Monday, December 19, 2011

दिल का रेगिस्तान (Dessert of Heart)



रुलाया तुमने दिलको मेरे जब
दिल में कहीं हसीं की कमी थी .....
आँखें तो फिर भी लगते थे सूखे सूखे से
क्योंके दिल में तेरे चोट की नमी थी ......

चाहत सिर्फ मुझे नहीं पर तुमको भी तो थी सनम
जिस चाहत का भरते थे दम अब उके ही तुमने तोड़े कसम

खैर छोडो ये बेकार की बातें
पत्थर कभी बातो से पिघलते कहाँ ....
वक़्त की चोट एक कील सी होती है जानिब
रेत की तरह हाथों से वोह निकलते कहाँ .....

सूखे अरमानो को शायद कहीं तेरे प्यार का था वहम
भूल गया था नादान दिल ये की तेरे इरादे है बे रहम ....

तालीम का बाज़ार (The education market......)

I was having a talk with one of my friends, who was actually telling me the pathetic situation of school admissions in this country. Not that I have not been through the same ordeal when I was trying to avail the admission for my daughter, this however, reminded me of that time when one had to go door to door for providing his/her ward the essential thing called education. In India, unfortunately, the government is not accountable for the money it collects from the people, especially when it comes to providing education to their kids. There is education cess but when it comes to providing education facilities to the people of this country at that time there is no commitment from the government.

Due to this education has become a big business. And nowadays this business is a money guzzling proposition withoug a guarantee of Quality.

The poem below deals with the same issue.





ज़माने की तेज़ हवा का है
असर है इतना ज़ोरदार ...
बचपन के पल बिकते है इस ज़माने में
खुलता है अब तालीम का बाज़ार

सुना था हमने किसी ज़माने में
जन्नत मिलता पढ़ाने से है ...
अब पढने का मौका नहीं मिलना आसान
तालीम मिलता नोट बरसाने से है ....

स्कूल हो , हो कोलेज या फिर हो कोई संस्थान
तालीम का होता व्यापार लेके नोटों का दान ....

शिक्षा चाहे मिले बछो को या फिर मिले शिक्षा का सामान,
कहलाने को शिक्षित पर होना चाहिए
धन का आदान - प्रदान .......

प्रिंसिपल जी बैठे कुर्सी पर देने क्यों शिक्षा का ज्ञान
हाथ में उनके भी है खुजली जब तक
न मिले धन का सामान .......

अ आ इ ई दूर की बात है,
नहीं देंगे मौका ये कलम उठाने का
न अगर दिया इनको नोटों की गड्डी तो
जगह नहीं मुह छुपाने का .....

सर पीटे माँ बाप इस देश में
देश का बना क्या हाल हैं ....
सौ करोड़ की है आबादी पर
हम शिक्षा में कंगाल है ....

पाठशाला के पवित्र स्थान पर
बैठा ये कौन चोर हैं .....
शिक्षा से नहीं नाता जिसका ...
बस दिखावे का ये मोर हैं ..

पल भर भी अगर देखे तो फिर
ये बदलाव से वतन बेज़ार ....
चाहिए तरक्की, चाहिए तेज़ी ....
इसीलिए शायद तालीम का बाज़ार ....

लोकसभा में कुछ कौवे, काई काई से करते हैं
देंगे सबको ऊंची शिक्षा , इसका भी दम भरते है
सच मगर अलग है यारो, चोरो का पूरा परिवार है
हिस्सा इनका भी बटता है यहाँ , जो शिक्षा का बाज़ार हैं ....

Saturday, December 17, 2011

जब चाँद ज़मीन पर उतरती है ........(Heavenly beauty...just before me)

Not long ago, only yesterday I saw a sight that was heavenly... Dr Nidhi Verma, making her entry to the party. Just reminded me that can such a romance exist between doctors. Well, if doctors are so beautiful, I would preffer to remain sick all my life.

Honestly, her beauty made me sick....No, don't take me in the other sense. It made me sick because I wanted to be treated by her. I wish we had more doctors like her......Awesome.......Kamaaal HAIN!!!! Dhamaal HAIN!!!!!!! BEMISAAL HAI!!!!!




