Tuesday, October 11, 2011

जब "जगजीत" ने छेड़ा साज़ ...... (When Jagjit ...Sang)

One of the most articulate ghazal singers, a person who made the tunes of ghazal simple enough for the common man to digest, understand and enjoy, Jagjit Singh has left for his heavenly abode on 10th October 2011. In the world of Ghazals he has created a void that will be almost impossible to fill. People like me have grown up listening to his Ghazals and the way he used to actually explain them in simple words was mind blowing. His live shows were a treat where we noticed a gamut of emotions among various people.

It is hard to believe that we will not see him in flesh and blood anymore but his voice and his memories will always be with us. My hindi poem below is a tribute to the maestro of Ghazal....A rare born prodigy....Jagjit Singh.





कभी तेरी कश्ती कागज़ की
तो कभी चाँद चौदवी ने दी आवाज़
हर ज़र्रा महका....हर कली खिली
जब "जगजीत" ने छेड़ा साज़ ......

ग़ज़ल, नज़्म न रहे बस
शौक कुछ नवाबों के ...
मैंने....तुने...हम सब जुड़े
जब सुर पिरोये ख्वाबो के .....

कभी हल्के से तो कभी उंदा
हर पल एक नया एहसास
हर ज़र्रा महका ...हर कली खिली
जब "जगजीत" ने छेड़ा साज़ ......

आवाज़ में कशिश..लफ्जों में वज़न
और कहीं सुरों में शरारत भी थी
ग़ज़ल के पुराने दौर में एक
नई सी हिमाक़त भी थी ......

दिल में कभी आग लगाती तो
कभी आँखों में आंसुओं के परवाज़
हर ज़र्रा महका ....हर कली खिली
जब "जगजीत" ने छेड़ा साज़ .....

कभी किसीने सोचा कहा के
ग़ज़ल में भी गिटार बजेगा ....
ताल तबलो के बजेंगे ऐसे ....
वाओलिन और सितार बजेगा

तुम जो गए तो खो गया कहीं है
ग़ज़ल का आनेवाला कल ....आज
हर ज़र्रा महका .....हर कली खिली
जब "जगजीत" ने छेड़ा साज़ ........

अब नहीं होगा ऐसे कभी
होता जो था प्यार का इज़हार ....
सुरों से महरूम रहेंगे अब
मोहब्बत का हर इकरार ......

खामोशी ये कैसी तेरी जो
कर गयी दुनिया को बे-आवाज़
हर ज़र्रा महका .....हर कली खिली
जब "जगजीत" ने छेड़ा साज़.

ग़ालिब, खयाम , अमीर और शिफाई
अब लगेंगे कुछ बे-सुरे से .....
फाजली, बक्षी और अख्तर के लफ्ज़
भी होंगे कुछ अधूरे से .......

गुलज़ार हो वोह या हो महबूब
हर शायर को है तुम पर नाज़
हर ज़र्रा महका .... हर कली खिली
जब "जगजीत" ने छेड़ा साज़ ......

खुदा को क्या इलज़ाम दे हम
शायद वहाँ भी महफ़िल सजी हो आज
तेरे जन्नत जाने से शायद, समां
जन्नत का कातिल हो आज .....

क्या करें हम इंसान जब खुदा को भी
दीवाना करे तेरी आवाज़ .....
की शायद जन्नत में भी महफ़िल हो आज
की "जगजीत" ने छेड़ा आज जन्नत में साज़ .......


Jagjit Singh will live on.......forever.........

2 comments:

  1. भइ बहुत खूब बन पडी है ये लाइने..कमाल् का मिक्स् किया है

    ReplyDelete