Tuesday, April 27, 2021

वो ना बोल रही है ( It is a No)


 Hi, 

I am not a very good writer of feministic poems as possibly I feel that feminism and women empowerment are masculine invented terms in order to distract the already elegant female population and putting them on a ground which is favorable for men.  However,  being a daughter's father it becomes apparent to understand about the prevalent dangers in the society.  


I am aware of freedom in relationships and equal rights given to the fairer sex, however my major concern is force. A no means always a no.  


वो ना बोल रही है


शायद तुमने ठीक से सुना नहीं,  वो ना बोल रही है

हाँ तुम,  जो उसके किरदार को कपड़ों से नापते हों। 

दिन भर करते तो हो बात तुम तेहज़ीब ओ वक़ार के

मगर शाम ढले तो गली कूंचे में अपनी आँख सेंकते हो। 

और आज कल तो ज़बानी तीर भी चल रहे हैं तुम्हारे 

उसे बेवजह छूने की भी एक तवील तमन्ना रखते हो। 

तुम्हारे दिल के बंध कमरो के राज़ वो खोल रही है। 

शायद तुमने ठीक से सुना नहीं,  वो ना बोल रही है।




तुम शायद उसकी "ना" में हामी का लेहजा ढूंढ रहे हो

या फिर जोराजोरी की हसरत तुम बखूबी रख रहें हो

"वो सिगरेट,  शराब पीती है तो शायद चल देगी साथ"

ऐसी शायद कोई  तक़रीर ज़हन में लिख रहे हो। 

मगर कपड़े,  ज़ायके,  ये कब से मंज़ूरी के नुमाइंदे हुए?

ये बस होते है वैसी आदतें कि जैसे तुम्हारी भी है। 

पर ये परवरिश है तुम्हारी जो उसको हल्का तोल रही है। 

शायद तुमने ठीक से सुना नहीं,  वो ना बोल रही है।


तुम्हारे घरवाले शायद ये बातें बखूबी सिखाते होंगे तुम्हें 

"लड़की के चाल चलन अच्छे नहीं  है, न जाने कैसी है,

सिगरेट, शराब के साथ न जाने क्या क्या शौक रखती हो"

एक पल के लिए मान भी ले अगर ये सब सच है तो क्या? 

ज़िंदगी उसकी हैमर्ज़ी भी उसकीतुम कोई मुंसिफ नहीं 

उसकी बेपरवाह अदाएँ, तुम्हारे लिए कोई  दावत नहीं। 

मगर ये खयाल बस तुम्हारे ज़हन में ज़हर घोल रही है। 

शायद तुमने ठीक से सुना नहीं,  वो ना बोल रही है।


उसकी ना में अपनी हा ढूंढने वाले ज़रा अब रुक जा।

फिल्मों से सीखा है तुने यहाँ पर इश्क़ का सबक कोई ।

तेरी तालीम हुई है बेगैरत पर्दो की आड़ में समझता हूं

पर इस तरह से इश्क़ मुकम्मल न हुआ अब तक कोई। 

कर सको तो एक बार उसके इंकार का एहतराम करों

इश्क़ होता है महीन जज़्बा,  इसे यों न तुम बदनाम करों। 

मगर ये ग़लीज़ खयाल हैं जो तेरा खून उबाल रही है। 

शायद तूने ठीक से सुना नहीं,  वो ना बोल रही है।


------------ ZalZala

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