सर्दी की रातों में जब हर आवाज़ बुलंद होती हैं
आँखों में किसी नज़र का नशा यूँ ही मंद मंद होती हैं
दिल बेचैन और चंचल नैन जब अँधेरे में घूमती फिरती हैं
क़यामत से पहले ही होता क़त्ले आम जब चाँद ज़मीन पर उतरती हैं ....

साँसों का शोर जब होता इतना
के दिल और दिमाग में हो अन बन
दिल तो कब की वोह ले गयी अपने साथ
तो कैसे वो दिल अब सुनाये धड़कन

नशा जितना शराब में हैं उससे कहीं ज्यादा नशा
सिर्फ देखने भर से तुम्हे क्यों मुझे आया खुमार हैं
के अगर कहीं इस जहाँ में हकीम तेरे जैसे हो तो ....
शान से हम कहते हैं की हम बीमार हैं .....

चेहरा साफ़ और नियत पाक तेरी
हुस्न ऐसा, की इश्क आहें भरता हैं
होगा कोई मुख ही जो कहता हो
के तुझपे नहीं वो मरता हैं .......

बहुत कम ही होता है ऐसे जब दिल के पार
अरमानो की आंधी यूँ गुज़रती हैं .....
महफ़िल में तेरे आने से ही तो ...
चाँद ज़मीन पर उतरती हैं .......

Friday, December 16, 2011

बला की हसीं .....(Deadly beauty)




कोई ख्वाब है है कोई नयी जहाँ की है तू ....
ग़म से भरे दिल में जाने आयी कहाँ से तू ...
मुस्कुराता दिल है ये अब सारा जहाँ हसीं हैं
काले - सफ़ेद लफ़्ज़ों में अब बातें रंगीन हैं

चुप रहते जुबान पर अब आँखें कहाँ थकती हैं
देखती तुझे हर तरफ से नज़रें नहीं रुकती हैं ...
पल भर के लिए थमा जो था दिल जोर जोर से धड़कता हैं
ठन्डे जज्बातों में कहीं प्यार का शोला भड़कता हैं

लाल लिबाज़ में ढंकी तेरी योवन कहीं झांकती हैं
हर भूखे नज़र को ये अपने अंको से नापती हैं ....
संसार की तू माया हैं पर खुद तू एक पहेली हैं
सुबह का क्यों मुह ताके तू , रात तेरी सहेली हैं

बातें पिछले पन्नो से ......(Stories from earlier pages)

When somebody asks you or rather tells you that what would you do if you actually get an opportunity to go back to your life by say 10 or 15 years, them most of you would actually like to do some amends in your life. However, time has it's own priniciples. Time cannot travel back, it is not possible to actually bring back old times, never in this world at least. There are some steps that can only be taken in the forward direction. Life is like that of a bridge which keeps on disintegrating as you move ahead in your pace, thus eliminating any chances or even probabilities for you to take a step backwards.

Just as time, the mind has its own limitations. It is the work of the mind to actually keep on registering things and actually analyzing "What if I could do this again? What if I got another chance?". Thus begins the duel between time and a nostalgic mind, in which unfortunately and principally time and only time gets to be the victor. However in this duel what is left is that of a rememberance which can be taken as a momento for a lifetime. The poem below is actually an example of such a feeling.





अरसा बहुत बीत गया पर
कहीं अभी भी मैं वहीँ रहता हूँ...
पता है मुझे के सुना नहीं तुमने कुछ भी
पर शायद पुरानी वोही बात कहता हूँ .....
वक़्त के सिलवटों पर आज भी मैं कहीं
ढूँढता हूँ तेरे हसीं निशाँ .....
के बेरहम वक़्त ने भी कहीं भुला दिया
तेरे मेरे प्यार का जहाँ ......

उम्र ढली और सोच कहीं तो
होते गए और गहरे से ....
काली जुल्फे ....लहराते हुए
हो गए कुछ सुनहरे से ....
दिल का हर कोना कहीं आज भी
तुझसे महरूम सा हैं ....
ख़ुशी तो हैं कहीं इस जहाँ में पर
रूह कुछ गुमसुम सा हैं .....

