Monday, December 19, 2011

दिल का रेगिस्तान (Dessert of Heart)



रुलाया तुमने दिलको मेरे जब
दिल में कहीं हसीं की कमी थी .....
आँखें तो फिर भी लगते थे सूखे सूखे से
क्योंके दिल में तेरे चोट की नमी थी ......

चाहत सिर्फ मुझे नहीं पर तुमको भी तो थी सनम
जिस चाहत का भरते थे दम अब उके ही तुमने तोड़े कसम

खैर छोडो ये बेकार की बातें
पत्थर कभी बातो से पिघलते कहाँ ....
वक़्त की चोट एक कील सी होती है जानिब
रेत की तरह हाथों से वोह निकलते कहाँ .....

सूखे अरमानो को शायद कहीं तेरे प्यार का था वहम
भूल गया था नादान दिल ये की तेरे इरादे है बे रहम ....

तालीम का बाज़ार (The education market......)

I was having a talk with one of my friends, who was actually telling me the pathetic situation of school admissions in this country. Not that I have not been through the same ordeal when I was trying to avail the admission for my daughter, this however, reminded me of that time when one had to go door to door for providing his/her ward the essential thing called education. In India, unfortunately, the government is not accountable for the money it collects from the people, especially when it comes to providing education to their kids. There is education cess but when it comes to providing education facilities to the people of this country at that time there is no commitment from the government.

Due to this education has become a big business. And nowadays this business is a money guzzling proposition withoug a guarantee of Quality.

The poem below deals with the same issue.





ज़माने की तेज़ हवा का है
असर है इतना ज़ोरदार ...
बचपन के पल बिकते है इस ज़माने में
खुलता है अब तालीम का बाज़ार

सुना था हमने किसी ज़माने में
जन्नत मिलता पढ़ाने से है ...
अब पढने का मौका नहीं मिलना आसान
तालीम मिलता नोट बरसाने से है ....

स्कूल हो , हो कोलेज या फिर हो कोई संस्थान
तालीम का होता व्यापार लेके नोटों का दान ....

शिक्षा चाहे मिले बछो को या फिर मिले शिक्षा का सामान,
कहलाने को शिक्षित पर होना चाहिए
धन का आदान - प्रदान .......

प्रिंसिपल जी बैठे कुर्सी पर देने क्यों शिक्षा का ज्ञान
हाथ में उनके भी है खुजली जब तक
न मिले धन का सामान .......

अ आ इ ई दूर की बात है,
नहीं देंगे मौका ये कलम उठाने का
न अगर दिया इनको नोटों की गड्डी तो
जगह नहीं मुह छुपाने का .....

सर पीटे माँ बाप इस देश में
देश का बना क्या हाल हैं ....
सौ करोड़ की है आबादी पर
हम शिक्षा में कंगाल है ....

पाठशाला के पवित्र स्थान पर
बैठा ये कौन चोर हैं .....
शिक्षा से नहीं नाता जिसका ...
बस दिखावे का ये मोर हैं ..

पल भर भी अगर देखे तो फिर
ये बदलाव से वतन बेज़ार ....
चाहिए तरक्की, चाहिए तेज़ी ....
इसीलिए शायद तालीम का बाज़ार ....

लोकसभा में कुछ कौवे, काई काई से करते हैं
देंगे सबको ऊंची शिक्षा , इसका भी दम भरते है
सच मगर अलग है यारो, चोरो का पूरा परिवार है
हिस्सा इनका भी बटता है यहाँ , जो शिक्षा का बाज़ार हैं ....

Saturday, December 17, 2011

जब चाँद ज़मीन पर उतरती है ........(Heavenly beauty...just before me)

Not long ago, only yesterday I saw a sight that was heavenly... Dr Nidhi Verma, making her entry to the party. Just reminded me that can such a romance exist between doctors. Well, if doctors are so beautiful, I would preffer to remain sick all my life.

Honestly, her beauty made me sick....No, don't take me in the other sense. It made me sick because I wanted to be treated by her. I wish we had more doctors like her......Awesome.......Kamaaal HAIN!!!! Dhamaal HAIN!!!!!!! BEMISAAL HAI!!!!!




सर्दी की रातों में जब हर आवाज़ बुलंद होती हैं
आँखों में किसी नज़र का नशा यूँ ही मंद मंद होती हैं
दिल बेचैन और चंचल नैन जब अँधेरे में घूमती फिरती हैं
क़यामत से पहले ही होता क़त्ले आम जब चाँद ज़मीन पर उतरती हैं ....

साँसों का शोर जब होता इतना
के दिल और दिमाग में हो अन बन
दिल तो कब की वोह ले गयी अपने साथ
तो कैसे वो दिल अब सुनाये धड़कन

नशा जितना शराब में हैं उससे कहीं ज्यादा नशा
सिर्फ देखने भर से तुम्हे क्यों मुझे आया खुमार हैं
के अगर कहीं इस जहाँ में हकीम तेरे जैसे हो तो ....
शान से हम कहते हैं की हम बीमार हैं .....

चेहरा साफ़ और नियत पाक तेरी
हुस्न ऐसा, की इश्क आहें भरता हैं
होगा कोई मुख ही जो कहता हो
के तुझपे नहीं वो मरता हैं .......

बहुत कम ही होता है ऐसे जब दिल के पार
अरमानो की आंधी यूँ गुज़रती हैं .....
महफ़िल में तेरे आने से ही तो ...
चाँद ज़मीन पर उतरती हैं .......

Friday, December 16, 2011

बला की हसीं .....(Deadly beauty)




कोई ख्वाब है है कोई नयी जहाँ की है तू ....
ग़म से भरे दिल में जाने आयी कहाँ से तू ...
मुस्कुराता दिल है ये अब सारा जहाँ हसीं हैं
काले - सफ़ेद लफ़्ज़ों में अब बातें रंगीन हैं

चुप रहते जुबान पर अब आँखें कहाँ थकती हैं
देखती तुझे हर तरफ से नज़रें नहीं रुकती हैं ...
पल भर के लिए थमा जो था दिल जोर जोर से धड़कता हैं
ठन्डे जज्बातों में कहीं प्यार का शोला भड़कता हैं

लाल लिबाज़ में ढंकी तेरी योवन कहीं झांकती हैं
हर भूखे नज़र को ये अपने अंको से नापती हैं ....
संसार की तू माया हैं पर खुद तू एक पहेली हैं
सुबह का क्यों मुह ताके तू , रात तेरी सहेली हैं

बातें पिछले पन्नो से ......(Stories from earlier pages)

When somebody asks you or rather tells you that what would you do if you actually get an opportunity to go back to your life by say 10 or 15 years, them most of you would actually like to do some amends in your life. However, time has it's own priniciples. Time cannot travel back, it is not possible to actually bring back old times, never in this world at least. There are some steps that can only be taken in the forward direction. Life is like that of a bridge which keeps on disintegrating as you move ahead in your pace, thus eliminating any chances or even probabilities for you to take a step backwards.

Just as time, the mind has its own limitations. It is the work of the mind to actually keep on registering things and actually analyzing "What if I could do this again? What if I got another chance?". Thus begins the duel between time and a nostalgic mind, in which unfortunately and principally time and only time gets to be the victor. However in this duel what is left is that of a rememberance which can be taken as a momento for a lifetime. The poem below is actually an example of such a feeling.





अरसा बहुत बीत गया पर
कहीं अभी भी मैं वहीँ रहता हूँ...
पता है मुझे के सुना नहीं तुमने कुछ भी
पर शायद पुरानी वोही बात कहता हूँ .....
वक़्त के सिलवटों पर आज भी मैं कहीं
ढूँढता हूँ तेरे हसीं निशाँ .....
के बेरहम वक़्त ने भी कहीं भुला दिया
तेरे मेरे प्यार का जहाँ ......

उम्र ढली और सोच कहीं तो
होते गए और गहरे से ....
काली जुल्फे ....लहराते हुए
हो गए कुछ सुनहरे से ....
दिल का हर कोना कहीं आज भी
तुझसे महरूम सा हैं ....
ख़ुशी तो हैं कहीं इस जहाँ में पर
रूह कुछ गुमसुम सा हैं .....

ज़िंदगी के कल पुर्जे अभी
सलामत जैसे दीखते तो हैं
ख्वाब अभी भी नए बुनता हैं
अरमान कहानी लिखते तो है
पर कहीं एक खलिश है मुझे
साँसों को तेरी जुस्तुजू हैं
पन्ने वक़्त के पलटे फिर से
दिल को येहीं आरज़ू हैं .....

लगभग सब कुछ सही है पर
कहीं कहीं खामिया हैं ....
बेमिसाल सी इस ज़िंदगी में कहीं
मिसालो की कमियाँ हैं ...
हस्ते-ज़ख्म हरे हुए आज
खुशियाँ जैसे रो पड़ी हैं
माजी से जैसे कुछ हसीं पल
कुछ देर के लिए खादी हैं

फिर भी क्यों मैं छू न पाया
आज भी कुछ मैं कह न पाया
माजी के मेरे हसीं पालो में जैसे
पड़ा हो हकीकत का साया ...

फिर सोचता हूँ मैं कुछ गौर से
जो भी हुआ ....अच्छा हुआ
बंध किताब अब बंध ही रहें तो बेहतर
तुम सलामत रहों ....येहीं है दुआ ......

कुछ कदम होते ही ऐसे हैं
जो कभी पीछे मुड़ते नहीं
ये तो होते है जाते साँसों की तरह
जाने के बाद जान से जुड़ते नहीं ....

एहसास बस रहता हैं के था वो भी एक वक़्त सुहाना
कुछ जज़्बात कभी मरते नहीं...चाहे दिल हो कितना पुराना .....

Wednesday, December 14, 2011

From Confusion to Clarity......

Many a times our lives are filled with confusion. Our thoughts may be revolutionary but then they are contained and constrained by the rules of the world around us. In such a state arises confusion. This confusion may be deadly....It actually eats you up from within. However, when we kind of mask all the constraints of the world and believe in what we think of then there is clarity. Success and Failures are a function of this confusion and clarity....When we are clear then success is inevitable...however a confused state of mind always feels the burden of failure even though there has been an achievement of success in it.








