
इस तरह जुदा हुए तुमसे
जैसे कभी हम मिले न थे .....
फूल चाहतो के मुरझाए ऐसे सनम
जैसे दिल में फूल कभी खिले न थे .....
मोहब्बत अगर है तो क्यों है आखिर ?
क्यों आज भी मुझे है एहसास - ए - उल्फत ?
तुमसे जंग करूं भी तो करूं कैसे आखिर
न चाहते हुए भी मुझे है तुमसे मोहब्बत .....
खामोश एहसासों के बीच कहीं तो
सुर बजता है इश्क के इज़हार का ...
इनकार के फूलो जो झाड़ते लाभों से तेरे
सिंगार करते मोहब्बत के मज़ार का ....
सलीका इश्क का मेरा कुछ रूखा है
पर बेरुखी तो तुम्हारे अंदाज़ में भी है सनम
साज़ मेरे इकरार का कुछ बेसुरा सही
बेताल तुम्हारा साज़ भी है सनम ....
कभी मिले ही नहीं तो फिर ये
जुदाई का मुझे ग़म क्यों है ??
आंसूं आँखों में कभी आये ही नहीं
तो फिर इस रुखसत में आँखें नम क्यों हैं ?
प्यार जो नहीं था इस प्यार पे क्या अफ़सोस करना ?
ज़ख्म जब है ही नहीं तो दर्द क्यों महसूस करना ?