ज़िंदगी के कल पुर्जे अभी
सलामत जैसे दीखते तो हैं
ख्वाब अभी भी नए बुनता हैं
अरमान कहानी लिखते तो है
पर कहीं एक खलिश है मुझे
साँसों को तेरी जुस्तुजू हैं
पन्ने वक़्त के पलटे फिर से
दिल को येहीं आरज़ू हैं .....

लगभग सब कुछ सही है पर
कहीं कहीं खामिया हैं ....
बेमिसाल सी इस ज़िंदगी में कहीं
मिसालो की कमियाँ हैं ...
हस्ते-ज़ख्म हरे हुए आज
खुशियाँ जैसे रो पड़ी हैं
माजी से जैसे कुछ हसीं पल
कुछ देर के लिए खादी हैं

फिर भी क्यों मैं छू न पाया
आज भी कुछ मैं कह न पाया
माजी के मेरे हसीं पालो में जैसे
पड़ा हो हकीकत का साया ...

फिर सोचता हूँ मैं कुछ गौर से
जो भी हुआ ....अच्छा हुआ
बंध किताब अब बंध ही रहें तो बेहतर
तुम सलामत रहों ....येहीं है दुआ ......

कुछ कदम होते ही ऐसे हैं
जो कभी पीछे मुड़ते नहीं
ये तो होते है जाते साँसों की तरह
जाने के बाद जान से जुड़ते नहीं ....

एहसास बस रहता हैं के था वो भी एक वक़्त सुहाना
कुछ जज़्बात कभी मरते नहीं...चाहे दिल हो कितना पुराना .....

Wednesday, December 14, 2011

From Confusion to Clarity......

Many a times our lives are filled with confusion. Our thoughts may be revolutionary but then they are contained and constrained by the rules of the world around us. In such a state arises confusion. This confusion may be deadly....It actually eats you up from within. However, when we kind of mask all the constraints of the world and believe in what we think of then there is clarity. Success and Failures are a function of this confusion and clarity....When we are clear then success is inevitable...however a confused state of mind always feels the burden of failure even though there has been an achievement of success in it.








ज़िंदगी के सफ़र में कहीं मैं थक जाऊं
तो मुझे, मेरे खुदा थोडा सहारा तुम देना ...
समंदर में छोड़ा तुमने है मुझे तो फिर
इस सागर में किनारा भी तुम देना .....

जानता हूँ मैं की काम मेरा मुझे ही तो है करना
पर बेसुरे साजो के बीच क्या जीना, क्या मरना

पता मुझे लगता नहीं क्या सच है क्या झूठ हैं
हर ख्वाहिश की लहरें सच्चे पत्थरो पर गए टूट हैं ...

सारा जहाँ छीखता है, कहता है के वोह मेरा हैं ...
अंधेरी गलियां कहती हैं "इस मोड़ के बाद सवेरा हैं"
क्यों मानु मैं बातें उनकी, बातें उनकी बातें हैं बस .....
सवेरे के झांसे में देते वोह काली रातें बस ....

ज़माने की आदत है बढ़ चढ़ के बातें करना
बेवकूफी है यूँही ज़माने के बातो पे मरना ...
लोग तो खैर लोग है कुछ भी वोह कहेंगे ...
ताले मेहेंगे है बाज़ार में जुबां पर कैसे लगेंगे

फिर भी ऐ दिल तू क्यों सुनता ज़माने के ताने ?
क्यों तेरा दिल हर झूठ को सच माने ?
सच क्या है ? क्या हैं झूठ इस जहाँ में
तेरा दिल क्या जाने ???

हसरतों के जाल में तू फसा है इस तरह
मांगो के दल-दल में तू धंसा है इस तरह
जैसे कोई भवरा फस हो गेंदे के फूल के बीच
जैसे कोई रु फासी हो नुकीले शूल के बीच

रूह को अपने तू कर आज़ाद
छोड़ खुला उसे इस नीले आसमान में
तोड़ बंदिशे तू अपने जिस्म की और
परिंदा बन उड़ इस सारे जहाँ में ....