ज़िंदगी के सफ़र में कहीं मैं थक जाऊं
तो मुझे, मेरे खुदा थोडा सहारा तुम देना ...
समंदर में छोड़ा तुमने है मुझे तो फिर
इस सागर में किनारा भी तुम देना .....

जानता हूँ मैं की काम मेरा मुझे ही तो है करना
पर बेसुरे साजो के बीच क्या जीना, क्या मरना

पता मुझे लगता नहीं क्या सच है क्या झूठ हैं
हर ख्वाहिश की लहरें सच्चे पत्थरो पर गए टूट हैं ...

सारा जहाँ छीखता है, कहता है के वोह मेरा हैं ...
अंधेरी गलियां कहती हैं "इस मोड़ के बाद सवेरा हैं"
क्यों मानु मैं बातें उनकी, बातें उनकी बातें हैं बस .....
सवेरे के झांसे में देते वोह काली रातें बस ....

ज़माने की आदत है बढ़ चढ़ के बातें करना
बेवकूफी है यूँही ज़माने के बातो पे मरना ...
लोग तो खैर लोग है कुछ भी वोह कहेंगे ...
ताले मेहेंगे है बाज़ार में जुबां पर कैसे लगेंगे

फिर भी ऐ दिल तू क्यों सुनता ज़माने के ताने ?
क्यों तेरा दिल हर झूठ को सच माने ?
सच क्या है ? क्या हैं झूठ इस जहाँ में
तेरा दिल क्या जाने ???

हसरतों के जाल में तू फसा है इस तरह
मांगो के दल-दल में तू धंसा है इस तरह
जैसे कोई भवरा फस हो गेंदे के फूल के बीच
जैसे कोई रु फासी हो नुकीले शूल के बीच

रूह को अपने तू कर आज़ाद
छोड़ खुला उसे इस नीले आसमान में
तोड़ बंदिशे तू अपने जिस्म की और
परिंदा बन उड़ इस सारे जहाँ में ....

न सूरज की तपीश न चांदनी चाँद की
रोके तुझे अब ऊंचा उड़ने से .....
खुदा भी अब खुद को रोक न पाए
तुझे उससे जुड़ने से ......

समंदर को न देख तू इस तरह
जैसे के वो हो कोई पानी का अम्बार
नजरो को अपनी तू बढ़ा इस तरह
एक छलांग में कर समंदर पार .....

सोच को अपने पर दे तू अब
उड़ ऊंचा खुले अम्बर में
कोई न हो रुकावट तुझको
इस आसमानी सफ़र में ....

जब तू खुद करेगा होसला
तब ही तेरी किस्मत खुलेगी
अगर तू हिला नहीं अपने जगह से तो
कैसे खजाने की चाबी मिलेगी ????

Tuesday, December 13, 2011

Percentage % Kills.....

যেমন যমন সময় এগিয়ে যাচ্ছে তেমন ভাবে কেন যেন আমরা আমাদের শিশুদের উপর এক রকমের চাপ চাপিয়ে দিচ্ছি | এটা সত্য কী আজকে প্রতিস্পর্ধা এত ভাবে বেড়ে গেছে কী আমরা সেই প্রতিস্পর্ধার সাথে পাল্লা দেয়ার জন্য আমাদের শিশুদের উপরে প্রবল চাপ চাপিয়ে দিচ্ছি | আমার শিশু যে আমার একটা দাঈত্ব সেই প্রত্যয় ভুলে আমরা আমাদের আকাঙ্ক্ষা ওদের ওপর দিয়ে পূর্ণ করার চেষ্টা করি | এই প্রক্রিয়া যে ওদের ওপর কোনো রকমের অত্যাচারের থেকে কম নয় সেইটা আমরা ভুলে যাই |

আমার এই কবিতাটি এই সমস্যার ওপর কেন্দ্রিত করে লেখা ......







ভারী ভারী বস্তা বোঝাই
ভেতরে বই রাশিকৃত
বস্তার ভারে ক্লান্ত বালক
শৈশব যে তার হলো মৃত ....

কত পড়া কত শুনা
কত যে তার আছে কাজ
পড়ার বোঝায়ে কোনো কনে
হলো খুন স্বপ্ন আজ ...

ছোট মাথায় চিন্তা বেজায়
প্রতীসতের প্রতিস্রুতী
ওপরে তার মা বাবার চাপ
করতে হবে উন্নতী ....

সাত প্রতিশত খাটনী যে তার
পচানব্বয়ী হবে আনতে
সা জাহানের কুকুরের নাম
সেটাও তাকে হবে জানতে ....

অবাক ভাবে দেখে যে সে
উন্মাদ এই জগত টা কে
ঈশ্বরের অরুচি যে লোক
দেখে সে ওই ভগত টা কে ...

কুকুর ছানা দেখে হিংসে
বেড়াল দেখে কাঁদে যে মন
পড়ার বইয়ের ভারে ব্যথা
ভাঙ্গলো কাঁধ আর ক্লান্ত তন

"চার পায়ে সুখে আছে
আমি দুখী দুটি পায়ে ..
আমার দুঃখ দেখে যদি
ইশ্বর আমায় কাছে নায় "

গুরুমশাই মারে না বেত আর
চাপিয়ে দেয় গৃহকাজ
করতে যে কাজ খালাস যান
মুখে যত কালি সাজ ...

বাবা বলে স্পর্ধা অনেক
না পড়লে পিছিয়ে পড়বে
আমি ভাবি বায়না বৃথা
পাগল লডাই কে লড়বে?

নাম না দিলে ভালো হত
আমি আজকে সংখ্যা মাত্র
কোটি কোটি জনের মাঝে
আরো একটা হাসির পাত্র ....

মা বলে ডাক্তার হতে
বাবা বলে ইন্জিনিয়ার ..
চাই যে আমি উড়তে স্বাধীন
কবে বুঝবে মনটা যে তার ????

সোনা ......মনা......ইঁদুর - ছানা (The RAT RACE)

৯০%......৮০% .....এই ছিল আমার পূর্ববর্তী কবিতার সার | প্রতিসতের প্রবল চাপে অনেক সবুজ পাতা মন যেন সূকিয়ে কাঠ হয়ে গেছে | এই প্রতিযোগিতামূলক জগতে যেন হাঁটা তাও দৌডানোর মত হয়ে দাড়িয়েছে | আমার এই কবিতাটি এই ইঁদুর দৌডের ওপর কেন্দ্রিত করা | আমরা যত আগেই জাঈনা কেন, যখন আমরা আমাদের মনের কথা না শুনে দৌড় দি তখন আমরা কিন্তু সব দিক দিয়ে পরাজয়ের মুখ দর্শন করি | আমাদের মনে হয়ে কী আমরা অনেক আগে আর স্পর্ধায় শীর্ষ হয়েছি কিন্তু বাস্তবে আমাদের মনের অধগতী হয়ে আর উপলব্ধির অধপত্তন হতে থাকে | এটা ঠিক তেমনি যেমন কোনো জিনিস যেটা আমরা মনের মত খাই না সেটা আমাদের শরীরে লাগে না | আমি এই বলতে চাইছি না কী আমাদের যা মনে আসে আমরা তাই করে | সেই যুক্তি যদি দেয়া হয় তালে অনুশাসনের কোনো অর্থ থাকবে না কিন্তু আমরা যাই করি সেটা যেন আমরা মন থেকে মেনে নি সেটা খুব প্রয়োজনীয় |

এই ইঁদুর দৌড়ে জিতেও শেষে কিন্তু আমরা সবাই ইঁদুর এটা মনে রাখা উচিত অতএব আমাদের দরকার কী আমরা নিজেদের আর আমাদের ভবিষ্যতকে এই ইঁদুর দৌডের থেকে পৃথক করে দেখি | নিজের মনে একটু বিবেচনা করে দেখি, কত রকম ভাবে নিজেকে দাঁড় করা যায়ে | জীবনের মূল হলো সমৃদ্ধির সাথে স্থিরতা এবং বিশ্বাস কিন্তু যখন আমরা এই ইঁদুর দৌড়ে মগ্ন তখন আমাদের এই মূল মন্ত্র মনে থাকে না | আমরা শুধু এক অপরকে পরাস্থ করার জন্য কাজ করি এবং এর পরিনাম আমাদের জন্য খুব ঘাতক হয়ে | আমার এই কবিতা সেই ইঁদুর দৌডের ওপর সমর্পিত ......




মনের ভিতর কত বিচার
এদিক ওদিক দেয় হানা
সব চিন্তা এড়িয়ে গিয়ে
দৌড় দেয় দেখো ইঁদুর ছানা .....

জন্ম থেকেই বলে জনক
যেতে হবে অনেক আগে ...
কোথায় যাব জানে না সে
অন্ধকারে মন টা রাগে ....

সুনবে কখন কথা মনের
ভাববে কখন নিজের মত
প্রতিযোগিতার বিকট দানব
আনে মনে ঘেন্না যত .....

সবুজ পাতা মনটা যে তার
সূকিয়ে যায়ে চাপের তাপে
ছোট বয়েসেই কত বড় সে
সমাজ সেটাই বসে মাপে ......

পাঠশালাতে প্রথম শ্রেনী
হতে হবে খেলায় ভালো ...
মনটা জেতার খুঁজে বেড়ায়
অন্ধ যুগে মনের আলো .....

ভূগোল, গনিত আর ভাষাতে
হতে হবে খাটি সোনা .....
সব চিন্তা এড়িয়ে গিয়ে
দৌড় দেয় দেখো ইঁদুর ছানা .....

দেখে যখন একটা ইঁদুর
টপকে গেল পিঠ টা বেয়ে
দ্রুত বেগে ছোটে আরো
ইঁদুর ছানার পিঠে চেয়ে ..

কখন আমি পার পাব?
কখন যাব আরো আগে?
কখন দেখব চাঁদের পাহাড় ?
প্রশ্ন যত মনে লাগে .....

ইঁদুর দৌড় জিতে ছানা
ইঁদুর হয়ে ঘরে ফিরে .....
মনটা এখনো ভয়ে মরে
ফের যদি কেউ পিছু করে ....


জগত জুড়ে হাথের তালী
মনটা কেন করে অধীর
ইঁদুর দাউদের কোলাহলে
মনটা যেন হলো বধির ......

प्यार......दर्द......और सर्दी ( Love.....Pain and Winter.....)

With the onset of Winter in India...this poem is about Love...pain and its co-relation with Winter. After a long hiatus I have written this short poem....trying to burst my stress....



हवाओं ने आज जो दिया है
एहसास कुछ सर्द हैं.....
प्यार तुमसे है मुझे मगर
दिल में फिर भी दर्द हैं ......

खिड़की मेरे जज्बातों की
खुले तो....आई ठंडी हवा
ज़ख्मो ने कहीं कहा मुझसे
दर्द में ही तू ढूँढ दवा ....

ठण्ड है कुछ यूँ दिल में
रूह को सर्दी हो गयी
इस सर्दी के मौसम में
गर्म राहें खो गयी ....

साँसों के अंगार अब
लगते है सर्द आहें
सर्दी के मौसम में कहीं
सिमटी तेरी बाहें ....

उन बाहों को शायद
इंतज़ार है बहार का ...
दबे सुरों को शायद आज
दरकार है मल्हार का ...

फर्क नज़र आता नहीं मुझे
रकीब कौन है...कौन हमदर्द है ...
प्यार मुझे भी है मगर
दिल में मेरे दर्द है .......

एक सवाल है तू .......(The question....that you are)

One sight is what it takes to actually realise that you are in love. One spark is all it takes to ignite a fire. However, romance is really no so simple as a matter of a spark or a sight. Sometimes situations are wierd enough to actually provide you with the answers, but they are so jumbled up that you do not know which questions they belong to. At that moment a definite struggle begins. A quest begins. We start searching for questions.

Same is the case with beauty. Certain beauties are representatives of answers. These beauties are of that sort which you see and you are happy and satisfied. However, there are some, which actually belong to the category of question. Their beauty actually gives rise to many questions. These are the most deadly and lethal kind. The kind of beauty that actually keeps you intrigued, constantly engaged and constantly in a mood of quest. You are no more interested in the answer because you have them, however you just are more curious about the questions that arise from these beauties.





कभी तू है शरारत तो कभी गुमसुम है तू
कभी शैतान तो कभी मासूम हैं तू .....
कभी सर्द हवा तो कभी बवंडर का बवाल है तू....
जवाब तेरे कई है पर खुद एक सवाल है तू ......

कानो को देती तू तकलीफ नहीं
आवाज़ तेरी पहुँचती दिल तक है....
सुरों को कहीं बनाया ग़ुलाम तुने
चर्चे तेरे सडको से महफ़िल तक हैं ....
दूर हुआ जो दिलसे, बड़े दिनों बाद, वोह मलाल है तू
जवाब तेरे कई है पर खुद एक सवाल है तू ......

अदाएं बरसाके तुने बहुत लोगोको
किया तेरा दीवाना हैं .....
कौनसा ऐसा महखाना होगा जिसमे
तेरे नाम का नहीं पैमाना हैं .....
शराब का नशा तुझमे और रंग में गुलाल है तू
जवाब तेरे कई है पर खुद एक सवाल है तू ........

बाली, बिंदी, सादे लिबाज़ में
छलकती कितनी सादगी हैं ....
कैसे कहूं मई किस तरह तेरे बिन
गुज़रती मेरी ज़िंदगी हैं .....
पलकों के पीछे से जो खामोश बातें करती हैं तू
प्यार का समंदर है दिलमे पर ज़माने से डरती है तू ....
डर भी तेरा मुझे क्यों लगता बड़ा प्यारा हैं ....
के प्यार में न सही पर तेरे डर में अक्स मेरा हैं...
तेरी आँखें, तेरे होंठ तेरी बातें याद आती हैं ....
तेरी हर शरारत मुझे दिन रात सताती हैं
सर से लेके पाव तक बेमिसाल हैं तू ......
ढूंडा जो जवाब मैंने उसका सवाल हैं तू ........


Beauty can give rise to many questions.

दर्द नहीं.....पर फाँस हैं....(The pain lingers on......)

About 3 months ago I had written a poem by the title of "Saans abhi baaki hain" meaning that we still live on inspite of something that actually happens that doesn't allow us to live. However, there is always a pain involved and that lingers on in our lives, which I had not mentioned in that poem. Some moments back I realised that how it is to actually lose something then continue with life and then actually be detatched from it....Impossible.....Humanly Impossible.....There is always some pain...some pathos attached to the losing that lingers on with you.

This pain is more like a termite that eats you up from inside, slowly and steadily. It makes you take incoherrent decisions and sometimes make you lose the balance between the mind and the heart. Actually it is more like a thorn in the heart. All of us are actually staying with many such thorns in our hearts but living. Knowing that one day we will stop living also but carrying this thorn throughout our lives to our graves. The worst part is that you can never remove the thorn from your heart because in the process of removing that you hurt yourself fatally. You actually feel no pain but you feel the sting of the thorn that is clinging to your heart.

My poem below is all about that.



तुमसे जुदा होकर भी कहीं एक
तुमसे जुड़ा एहसास हैं बाकी ....
की दर्द दिल में अब होता नहीं पर
कहीं एक फाँस है बाकी......

गुलाब का वो फूल जो
देता मेरे मोहब्बत की गवाही
उन मुर्झे हुए पंखुडियो में
जैसे गिरी हो वक़्त की स्याही
कैसे कहूं तुमसे की ख़ामोशी में भी अब है आवाज़ बाकी
दर्द दिल में अब होता नहीं पर कहीं एक फाँस है बाकी ....

खिड़की के परे से देखना तुम्हे
फिर देखके मुझे तेरा बनना अनजान
कहती हो तुम्हे नहीं मेरा इंतज़ार पर
बस है इंतज़ार का गुमान .....
गाडी के काले धुए के परे रोशनी की आस है बाकी
दर्द दिल में अब होता नहीं पर कहीं एक फाँस है बाकी

ज़माना मुझे कहता है आज भी
तुमसे प्यार नहीं करेगा मंज़ूर कभी
जानता मैं हूँ की प्यार नहीं आसान पर
प्यार किया है इसका गुरूर है अभी ....
वस्ल की नाकामी पर फ़तेह की प्यास है बाकी
दर्द दिल में होता नहीं पर कहीं एक फाँस है बाकी ......

इस दुनिया के परे एक और दुनिया हैं
जहाँ सच नहीं .....जहाँ झूठ नहीं.....
जिस बंधन को देखो बंधा शान से है
बंधन जाता जहाँ टूट नहीं .....
क्या पता फिर भी अगर हो मुलाक़ात उस दुनिया में
करूंगा तुमसे फिर मैं खामोश कुछ बात उस दुनिया में ....
फिर से कहीं करूँगा शुरुवात मैं कहानी जो अधूरी हैं
आऊंगा एक रूप में नए ....पर फिर आना तो ज़रूरी हैं ....
गए तुम ....जिस्म से जान गयी...पर सांस अभी भी बाकी हैं
दर्द दिल में होता नहीं पर फाँस अभी भी बाकी हैं

Do not look at those who actually remind you of the pain....however pleasant the feeling may seem to be....in the end the pain always lingers on with you.... LESSON LEARNT...

Tuesday, October 11, 2011

जब "जगजीत" ने छेड़ा साज़ ...... (When Jagjit ...Sang)

One of the most articulate ghazal singers, a person who made the tunes of ghazal simple enough for the common man to digest, understand and enjoy, Jagjit Singh has left for his heavenly abode on 10th October 2011. In the world of Ghazals he has created a void that will be almost impossible to fill. People like me have grown up listening to his Ghazals and the way he used to actually explain them in simple words was mind blowing. His live shows were a treat where we noticed a gamut of emotions among various people.

It is hard to believe that we will not see him in flesh and blood anymore but his voice and his memories will always be with us. My hindi poem below is a tribute to the maestro of Ghazal....A rare born prodigy....Jagjit Singh.





कभी तेरी कश्ती कागज़ की
तो कभी चाँद चौदवी ने दी आवाज़
हर ज़र्रा महका....हर कली खिली
जब "जगजीत" ने छेड़ा साज़ ......

ग़ज़ल, नज़्म न रहे बस
शौक कुछ नवाबों के ...
मैंने....तुने...हम सब जुड़े
जब सुर पिरोये ख्वाबो के .....

कभी हल्के से तो कभी उंदा
हर पल एक नया एहसास
हर ज़र्रा महका ...हर कली खिली
जब "जगजीत" ने छेड़ा साज़ ......

आवाज़ में कशिश..लफ्जों में वज़न
और कहीं सुरों में शरारत भी थी
ग़ज़ल के पुराने दौर में एक
नई सी हिमाक़त भी थी ......

दिल में कभी आग लगाती तो
कभी आँखों में आंसुओं के परवाज़
हर ज़र्रा महका ....हर कली खिली
जब "जगजीत" ने छेड़ा साज़ .....

कभी किसीने सोचा कहा के
ग़ज़ल में भी गिटार बजेगा ....
ताल तबलो के बजेंगे ऐसे ....
वाओलिन और सितार बजेगा

तुम जो गए तो खो गया कहीं है
ग़ज़ल का आनेवाला कल ....आज
हर ज़र्रा महका .....हर कली खिली
जब "जगजीत" ने छेड़ा साज़ ........

अब नहीं होगा ऐसे कभी
होता जो था प्यार का इज़हार ....
सुरों से महरूम रहेंगे अब
मोहब्बत का हर इकरार ......

खामोशी ये कैसी तेरी जो
कर गयी दुनिया को बे-आवाज़
हर ज़र्रा महका .....हर कली खिली
जब "जगजीत" ने छेड़ा साज़.

ग़ालिब, खयाम , अमीर और शिफाई
अब लगेंगे कुछ बे-सुरे से .....
फाजली, बक्षी और अख्तर के लफ्ज़
भी होंगे कुछ अधूरे से .......

गुलज़ार हो वोह या हो महबूब
हर शायर को है तुम पर नाज़
हर ज़र्रा महका .... हर कली खिली
जब "जगजीत" ने छेड़ा साज़ ......

खुदा को क्या इलज़ाम दे हम
शायद वहाँ भी महफ़िल सजी हो आज
तेरे जन्नत जाने से शायद, समां
जन्नत का कातिल हो आज .....

