Wednesday, January 11, 2012

प्यार......जो नहीं था ...(Love that wasn't)

Some chases end in a mirage and some targets are really not worth achieving. After giving your heart and soul you really find that whatever was done was not worth it at all. Is it a failure of Love? Is this the point where love actually ends? Actually, does love ever end? Subjective questions have subjective answers, but the fact is that it is really important to identify love and more important to identify what is not LOVE. And when it is really identified that what it was was anything but LOVE, there is no pain and there is no remorse.





इस तरह जुदा हुए तुमसे
जैसे कभी हम मिले न थे .....
फूल चाहतो के मुरझाए ऐसे सनम
जैसे दिल में फूल कभी खिले न थे .....

मोहब्बत अगर है तो क्यों है आखिर ?
क्यों आज भी मुझे है एहसास - ए - उल्फत ?
तुमसे जंग करूं भी तो करूं कैसे आखिर
न चाहते हुए भी मुझे है तुमसे मोहब्बत .....

खामोश एहसासों के बीच कहीं तो
सुर बजता है इश्क के इज़हार का ...
इनकार के फूलो जो झाड़ते लाभों से तेरे
सिंगार करते मोहब्बत के मज़ार का ....

सलीका इश्क का मेरा कुछ रूखा है
पर बेरुखी तो तुम्हारे अंदाज़ में भी है सनम
साज़ मेरे इकरार का कुछ बेसुरा सही
बेताल तुम्हारा साज़ भी है सनम ....

कभी मिले ही नहीं तो फिर ये
जुदाई का मुझे ग़म क्यों है ??
आंसूं आँखों में कभी आये ही नहीं
तो फिर इस रुखसत में आँखें नम क्यों हैं ?

प्यार जो नहीं था इस प्यार पे क्या अफ़सोस करना ?
ज़ख्म जब है ही नहीं तो दर्द क्यों महसूस करना ?

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