न सूरज की तपीश न चांदनी चाँद की
रोके तुझे अब ऊंचा उड़ने से .....
खुदा भी अब खुद को रोक न पाए
तुझे उससे जुड़ने से ......

समंदर को न देख तू इस तरह
जैसे के वो हो कोई पानी का अम्बार
नजरो को अपनी तू बढ़ा इस तरह
एक छलांग में कर समंदर पार .....

सोच को अपने पर दे तू अब
उड़ ऊंचा खुले अम्बर में
कोई न हो रुकावट तुझको
इस आसमानी सफ़र में ....

जब तू खुद करेगा होसला
तब ही तेरी किस्मत खुलेगी
अगर तू हिला नहीं अपने जगह से तो
कैसे खजाने की चाबी मिलेगी ????

Tuesday, December 13, 2011

Percentage % Kills.....

যেমন যমন সময় এগিয়ে যাচ্ছে তেমন ভাবে কেন যেন আমরা আমাদের শিশুদের উপর এক রকমের চাপ চাপিয়ে দিচ্ছি | এটা সত্য কী আজকে প্রতিস্পর্ধা এত ভাবে বেড়ে গেছে কী আমরা সেই প্রতিস্পর্ধার সাথে পাল্লা দেয়ার জন্য আমাদের শিশুদের উপরে প্রবল চাপ চাপিয়ে দিচ্ছি | আমার শিশু যে আমার একটা দাঈত্ব সেই প্রত্যয় ভুলে আমরা আমাদের আকাঙ্ক্ষা ওদের ওপর দিয়ে পূর্ণ করার চেষ্টা করি | এই প্রক্রিয়া যে ওদের ওপর কোনো রকমের অত্যাচারের থেকে কম নয় সেইটা আমরা ভুলে যাই |

আমার এই কবিতাটি এই সমস্যার ওপর কেন্দ্রিত করে লেখা ......







ভারী ভারী বস্তা বোঝাই
ভেতরে বই রাশিকৃত
বস্তার ভারে ক্লান্ত বালক
শৈশব যে তার হলো মৃত ....

কত পড়া কত শুনা
কত যে তার আছে কাজ
পড়ার বোঝায়ে কোনো কনে
হলো খুন স্বপ্ন আজ ...

ছোট মাথায় চিন্তা বেজায়
প্রতীসতের প্রতিস্রুতী
ওপরে তার মা বাবার চাপ
করতে হবে উন্নতী ....

সাত প্রতিশত খাটনী যে তার
পচানব্বয়ী হবে আনতে
সা জাহানের কুকুরের নাম
সেটাও তাকে হবে জানতে ....

অবাক ভাবে দেখে যে সে
উন্মাদ এই জগত টা কে
ঈশ্বরের অরুচি যে লোক
দেখে সে ওই ভগত টা কে ...

কুকুর ছানা দেখে হিংসে
বেড়াল দেখে কাঁদে যে মন
পড়ার বইয়ের ভারে ব্যথা
ভাঙ্গলো কাঁধ আর ক্লান্ত তন

"চার পায়ে সুখে আছে
আমি দুখী দুটি পায়ে ..
আমার দুঃখ দেখে যদি
ইশ্বর আমায় কাছে নায় "

গুরুমশাই মারে না বেত আর
চাপিয়ে দেয় গৃহকাজ
করতে যে কাজ খালাস যান
মুখে যত কালি সাজ ...

বাবা বলে স্পর্ধা অনেক
না পড়লে পিছিয়ে পড়বে
আমি ভাবি বায়না বৃথা
পাগল লডাই কে লড়বে?

নাম না দিলে ভালো হত
আমি আজকে সংখ্যা মাত্র
কোটি কোটি জনের মাঝে
আরো একটা হাসির পাত্র ....

মা বলে ডাক্তার হতে
বাবা বলে ইন্জিনিয়ার ..
চাই যে আমি উড়তে স্বাধীন
কবে বুঝবে মনটা যে তার ????