Friday, September 17, 2010

Intezaar ki aadat (When waiting becomes a habit)

There are instances when we see people wait a lot for their beloved. Our thought process may indicate the fact that these people are actually giving too much weight age to a cause that is very trivial. They might be just overwhelmed by a slight response of love that may have come their way. However, what eyes see and what minds interpret are not always the truth. There are some people who really love to wait, especially when it comes to waiting for the beloved. For them waiting is a habit; and it really gives them a good high when they wait for the beloved. The poem written by me below is actually depicting the emotion of such people who love to wait in love.




इंतज़ार में तुम्हारे मैंने आखों को खुला रखा
के दिल को है ऐतबार की होगा तुम्हारा आना;
जन्नत से बुलावा जो मेरा आया तब मैंने
यूँही टाल दिया मेरा जन्नत में जाना |

कहते है कुछ पागल की आज दिन है मिलने का
पर लगता है की अभी भी कुछ और दिन बाकी है,
महखाने में ताला लगा है जबसे तेरे आँखों से पिया मैंने,
हर मधुशाला में बेकार बैठा साकी है |

तुम आओगी इस उम्मीद पर मैंने
अभी भी बचा राखी है मेरी कुछ साँसे ;
एहसास कहीं यूँही कुचल न जाये वक़्त के पाव तले
तभी मैंने दबाके राखी है बहुत से एहसासे |

कभी खिड़की के पास तो कभी दरवाज़े पर
टिकाके रखता हूँ मैं हर ओर नज़र ;
शायद किसी आहट में मिले तेरा संदेसा
कभी तो हो इस रात की सेहर |

कई साल महीने यूँही शायद बीत गए
पर इंतज़ार तुम्हारा मेरा नहीं हुआ पूरा
ज़िंदगी की शाम में बैठा सोच रहा हूँ
की कहीं ये ज़िंदगी तुम्हारे बिना है अधूरा |

आज भी सुबह - सुबह पारिजात के फूल खिलते है
आज भी ओस गिरते है हरे हरे घास पर ;
तुम्हारा न होना फिर क्यों इतना खलता है मुझे
क्यों करती हो आज भी राज तुम मेरी हर सांस पर?

तुम मेरे साँसों में बसी हो,
नहीं हो तुम कोई बारह या चौदा का पहाड़ा ;
भुलाऊं तुम्हे तो कैसे भुलाऊँ
कैसे मारू अपने पाव पर कुल्हाड़ा ?

दीदार फिर से तेरा गर नसीब में नहीं है,
तो फिर तेरा इंतज़ार ही सही |
ये बेरुखी तेरे तरफ से जो है सो है ,
उस बेरुखी के एवज में मेरा प्यार ही सही .......

मेरा प्यार तेरे लिए पैघाम है ख़ुशी का
नहीं हैं ये कोई ग़म का इशारा,
डूबते कश्ती का मैं कोई मुसाफिर नहीं हूँ
जिसे चाहिए हो तिनके का सहारा |

करता हूँ इंतज़ार क्योंकि तेरी राह तकना अच्छा लगता है ,
तेरे मासूम जिद्द के आगे कभी कभी झुकना अच्छा लगता है |


Love,

Kalyan

1 comment: