This poem doesn't certify the invalidity of a long distance relationship concept, but merely adds a negative attribute to the same.
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दूर कहीं कोई चट्टान फटे तो
आवाज़ उसकी आती हैं ....
कहीं जो गर दिल टूटे तो फिर
क्यों आवाज़ नहीं आती.....
तुम्हारे ज़िंदगी से जाने का एहसास तो है पर
ज़िंदगी क्यों तुझे याद करने से बाज़ नहीं आती?
छुपता जब है चाँद ये आसमान में तो
कहीं तो अँधेरा सा छाता हैं .....
पर यह कैसी खलिश तेरी हैं ज़िंदगी में
जो अँधेरे में रोशनी बरपाता है ???
क्यों मुझे ये इल्म नहीं के तेरा अक्स भी मेरे साथ नहीं ....
सीना आज भी मौजूद हैं पर दिल पे तेरा हाथ नहीं ......
खंजर के उतारते ही कहीं न कहीं
सुर्ख खून का बहना तो तय हैं ....
पर कैसा ये खंजर है तेरे इश्क का उतारा तुने
न बहा खून मेरा पर मरना तय हैं ....
तेरे इश्क के मीठे ज़हर ने कुछ इस तरह किया ज़हरीला
काला घाना सच भी आज मुझे लगता है रंगीला .....
तुम्हारी जुदाई हैं ये या फिर है कुछ बेफिक्र फासले .....
ठन्डे इश्क की ठंडक ने फिर बुलंद किये होसले ......
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