder itself is confused about the fact that whether to praise the beauty that he is actually seeing, that is actually visible, conscious or whether to actually drill deep and look for the beauty that lies beneath. Beneath somebody's heart and somebody's soul. The poem is about the quest for beauty, about a person who felt that he knew what beauty was but then alas found out that what actually he was praising, was nothing compared to what he finally missed out to praise.
आँखों ने मेरे कहाँ मुझसे
मेरी नज़रों की ज़रुरत है तू ,
मेरी आँखों से खुदको देख
कितनी खूबसूरत है तू|
बेवजह अपने अक्स को तू
क्यों कोसा करती है ...
साँसों में तेरी इतनी ताजगी
फिर क्यों तू मरती है .....
पल भर में तू शोला है तो कभी शबनम है तू
खूबसूरत सा कोई पैघाम है तू.....
आईना मत देख तू यह तो एक छलावा है
खूबसूरती तेरे दिल में है ...बहार बस दिखावा है ...
रेगिस्तान में जैसे खिला हो फूल बावल पर
लिखा हो जैसे किसीने सहलाई से चावल पर
कभी शक्स है तू ...तो कभी मूरत है तू
मेरी आँखों से देख खूबसूरत है तू.......
होठ तेरे गुलाबी कहते है
कारीगरी है ये अजब कुदरत के
आँखों के इशारे जैसे ....
रह देखाते है मुझे जन्नत के....
नीले लिबाज़ ओढ़े चांदनी रात में तू समंदर सी लगती है ...
देखकर तुझे कुछ अरमान मेरे अन्दर जगती है ...
फिर भी तुझे क्यों नहीं है तेरे हुस्न पर घूमान
खूबसूरत है इतनी तू फिर भी नहीं कोई अभिमान
शायद तेरी येही अदा तुझे बनाती खूबसूरत है
इंसान से शायद येही तुझे बनाती मूरत है
हाय मैं क्या करूं के देख न पाया मैं इस अंदाज़ को ...
तेरी हर ख़ामोशी में सुन न पाया इस सुन्दर आवाज़ को
पता मुझे है की किस्मत मेरी खराब है शायद
के सिर्फ मैंने जो देखा वोह तेरी सूरत है .....
आज जो जाना मैंने बात गहराई से
तो सच .....लगा मुझे ....तू कितनी खूबसूरत है
खूबसूरती के नए बिम्ब रचे हैं आपने...
ReplyDeleteThank you Ravijee, Aapko pasand aaya, yehi mere liye inaam se badhkar har.
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