क्या करें हम इंसान जब खुदा को भी
दीवाना करे तेरी आवाज़ .....
की शायद जन्नत में भी महफ़िल हो आज
की "जगजीत" ने छेड़ा आज जन्नत में साज़ .......


Jagjit Singh will live on.......forever.........

Saturday, October 8, 2011

When Steve decided to Rest

One of the greatest innovators....in the lines of Newton....Regarded as the God in technology in the 21st Century...Steve Jobs is no more with us. With his Apple he energized and conquered the whole world.

The poem below is a tribute to this great man, who challenged all conventions to create a world of his own.



He went ahead and challenged the Odds
A challenge that even pleased the Gods.

He conquered the world on soft nine keys
He made a style statement with round neck tees.

God in flesh and God in blood
He was better than the best
The 6 billion hearts just stopped beating
When Steve decided to Rest....

A menace that was in every house
Jobs made famous the name "mouse"

Every dream that people had seen
To fulfil that Steve was very keen....

A person by birth but God by work
His every breath was full of zest.
The 6 billion hearts just stopped beating
When Steve decided to Rest.....

When such soules leave this world
To join His Creator up abode...
The gates of heavens just open flat
And make for Him a smooth road.

Even God wanted a helper for HIM
So decided to take him aboard....
He won the world in a way that it should be
Without the guns without the sword...

I see today the heavens' smiling
Coz they finally got the very best....
6 billion hearts just stopped beating
When Steve Decided to rest........

"Sharad" ........ Autumn Moods

There are places where the moods and nature of the people change with the change of season. Their attitudes take swings as the weather takes a turn...But it is only in India that the weather and the seasons oblige to the changes that happen in the populations' moods. Over here, in this land, the seasons oblige to the wishes of the people. Even today, after so many invasions that this country has had, political, cultural and economical, there has been one thing that has bound the fabric of this country...rock solid...and that is the faith of the people towards these, not so logical (in the terms of the West) , but very effective, festivals.

My Hindi poem below actualy depicts the arrival of "Sharad" aur autumn that is actually arriving after the wet days of monsoon in India. Just like a smile comes on the face of a beautiful girl after hours of shedding tears.






मौसम के मिजाज़ ने
ली हैं करवट ऐसे
पल भर में बदला है
कुदरत का बनावट जैसे

बारिश की बूंदे हुई है ओझल आँखों से
शरद आया जहाँ में पारिजात के पंखो से

कहीं नवरात्र के सुर है तो कहीं है
माँ दुर्गा के जोश भरे ढ़ाक
कहीं हैं जगरातो की धूम आज तो
कहीं रंग बिरंगे पोशाक ......

किस देश में होगा ऐसा
सोच कर मैं हूँ हैरान ....
जहा मौसम को भी हैं
संस्कृति का अभिमान ....

साँसे जो लेते है उसमे भी
अलग से है एहसास आज
बरसात के आंसू के बाद जैसे
बजे ख़ुशी के साज़ आज ....

गर्मी के बाद जो रोया आसमान
आज उस आंसुओं का मिला हिसाब
पारिजात के पंखो से हो रहा आज
खुशिओं का धीमा रिसाब ......

काले बादल छट गए और
सूरज जैसे मुस्कुराता हैं ....
गर्मी - बरसात के जंग के बाद
ख़ुशी के वोह गीत गाता है

किस देश में दिखेगा तुम्हे
कुदरत का यह खेल अजीब?
भारत में जो रहते हैं ये बस
उन्ही का है नसीब ......

Tuesday, August 30, 2011

The Indian Politician......

One third of our hard earned money we pay out to a system that doesn't care for us even one percent. Our hard earned money that comes after so much toiling and so much sacrifice is a mere tool to satisfy the luxuries of the elected members of our constitution and so called government servants. The administrative officers who are bearing big offices believe that it is their right to be bribed and weighed with money. As you do this again and again you get a feeling that you are residing in some kingdom of medieval era where the king just exploits the subjects and does nothing for their benifit.

On top of that you see uneducated and unqualified people being your rulers. The entire system rots in a way that anybody who cares to jump into it for cleaning it himself bathes in the dirt and becomes a pig.

My poem below is inspired by this situation of India that has existed over the years after independance.





संभल कर चल राही
की राह ये कठोर है
इस राह में हर सेठ
छुपा हुआ चोर है .....

संसद तक जाती है यह
पर दिशा इसकी गोल है
गोल आकार में छुपा यहाँ
हर किसीका पोल हैं...
आँखों को खोलेगा तो सोचेगा तू चला किस ओर है
इस राह में हर सेठ छुपा हुआ चोर हैं ......

सफेदी पे इनके न जा तू
दिल तो इनके काले हैं
शैतान के मौसेरे भाई है ये
असुरों के साले हैं .....
हर बुराई के साथ बंधी इनके कमीज़ की डोर हैं
इस राह में हर सेठ छुपा हुआ चोर हैं .......

बापू के ये भक्त है तभी
अमीर बनना इनका तकदीर हैं
समझ में न आये तुझे तो देख
नोट में भी उनकी तस्वीर हैं .....
कोई यहाँ भेड़िया है तो कोई सावन का मोर है
इस राह में हर सेठ छुपा हुआ चोर हैं .......

तेरे घर के बाहर ये
बम के गोले बरसाते हैं
तेरी गाढ़ी कमाई समेट कर
तुझे दाने दाने को तरसाते हैं
ताक़त के नशे में इनकी आत्मा भी सराबोर हैं
इस राह में हर सेठ छुपा हुआ चोर हैं .....

सुबह से शाम तक खटता है तू
फिर कर ये लेकर जाते हैं
उसी पैसो से फिर इनके बच्चे
लन्दन परिस घूम आते हैं ...
दिन में ये कुछ अलग से हैं, रात में ये कुछ और हैं
इस राह में हर सेठ छुपा हुआ चोर हैं ......

तेरे घर में रोशनी कम हैं
इनके घर में हैं रोशनदान
तुझे न मिलेगी दो गज ज़मीन
इनके पास हैं बड़ा मैदान
शौक इनके जवानो जैसे बस दिखने में ही प्रौर है
इस राह में हर सेठ छुपा हुआ चोर हैं ......

गोल इमारत में होती सभी
बातें गोल गोल हैं ....
दिन, महीने...साल बीते पर
इनको न हमारा मोल हैं ....

हर सुबह और भोजन के बाद
चीखते है चिल्लाते हैं
कडवे से हकीकत में यह
झूठ का शहद मिलातें हैं ...

मत देख तू इनके चेहरों को, हर शक्स हरामखोर हैं
इस राह में हर सेठ...छुपा हुआ चोर हैं ......



Sunday, August 28, 2011

खुली जुल्फें ...... (Beautiful Hair)

Some sights can take your breath away and some sights can take your life. But what happens when one comes accross a kind of a sight that keeps him alive just to kill himself. Well some combinations of beauty can be deadly and they can come in innocent packages. The problem with the journey called love is that it starts from the body and ends only on the soul. Since Soul is always an unreachable target so Love never ends....Well...People say that.....



The poem below is about one such journey ....midway....that describes the beauty that lies in hair......




हवा का झोंका कुछ मंद मंद लहराता हैं

रेशमी तुम्हारे जुल्फों का घेरा

आँखों में जाल सा फेहराता हैं ......



खुले ये बाल है तो कुछ

हालत दिलों के है नाज़ुक

रुके धडकनों पर आज ये

जुल्फें बरसाते हैं चाबुक ....



आँखों का नशा तेरा जो

तेरे ज़ुल्फ़ ने कुछ ढका हैं

बिन पिए कोई शाराबी जैसे

महखाने के पास रुका हैं ...



कौन कहता है की क़त्ल हत्यारों से होते है ...

कौन कहता हैं की मौत की होती है वजह ...

आँखों के वार से तेरे जान बहुत गयी हैं

तेरे जुल्फों के लहराने से बहुत हुए कलह



समझते थे जो इन अदाओं को

मासूम से कुछ करवटें ....

क़ैद उन नासमझो को कर लिया है

तुम्हारी जुल्फों के सिलवटें



लहराकर जुल्फों को तुम्हारा

चुपके से मुस्कुराना ...कातिल है ....

जिसे तुम....तुम्हारी जुल्फें हासिल हो

उसे न मांग कर सब हासिल हैं ......



बारिश है बहार ...काले कुछ बादल हैं

पर तेरे जुल्फों के अंधेरो में

रोशन जहाँ भी पागल हैं ......


नफरत....नफरत....नफरत.....(Hatred all the way)

After having written so many poems on love...somebody requested me to write a poem on hatred. Well, many of my friends who know me closely always said that I will not be able to fulfill this request as hatred is something that I never could express in my peoms earlier also in its entirety. I could not express the absolute hatred of a hurt heart in my poems. Well, I tried my best but then it never took a good shape.

I am trying to express absolute hatred in this poem.

The poem is dedicated to all those who love to HATE.





नफरत की आंधी में मैंने
प्यार का जाम पिया हैं
प्याले छलक न जाए जानिब
ऐसा काम किया हैं ......


दिल, दुनिया और दर को छोड़
आज मैं आया हूँ खुदको पाने
तेरे आशिक से अच्छा सनम
दुनिया मुझे पागल माने .....


तुमसे करूं मैं प्यार क्यों ?
दुनिया हसीनो से खाली नहीं |
के प्यार मेरा अनमोल हैं
तुम्हे देने वाली गाली नहीं .....


सिमटते जज़बातों को ऐ हसीं
तेरे मरहम की ज़रुरत नहीं ....
मरता मैं मरता हूँ सही पर
तेरे रहम की ज़रुरत नहीं .....


समझती तुम हो भले के
मुझे कहीं लगी हैं चोट ...
बता दू मैं तुम्हे ऐ बेवकूफ
समझने में तुम्हारे है खोट


फूलों के वार से कभी
चोट पत्थर को लगते नहीं ...
हवा कितनी भी गर्म हो पर
गहरी नींद से हम जागते नहीं ....


हमारे सपने भी आज कल
इंतज़ार तेरा करते नहीं ...
तेरी झूठी बातों पर अब
हमारे अरमान मरते नहीं ....


मेज़ पर तेरे ख़त रख कर
राख उन्हें मैंने किया हैं ...
जो रिश्ता कभी था ही नहीं ...
उस रिश्ते को जला दिया हैं ...


तेरे तोहफे...तस्वीरे तेरी
डस्ट-बिन को सपूत हैं
याद तुम्हारी नहीं आयेगी
दिल मेरा मज़बूत हैं ......

तुम समझती हो कहीं
किसी देश की रानी हो तुम
माफ़ करना ऐ नासमझ
गटर का गन्दा पानी हो तुम ...

इस जहाँ में अगर कभी
जनानो का निकले जनाज़ा
तो कब्र में तुम पहले जाओ
उसमे ही आएगा मज़ा

जो मरते तुम्हारे सुर्ख गालो पर
गालिओ के मोहताज है वोह
तारीफ़ जो करे तेरे खुले बालो पर
गधो के सरताज है वोह ....

जब देखा अन्दर से तुम्हे
लगी तुम बहुत भद्दी
जैसे के रेशमी डब्बे में
बंध हो कागज़ की रद्दी ....

मोहब्बत जो तुझसे किया
खता मुझसे हो गयी
जाना जब तेरे चेहरे को तो
एहसासे कहीं सो गयी ...


Monday, August 22, 2011

Krishna....Come back to earth

Today is Janmashtami. A festival that marks the birth of a new hope. A festival that reminds us about the fact that evil, however powerful and accepted it may be is always defeated in the hands of good and also raises a kind of hope that whenever there will be a rise in evil, whenever there will be a rise is unscrupulous means, whenever there will be a rise of malice there will be an incarnation of the Lord Himself in any form to actually mitigate these.

Today as we have so many problems in the country it has become necessary for the Lord himself to re-incarnate.




सुना है हमने की पाप कुछ बढ़ रहा हैं ....
सच्चाई के ढाँचे में झूट का परत
चढ़ रहा है .......

हाल कुछ ऐसा है की रक्षक ही भक्षक है
अनपढ़ जाहिल जो भी थे आज
बने समीक्षक हैं ......

देश का कहना क्या....जैसे एक दलदल है
कीचड़ के इस भंवर में कोई
ढूँढता गंगा-जल है ......

कभी टू जी ...कभी आदर्श...चोरी तो आदत है
इस चोर राज में खोता महत्व
हर एक शहादत है ..........

पूछते हम तो कहते वो के भगवान् भी माखन चोर है
हर इंसान सोचे आज यह देश आखिर
चला किस ओर है ?????

गीता का जो पाठ पढाया शायद कहीं खो गया
इस देश की नसीब देखो...यहाँ
अपना पराया हो गया .....

अर्जुन के तीर भी अब काम न आयेंगे
सर फिरे जहाँ में वो तीर भी
कमान में लौट आयेंगे .....

कुछ लोग मिलके करेंगे पुरे जहाँ का हिसाब
जस्मीन के पंखुडियो से होता आज
सच्चे रक्त का रिसाब ........

आज कहाँ पर हो प्रभु के संकट धर्म पर आया है
कर्म के कर्मठ रहों पर अब
काला साया छाया है ........

भ्रष्टाचार के बिगुल के शोर में
मुरली का सुर दब गया है ....
के मुरली के तार छेड़ कर भी
दुराचार कब गया है ?????

कुछ ऐसा काम करो प्रभु
के हट जाए ये आषाढी मेघ
रोशनी फिर से सूरज का हो
विकास का बढे वेग .....

लौट आओ अब धरा पर तुम की
अब धरा कापे हैं ...
हर निर्दोष यहाँ पर आज
खराब नसीब नापे हैं ......

किसी रूप में किसी रंग में
आओ तुम तो हो भला
सचाई का नहीं तो फिर
घुटने वाला यहाँ गला

बीता कल ....छूटा पल...और यादें (The past and the moments gone by)

I have often thought about the fact that how would it be like to actually confront the past when you know that at some point of the time the fault was your's. Well really not easy. In such cases I think it is good to actually remmeber the good moments that you enjoyed and forget the bitter ones. However, whenever your confront such past in reality then you always feel that every sight that is looking at you is actualy showering arrows.




घुमते वोह लटो ने आज फिर
मुझे आज नींद से जगाया हैं
चका चोंध रौशनी में आज आया
हल्का सा एक साया हैं .....

सोचता है दिल क्यों आज की
फिर कहीं तू देती हैं दस्तक
क्यों आज भी मेरे तन्हाई में
कहीं होती तेरे हँसी की खट खट ...

हलके से मेरे इरादों में आज
ये कौनसी एक गहराई हैं ....
की दुबके देखता हूँ जब मैं
लगा की कहीं तू आई है .......

आज भी मेज़ के उस पार
रखा मैंने भरा जाम हैं ....
की शायद हवा के साथ आता
तेरे इश्क का पैघाम हैं ....

नशा मुझे शराब का नहीं
नशा हैं जुदाई का .....
खुदा से बेरूख हुए वो
मेरे यार के खुदाई का ...

क्या था वो हमारे बीच ?
इश्क, या कुछ और था? ....
पल भर में गुज़र जो गया
सदीओ से लम्बा दौर था ....

सहमी रातो में तेरा मेरे
करीब आकर लिपटना यूँ
फिर कहीं, कभी लाज के मारे
बाँहों में अपने सिमटना यूँ ...

कुछ बेख़ौफ़ से पल थे वो
और मौसम भी आवारा था ...
दिल्लगी अगर थी वो तो
दिल्लगी मुझे गवारा था .....

क्यों छूं कर निकल गयी
मुझे तेरी हसीं हर अदा?
क्यों आज भी याद है मुझे
तुझसे किया हर वादा ?

वादें जिन्हें मैं भूला चूका हूँ ....
हसीं कुछ चेहरे जिन्हें रुला चूका हूँ ...

देखते मुझे हैं वोह चेहरे कुछ गोर से
नज़र के ये तीर चलते हैं तेरी ओर से .....


Wednesday, August 3, 2011

अलफ़ाज़...ज़िंदगी के (some words of life)

LIFE.....a four lettered word...like any other four lettered words used these days. However, is it only about these four letters that a particular life can be confined to? Life is not about living...it is about completing a journey? I remember the dialogue in the movie ASOKA in which the emperor asks a monk "Who can be more accomplished than an emperor?" and the monk replies "A traveler. A traveler who completes his journey." What a philosophy to define life in simple words. This journey of heartbeats, thoughts, memories, love, hatred, feelings, logic, avarice and many other characteristics is endless and many a times ends without a destination. The purpose of the life is to complete this journey so that nothing remains incomplete.

I have, in my poem below tried to explain these aspects of life.





होठों के फासलों के बीच हैं
हंसी और ग़म का तकाजा
ज़िंदगी हंसीं हैं पर फिर भी रुलाती हैं
शायद ज़िंदगी का येही हैं मज़ा ....

जीना पड़ता हैं किसी किसी को
और कोई यूँ ही जी लेता हैं ....
कोई नुमाईश करता अपने ज़ख्मो का
तो कोई ज़ख्म सी लेता हैं ...

सख्त परतो के बीच में हैं यहाँ
नर्म मलाई की कुछ परतें
कोई ज़िंदगी के सखते से घबराता
तो कुछ मलाई के फिसलन से डरतें ...

पढ़ाती क्यों यह ज़िंदगी आखिर
हर पल एक नया पाठ हैं ???
इस ज़िंदगी में सांसें अकेली नहीं
ग़म और ख़ुशी की साठ-गाठ हैं ...

सवाल ये भी उठता हैं मन में
ज़िंदगी की आखिर ज़रुरत क्या हैं?
जवाब तभी मिलता मुझे हैं के
इस सवाल में भी ज़िंदगी की सूरत हैं |

होती अगर न ज़िंदगी तो
सवाल जवाब होते कहाँ ?
सन्नाटो से भरे जहाँ में फिर
हिसाब-किताब होते कहाँ ?

सर फिरे इस दुनिया में आज
ढूँढता मैं हूँ ज़िंदगी के माने
ज़िंदगी मेरी क्या है ..क्यों हैं ...
ये बनाने वाला ही जाने ....

जानू मैं बस आज इतना की
न जीत मिली न हार मिला
ए ज़िंदगी तेरे होने से बस मुझे
कुछ लोगों से प्यार मिला ...

इस प्यार को मैं दौलत मानु
या मानु इसे मैं पल खुशगवार
जो भी हुआ बस अच्छा ही हुआ
ज़िंदगी के लिया मैं हूँ तैयार ........

Live life....complete the journey....

Sunday, July 31, 2011

प्यार की गहराई (Depth of Love.....)


There are some moments, when it becomes very difficult to actually know the pertinence of the romantic feelings that are reeling under one's heart. Love has many flavors but then it is not the feeling that makes Love more complex but it is the multiple facets that Love actually bears which metamorphoses it from being just a feeling to being a phenomenon. The poem below of mine explains the depth of love that one may actually feel or bear.


I am sure every body has some or the other time introspected the same and found this out.

जहाँ किसीने छान मारा फिर
तेरी बाहों में तलाश रुकी है
उन हाथों के छूने का कहना क्या
उन हाथों के नीचे दुनिया झुकी हैं
अजीब ये कशिश है तेरी जो मुझे करीब ले आई
मिला तुमसे तो कुछ और बड़ी प्यार की गहराई ......


ज़ख्म जो भी थे हरे वो
ज़ख्म कहीं भरते चले
डूबे डूबे से हम तेरे इश्क में
प्यार के दरिया में तरते चले
दूर कहीं रह गया अक्स मेरा खुमारी है छाई
के जब डूबा तेरे प्यार में तब नापा प्यार की गहराई ......


काले बालो के साए में कहीं
सूना जो हैं प्यार का जाहाँ
उन बालो के अंधेरो में देखू
आखिर मैं हूँ कहाँ ?
कहीं आग लगी जुदाई की तो कहीं उम्मीद सी है आई
के मिलके तुमसे अरसे बाद समझा प्यार की गहराई....


सुना था मैंने किसी पागल से
जनम जनम तक ये मिटता नहीं
जो बंधन बंधे हो प्यार से वो
ज़माने के तरीकों में सिमटता नहीं
इश्क ने साथ अपने हैं कुछ मजबूरी भी लाई
ज़माने से जूज कर समझा मैंने प्यार की गहराई ......


निशाँ तेरे नाखूनों का है
अभी भी मेरे कितने करीब
वोह सर्द रातें आज भी कहीं
लिखती हैं मेरा नसीब
गर्म साँसों के बीच चलती ठंडी सी पुरवाई
कुछ "आह" है और कुछ "आहा!" ये प्यार की गहराई


टिप टिप बरसते पानी की बूँदें
होंठों को तेरे भिगोते हैं ...
खुशनसीब वो बूँदें हैं जो
गिरके भी तुम्हारे होते हैं
सावन के आड़ में छुपी हैं अब मेरी हर तन्हाई
अकेला पड़ा मन तो समझा प्यार की गहराई .....

हमारी साँसों के बीच चलते
कुछ एहसास हमें पिघलाते हैं
दूर ...जो दूर गए वो ख्वाब
वो ख्वाब फिर दिखलाते हैं ....
आँखों से उतर कर तू मेरे दिल में हैं आई
के डूब के उस एहसास में जाना प्यार की गहराई ........

उम्मीदों के टकराव हो रहा हैं
रिश्तों में ठहराव आ रहा है
अब कहीं लगता हैं के पास मेरे हैं तू
न बुझी जो वो प्यास मेरी हैं तू
तुझे पाके भी क्यों हैं मुझे एहसास ए जुदाई
पास मेरे बस रही तेरे प्यार की गहराई .......

गहरे पानी की तरह प्यार भी खामोश हैं मेरा
कुछ बेपते जज़्बात .....दिल भी मदहोश हैं मेरा
डर लगता है मुझे की कहने से तुझे न हो रुसवाई
झिझक जिसे तू समझी वो है प्यार की गहराई ........

कहते कुछ लोग हैं की आँखों से बातें होती हैं
पलकों के आड़ में ...दिन में चांदनी रातें होती हैं...
फिर मुझसे ही तुमने क्यों आँखें हैं चुराई
दिल बुझता हैं देख ये प्यार की गहराई.........

इस प्यार को शायद मैं नाम न दू
खय्याम का कोइ कलाम न दू
पर मुझे बेनाम मेरे प्यार ने डूबाया हैं
तुझसे दिल लगाके दिल में ठेस लगाया हैं
अगर समझ में तुम्हे अब भी न आए तो फिर लो अंगड़ाई
के हमें सोने न देगी हमारे प्यार की गहराई ...




Thursday, July 28, 2011

Forget Petrol Go to Diesel with FIAT

When you get good things at lower price, who doesn't want it. That day when I got an upgrade to the business class with the price of an economy it really gave me a sense of relief and also a little bit of pomp. However, some offers are more irresistible. Getting a diesel car in the price of a petrol car and then actually to fill in diesel in the same talks about both short and long term gains and thus totally outwits the policies of inflation of the government.

The short poem below talks about the same.










भाषण सुना हमने वित्त मंत्री का
मेहेंगा थोडा और पेट्रोल हुआ हैं
"कुछ कर नहीं सकता मैं" कहके
हर मंत्री सभा से गोल हुआ हैं ....

गाडी खरीदू जब सोचा
तब हुआ मेरे अरमानो का खून
पेट्रोल के दामों ने कहीं
हर सपनों को दिया है भून .....

फिर कहीं अखबार के
तीसरे या चौथे पेज पर
देखा अवसर सुनेहरा है
रखा मेरे मेज पर

FIAT लेके आयी है कुछ नए से अंदाज़ में
सस्ती गाडी सस्ता इंधन गूंजे हर आवाज़ में ..
पेट्रोल त्यागो चलो डीजल पर कहता मुझे FIAT हैं
अब कहीं लगेगा मुझे की अपने भी कुछ ठाट हैं ....

चार पहिये चले बेधड़क, मेहेंगाई को कुचलते हुए
पेट्रोल छोड़ अब डीजल पर चल, बोले मन मचलते हुए ....

सरकार की चालें अब नहीं तोड़ेंगी होसलो को
डीजल आज मिटाके रहेगा हर फासलों को ...

यारों अब बात सुनो ....कहाँ मैंने कुछ बहुत
पेट्रोल छोड़ और डीजल पर चलो
खड़े मत रहों बनके बुत ....


This post has been written for indiblogger.in



भूला दिया मैंने ........(I Forgot you....)

Somebody told me to write short poems......Because probably I was taking lot of words to actually convey something that could be conveyed by few of them.....Probably I was being insanely descriptive about something that is ought to be more lucid than my description in poems......For many days I tried to do this, but then failed. Probably, this is because of the fact that when a person actually gets into the flow of writing something, when a particular issue is hogging someones mind and piercing it from every other direction then the poetry that actually evolves is generally an amalgamation of various aspects of describing those thoughts. So, in order to be lucid one has to be more free and has to detach from the thought or be selective about the issue for which the poem is being written. I tried to follow this and could actually come out with a short poem, FINALLY!!!!!!!

The first short poem that I would like to present infront of all of you is about forgetting. Yes, like love, hatred and liking; forgetting something too is a very good emotive expression. More so when you try to forget something that is always at the back of your mind. When some thing or somebody becomes a part of you then actually to forget or rather forego that particular object becomes the most difficult job ever. The poem below of mine describes the same.






बूँद बूँद जो दिखे मुझे ओस के
तो लगता जैसे तेरे अश्क बहें हो
जिस जगह मैं हुआ तुझसे रुखसत
वहीं मेरे भी अरमान के राख रहें हो .....

सुर्ख होठों से छुपती मुस्कराहट के पीछे
दस्तक हैं कहीं तेरे दिल के ग़म का ...
तभी तो बदनाम हूँ मैं हर गली मोहल्ले में
खिताब तुमने दिया है ज़ालिम सनम का ....

सुनने से पहले ही शोर कानो में बरपाता है
अरमानो की अर्थी को फूलों से सजाता है ...
फिर भी क्यों है आज भी मुझे तेरा ऐतबार
क्यों आज भी मुझे हैं तेरे साथ का इंतज़ार .....

भूल चूका हूँ मैं तुझे ये शायद मैं कह न पाऊँ ....
ये बात और है की तेरे बिना भी मैं रह न पाऊँ ....

Saturday, July 16, 2011

इटली की सुन्दरी ....और भारत सरकार (The lady from Italy....and Indian Government)

I seriously wonder that has slavery literally entered our soul. India, was a slave for 200 years to the British, for 100 years to the Moghuls and now the people of this country are just slaves of this new tyrant called Democracy. Democracy that is being operated by all the wrong means and that too by a foreign lady whose relatives and herself is involved in so many scams that have taken international picture. Today as our country is fighting with inflation and terrorism she and her cabinet is making an utter mockery of our feelings.

In the name of democracy we have had the dynastic rule for more than 55 years. Do we still need or understand democracy? Why are we bearing with this nonsense? Why are we even believing the fact that our administration is caring for us? Why are we actually even paying any heed to their long talks? An administration that cannot protect people in the cities, villages; an administration that cannot control prices of essential goods and on top of that play with the lives of people can be only given the title of a tyrant. This tyrant is not Indian. It is being ruled by a foreigner. A lady who is actually not belonging to this country. She is an outsider trying to control the lives of many people like you and me. And the funniest thing is that people who are qualified and educated are running around behind her like naked dogs.

My poem below is not an expression of my Anger towards the recent events that has shaken up my city Mumbai, but these are culminated feelings that I actually have towards the UPA government that is busy selling our country to malicious elements.




इस सरकार का कहना क्या
ये करती सच्चाई से इनकार हैं
लाशो के ऊपर बैठे नेता
क्या सच में इनकी दरकार हैं ???

रोटी महंगा मेहेंगा है कपड़ा
मेहेंगा हुआ मकान हैं ....
इटली की सुन्दरी के राज में
अब आफत में अपनी जान हैं |


याद आया मुझे जब
गोरे राज करते थे
खून से नहाकर जब वो
अपनी मौज करते थे

फर्क सिर्फ आज है इतना
कुर्सी पे बैठे हमारे नेता है
वो बस देता वादों का दिलासा
बाकी सब कुछ लेता हैं


पैसे लिए, ली जगह
अब लेता सन्मान हैं
इटली के सुन्दरी के राज में
आफत में पडी जान हैं ......

चिकनी चिकनी बातें इनकी
ऊपर से हैं लन्दन की डिग्री
चमचे सभी इधर-उधर
करते हैं मिलके देश की बिक्री ...


फ़ोन की बातों से कोइन महल खड़ा करता हैं
तो कहीं पेहेनके लूंगी देश को देहेलाता हैं ...
जवानो की ज़िंदगी से कोई करता खिलवाड़ हैं...
तो कोई फिर मेहेंगाई की आड़ में बहलाता हैं .....

इतने है निकम्मे फिर भी
सीना देते तान हैं .....
इटली के सुन्दरी के राज में
आफत में पडी जान हैं ......


बेटा इनका चतुर बहुत
बातें करते चाक चौबंद
पर बातें इनकी बातें हैं बस
आम आदमी की साँसें बंध

टहलने जाते उत्तर प्रदेश
मुंबई की लोकल में भी आते हैं
पर जब हो संकट की घड़ी
तब बकवास ही ये करते हैं .....


क्या करें आखिर जनाब
बेटे यह महान हैं ....
इटली के सुन्दरी के राज में
आफत में पडी जान हैं ......

सोचती सरकार है ये
खून कैसे और पियु
दराके धमकाके इस जनता को
पांच साल और जीयु ..

वित्त मंत्री चलाते हैं मेहेंगाई की तलवार
तो गृह मंत्री करते हैं आतंकवाद का वार ...
बावजूद इसके कहेते है "हम कल के लिए तैयार हैं"
बताओ यारो अब इस सरकार की क्या दरकार हैं ?


परियावरण का करते शोषण मंत्री जी महान हैं
असिक्षित हैं कितने पर शिक्षा का गुण-गान हैं
गरीबी के पीछे ये सोमरस करते पान हैं
आम आदमी चीख रहा पर बंध इनके कान हैं ....

उग्रवादी साथ है इनके तो डर इन्हें लगता नहीं ...
ज़मीर जो सोया इनका तो धमाको से भी जगता नहीं ....
इंसान जो बनाते हैं इन्हें उनकी जान तो एक खेल हैं
हर बुराई और हर बदी से इनका होता इनका मेल हैं

ग़ुलामी की शायद है आदत हमको
इसलिए को गिरवी रखा मान हैं ...
इटली के सुन्दरी के राज में
आफत में पडी जान हैं .....


तोड़ो अब ज़ंजीरो को ये
इन बंदरो को दो हकाल ...
बुधी सोच इनकी नहीं चलेगी
सोच के साथ इन्हें भी दो निकाल

बहुत हो गया राज हम पर
तवायफ कहीं दूर देश का
ज़रुरत अब हमे हैं सख्त ज़बान की
और हैं उग्र वेश का ....

जो कहते हैं अब शांत रहों
शांत उन्हें अब तुम कर दो
जो थकते नहीं तुम्हे लूटने से
क्लांत उन्हें अब तुम कर दो


मत भूलो अब दाव पर
तुम्हारा पूरा जहान हैं ...
इटली के सुन्दरी के राज में
आफत में पडी जान हैं .....

दुम हिलाते कुछ लोग यहाँ
लाते कमजोरी का बुखार हैं
कुत्तो से घिरी लोक-सभा हैं
और हम कहते इसे सरकार हैं ...

इस सरकार की क्या दरकार हैं ?????


Rip Appart this bloody system and throw her out of this country.

Monday, July 11, 2011

आँखें!! ...क्या आँखें !!!! (What Beautiful eyes)

I often wonder how difficult it is to describe beauty. In literal, metaphorical, philosophical and in parochial ways also it is almost impossible to make a total description of beauty. Whenever we talk about beauty the first object of description that comes in our mind are the eyes. There have been many poems and verses written on how beautiful can somebody's eyes be. People have exponentially increased their carbon footprints on filling pages on just describing how beautiful can the eyes be. Eyes don't talk but then they say a thousand words, they inspire and they express in someways that even the whole body language or speech would not. The eyes are the most vital parts of expressing any feelings in the whole body. Love, hatred, liking, friendship, dislike and so many feelings can be just expressed by some manipulation in the contours of the eyes. In the earlier poetry or songs there was an obsession towards describing the beauty of eyes. Even in my first poem I have actually mentioned the concept of "Silent Eyes" .

दुनिया जहाँ में जहाँ ख़ूबसूरती की कोई कमी नहीं हैं, वहीं ख़ूबसूरती का वखान आँखों के सिवा सोचना भी एक तरह की गलती है | पल भर भी अगर किसीको किसीकी ख़ूबसूरती की तारीफ़ का मौका दिया जाए तो वो सबसे ज्यादा वक़्त उनकी आँखों को देगा | अपने अल्फाजों में सबसे ज्यादा ज़िक्र शायद आँखों का ही होगा | आँखें, जो कभी नज़रें इनायत बरसाती हैं तो कभी चुपके से बंध होती है और खुद के अन्दर झांकती हैं | आँखे, जो कभी लजाते झरोखों से इशारे करती हैं तो कहीं रोष भरे नज़रों से अपनी नाराजगी ज़ाहिर करती हैं | आँखों की भाषा हर एक आँख समझ जाता हैं, इसीलिए शायद दो लोग अगर एक दुसरे की ज़बान न समझे तो वोह अपने आँखों से बाते कर लेते हैं|

नीचे को कविता हैं वो इन्ही आँखों के गुणों को दर्शाती हैं .....



इस ज़मीन पर मुजस्समे तो बने बहुत है
नहीं बनी तो बस तेरी आँखें ,
छलकते जामो के बीच टपकती शराब
नशे से ज्यादा नशीली तेरी आँखें ....

कुछ इस तरह पलकों का तुने जाल बिछाया है...
अँधेरे में जैसे हो कोई रोशन काया है...
पल भर में यह सुकून है तो पल में है मेहताब
सुरों के तारो से ज्यादा सुरीली तेरी आँखें ...

काश यह आँखें तेरी बोल पाते जोर से
चुप कराते फिर दुनिया को यह अपनी नज़रों के शोर से
कुछ लगती है ये अच्छी की हर बात लगी खराब
चाशनी के बूंदों से मीठी तेरी ये आँखें ......

(मक्ता)
चाँद की चांदनी से नहाई इन नज़रों पर
चाँद के तासुर की इनायत हो शायद
उस रब को कहीं नज़र न लगे तुझ से
उस रब को भी इन आँखों से मोहब्बत हो शायद

दिल के किसी कोने में ये पलक झपकाते होले से
होशवालों को बहकाते ये नशीले प्याले से ...
हर सवाल का बस है ये खूबसूरत जवाब
जिस्म से रूह को चीरती नज़रें तेरी आँखें .....

इन आँखों में हया है तो है कहीं रोष भी
मदमस्ती के आलम में है इन्हें होश भी
काजल के घेरे में हैं जैसे लीची की राब
हर अंदाज़ से बढ़कर अंदाज़ तेरी आँखें ....

ये आँखें बोलती है कुछ हज़ार कहानियां
ग़म के वक़्त है इनमे आंसूं की रवानिया ...
हर वक़्त इनमे होती हरक़तें लाजवाब ....
हर मर्ज़ की शायद दावा हैं तेरी आँखें ....

मुझे आते देख प्यार से टकराना नज़रें
फिर उन नज़रों से करना मुझे घायल ...
ये आँखें हैं के हैं कोई रंग महल
बिन घुंघरू जहाँ बजे पायल ......

इन आँखों को यूँ ही मैं निहारता हूँ
देखता हूँ इन आँखों तो देखते हुए ....
फिर चुपके से नज़र फिराता हूँ मैं
तेरी आँखों पर कुछ अलफ़ाज़ लिखते हुए

दक्कन की बरसात हैं इनमे
पहाडी की है इनमे ठंडक ...
इनमे पूरब का रोशन वजूद भी है ...
है इनमे कश्मीर की मेथी महक

देश जहाँ मेरा लड़ता है टुकडो में पल पल
बिखरता जहाँ कहीं हो आने वाला कल
हर टकराव का ये नज़रें देती जवाब है ....
दुनिया को रोशन करती हैं तेरी आँखें ....

Saturday, July 9, 2011

जिंदा हूँ मैं ....(Living)

कोई इसे जूनून कहता है तो कोई फिर इसे बस अंदाज़-ए-बयां का खिताब देता है | सच, हम हमारे ज़िंदगी को जिस नज़र से भी देखे ये अहम् नहीं हैं, अहम् तो यह हैं के हम किसी भी हालात में जिंदा रहते हैं और वोह भी तब तक जब तक हमारे ज़िंदगी की डोर टूट नहीं जाती हैं | जभी मैं आगे या फिर पीछे की ओर देखता हूँ वहां मुझे ज़िंदगी अपने सभी मुश्किलात से जूज्ती हुई नज़र आती हैं | कहते हैं की उपरवाला हमे इस जहाँ में भेजते है ताके हम हर मुश्किलात का सामना करते हुए भी हमारे ज़िंदगी को बचा कर रखें | सबसे अहम् यह बात हैं की आप अपना ज़िंदगी जिए, किस तरह से जिए ये फिर बाद की बात हैं| कुछ ऐसा जैसे के आप किसी दौड़ का हिस्सा हो तो सबसे पहले यह ज़रूरी हैं की आप वोह दौड़ पूरी करे, फिर यह बात का फैसला होता है की आप इस दौड़ में कौनसे स्थान पर हैं | ज़रूरी वोह स्थान भी हैं, बशर्ते आप वोह दौड़ पुरी करे| इसलिए सबसे पहले इस बात का खुलासा होना ज़रूरी हैं की हम क्या करें जिससे हम यह ज़िंदगी जी सके क्योंकि ज़िंदगी में हमे चढ़ाव के लिए जहाँ खुद को जोश से भरना हैं वहीँ उतार के लिए भी हमे होश का भी सहारा लेना चाहिए |

यह कविता उसी जिंदा रहने के जद्दोजहद के ऊपर केन्द्रित हैं |



शेहेर के किसी कोने में
बरसात से छुपा कोई परिंदा हूँ मैं
हा शायद ओंची उड़ान के उम्मीद पर
किसी हाल पर जिंदा हूँ मैं ........

मैंने किसी की ओर देखा नहीं
पर जहाँ सारा क्यों है मेरी ओर देखता ?
पल भर के लिए कहीं चैन हो हुआ नसीब
तो मेरे ओर अपनी बेचैनी क्यूँ है फेंकता?

जहाँ की इस हरक़त पर कहीं मैं शर्मिंदा हूँ...
हाँ इसी हाल में शायद अभी बी जिंदा हूँ ...

कहीं मेरे दिल में उम्मीद थी
खुशगवार कुछ बदले पलों का..
साये में सुकून के बीते जो उन
ख़ुशी से कुछ गीले पलों का

उन हलके पलों में कुछ ख्याल उंदा हूँ मैं
ज़माने के तानाशाही पर भी जिंदा हूँ मैं |

क्या सही, क्या गलत हर बात मुझे लुभाते हैं
जहाँ की हर दिक्क़त अब रास मुझे आते हैं
नादाँ कुछ इंसान यहाँ फिर भी मुझे डराते है
उनकी यह बातें जो जनाब बस बातें हैं .....

अभी भी तारीफों के बीच एक निंदा हूँ मैं ...
बदसलूकी है बहुत पर जिंदा हूँ मैं.....

हर लम्हा मेरे ख्वाबो का
क़त्ल सरे आम हुआ हैं
सपने जो कहीं आँखों में तरे थे
वोह कहीं अब बेनाम हुआ हैं

सपनो के महल में हकीकत का बाशिंदा हूँ मैं
खंडहर ही सही....उसीमे जिंदा हूँ मैं ......

परबत ऊंचे थे तो सहारा मुझे बादलों का था
लहेरे तूफानी में थे सहारे किनारों के ...
दिल तो मेरा खुश था मेरे छोटे घरोंदे में ...
पर ख्वाब थे मुझे ऊंचे मीनारों के ....

हर आशियाँ में छुपा हुआ कोई तिनका हूँ मैं
जहां मुझे बता अब किनका हूँ मैं ?
तेरे हर ज़ुल्म में बसा तेरा गुरूर हूँ मैं
तेरे ज़लालत में भी जिंदा ज़रूर हूँ मैं ....

हर क़ैद से फरार होता परिंदा हूँ मैं
पंख मेरे कटे फिर भी जिंदा हूँ मैं.....


So live your life.....

Sunday, June 26, 2011

बचपन का व्यापार (The Business of Childhood)

As we are taking longer strides towards the development of our country, as our country is taking strong measures to become a "Developed" country from a developing entity, a big problem of Child-Labor looms our future. There is a saying that a child is not born but rather gives birth to many relationships. It gives birth to a father, a mother many acquaintances and most importantly it gives birth to a hope. A hope for a better future. It gives everybody a second chance of living their lives or rather shaping their lives. However, it becomes really nasty when childhood is actually forced to do certain work prematurely, which should be kept for only the mature class.

The bane of child-labor has not been totally eradicated, rather it is on the increase day by day. Though there have been measures to control this and also making this a criminal offence, still under the supervision of government itself there are many projects that are involved in this dirty work of child labor. Our country, which we want to make an example in front of the whole world is indeed setting new examples of course in the wrong directions by the means of child labor.



हिन्दुस्तान की अवाम में
तरक्की का जोश हैं ....
उस जोश के पीछे छुपा
कहीं बचपन खामोश है .....

संसद में चलता है जब
चर्चा भारत निर्माण का
भारत के ही कोने में कहीं
होता हनन सन्मान का

होता है जब भी उन्नती के नाम पर
हर गली कुचे में ...कोलाहल ....
पीता है तभी वजूद देश का
तंत्र से परोसा हुआ हलाहल ....

पाठशाला छोड़ कर क्यों
नन्हे हाथ आज उठाते कुदाल
क्यों वोह आँखें ...सपने हो जिसमे
देखते अपने ही जीवन में भूचाल ...

नानी की कहानिया नहीं है अब
बस शोर है ज़ालिम शहर का ...
ए हिन्दुस्तानी ...हो जा खबरदार
इशारा है है आते कहर का .....

जब पिस्ता है बचपन यूँ
खानों में ...बंजर मैदानों में
तब सुरीले आवाज़ भी
आने से इनकार करते कानो में....

भावी भारत क़ैद है आज
बाल - श्रम के सलाखों में ..
फिर सुन्दर भारत का सपना
कहाँ आये उन नन्ही आँखों में ?

चीख है कहीं ...दर्दनाक सा
क़त्ल होते बचपन की आखरी गुहार
सोते इस प्रजातंत्र में कहीं
भविष्य को बचाने की पुकार.....



क्या कोई हैं जो सुनता है
बड-बोलो के बीच मासूम को?
क्या कोई फिर से देगा आग
बुझते हुए जूनून को ?

आज का "रामू" बनेगा जब कल
नामी कोई गुंडा मवाली .....
सब कोसेंगे उसे ही आखिर
कौन देगा इस तंत्र को गाली?

नन्हे हाथ सडको पर अब
धोते है गाडी के शीशे ....
कलम उन हाथो में देने को
करता है कौन कोशिशे?

पल पल लुटता बचपन आज
मांगता इस देश से हिसाब है
क्यों बोलू " भारत महान है "?
मांगता येही जवाब है .....

प्रगती के पथ पर चलता
कहीं "कमल" तो कहीं "हाथ" है ....
छाप किसी भी चिन्ह में लगे पर
बचपन को शेह और मात है ...

वोट देकर बुद्धीजीवी पीते चाय नन्हे हाथो से ...
फिर कहीं देते है गाली दबाके ज़बान दांतों से ...
" देखो देश का हाल बुरा है ...हाल बुरा है बच्चों का "
सच में देश में होता है क़त्ल आज केवल सच्चों का ...

बाल-श्रम थमता नहीं ...बस बढ़ता हैं जैसे पेट्रोल के दाम
फिर भी हम कहते है शान से की करते है नेता काम ....

इस श्राप को अब ख़त्म करो ....तोड़ो इसके हर एक तार
बढ़ना हो आगे तो बस आगे बढ़ो
बांध करो बचपन का व्यापार ......

पढ़े रामू ....पढ़े मुन्नी...बने सक्षम हर काम में
रहे आगे इस देश का नाम ...दुनिया के हर नाम में. ...

भविष्य अगर चाहिए सुहाना ...
गर चाहिए तुम्हे सुकून हमेशा
बांध करो इस बाल-श्रम को
चमकेगा देश का रेशा रेशा .....




बाल-श्रम एक अभिशाप है | इस अभिशाप का निदान और इससे मुक्ति अत्यंत आवश्यक है, अन्यथा इस देश का उज्वल भविष्य अधर में झूल जाएगा | यह केवल एक कविता नहीं पर एक गुहार है उन सभी बुद्धीजीवियों को जो यह मानते हैं कि इस श्राप से मुक्त होना इस देश के भविष्य के लिए ही नहीं परंतू वर्त्तमान के लिए भी उतना ही आवश्यक है | देश कि मस्तक की रेखाएं लिखने वाली यह संविधान में जहाँ प्रावधान हैं इस घिनोने अपराध को रोकने का, वहीँ इन प्रावधानों में कई शुक्ष्म छिद्र के कारण-वर्ष अपराधी दण्डित नहीं हो पाते |

हमारे न्याय-प्रणाली में या तो उचित नियोमो का अभाव है या फिर न्यायिक पदाधिकारियों में इच्छा-शक्ती कि कमी जिस कारण यह कुप्रथा अभी भी बे रोक-टोक चल रही हैं | निर्बल प्रजा और उससे भी ज्यादा दुर्बल प्रजातंत्र में बचपन का मोल शायद ही कोई लगा पाए परन्तु मुझे आशा है कि इस कविता को पढने व् समझने के पश्चात उस निर्बल एवं अभागे प्रजा में एक चेतना जागेगी कि वह स्वयं ही अपना भाग्य व् भविष्य दोनों परिवर्तीत करने के लिए सठीक एवं सबल पग उठाये और एक सुमुचे भारत का नव-निर्माण करें |

Monday, June 20, 2011

Ye Dilli ki Kahaani hai (Story of Delhi....)

When I saw the movie "Delhi-6", honestly, I did not like it. I couldn't actually understand that how can one person be so obsessed with a particular area and a small incident that happened in Delhi, long back. I never visited this city, with an Idea of exploring it. However since 2009, or so, by God's grace, and also my professions contribution, I have come to Delhi on and off. In the initial phases, the city appeared to be very warm and sharp. Probably never explored it in totality. But once you be in a city and come over and over to it for a long time you tend to actually know it not only from the angle of a tourist but also with an angle of a denizen.

The story of Delhi is really complex. However, everything that is complex is not bad. So as to say our body itself is a complex machinery and we cannot call it a bad creation. So is the case with Delhi. The beauty of this city lies in its complexity and the ability to appear new every time you come over here.

The poem below is dedicated to this wonderful city called Delhi, which is also the capital of India.




कभी शोर बरपाता शेहेर के बीच
तालाब का खामोश पानी है ...
इस शेहेर का क्या कहना .....
ये भारत की राजधानी है ......

दिलवालों के शेहेर में आकर
दिल लगाना फ़िज़ूल हैं
दिल के टुकड़े उड़ते है यूँही यहाँ
इन्हें पिरोहना फ़िज़ूल है ....

पराठो के सतह के नीचे
सत्ता का जोश पिसता हैं
लाल होठों के मुस्कराहट में
वफ़ा का खून रिसता हैं ....

कभी है लम्बी रुकावट यहाँ
तो कभी तेज़ रवानी है
यह शेहेर है दिल्ली .....
भारत की राजधानी है .......

"अमर-जवान" के आग के पीछे
होश खोती कई जवानी हैं ....
"राज-पथ" के सख्त सतह पर
चलती अब रानी है .......

मेट्रो रेल के बिना यहाँ
एक दिन भी मुश्किल जीना है
उस मेट्रो के स्टेशन तक लाते
बहता रिक्शा-वाले का पसीना हैं ...

मीटर से ओटो चलते नहीं
बस ज़बान की कीमत भारी है ....
कहीं जो कभी दो मीटर की धमकी
तो सर काटने की तैयारी हैं

चाट के कुछ चटपटे चटकारे
छोले भठूरे के बाद लम्बी डकार
इतने से भी दिल न भरे
तो सुनो कुल्फी वाले की पुकार ....

कनोट प्लेस में बैठे बैठे
नौजवान कोई ख्वाब पिरोता है
तो इनर आऊटर के चक्कर में
कोई नौसिखिया घबराता हैं ....

कभी हैं यहाँ हसीं के फव्वारे
तो कभी आँखों में पानी है .....
ये शेहेर है अजीब दिल्ली
ये भारत की राजधानी हैं ......

समंदर यहाँ नहीं है बस
यमुना का मीठा पानी है
यहाँ दिल में समंदर रखते है लोग
और बाकी अजीब कहानी है ....

कोई है यहाँ सांसाद का चाचा
तो कोई विधायक का भतीजा है
कोई तार जोड़े अपनी प्रधान मंत्री से
तो फिर राष्ट्रपती का जीजा है ......

दिल जहाँ हो महलों से बड़ा
और छोटी सी पेशानी है
ये शेहेर है दिलवालों की दिल्ली
ये भारत की राजधानी है .....

इस शेहेर मैं हस सुकून थोडा ....थोड़ी सी परेशानी है .....
राजधानी भारत की....ये दिल्ली की कहानी है ........

zindagee chalee yun hi (Life went on.....)

The most complex thing in this entire world is to actually analyze or introspect ones own life. Looking from various angles, one may be confused how one would like to actually shape up his/her life. There is a very famous dialogue from the film Anand; "Zindagee badee honee chaahiye lambee nahin ", life must be big and not long. It in a way sums up how one should look at life. The beauty of living is not in length but in its vastness and utility. However, in some cases life should just be allowed to flow, it should not be analyzed but enjoyed, not waiting for a conclusion but an inference that others can draw to actually shape their lives. The poem below of mine signifies these aspects of life...



ज़िंदगी चली यूँ साँसों के पटरी पर
के अब वक़्त का पता चलता नहीं
इस ज़िंदगी की मसरूफियत को अब
जीने का वक़्त मिलता नहीं.....

शायरों की आदत है यूँही
लफ़्ज़ों में दिल को घोल देते है
दौलत तो बस यादों की हैं
जिनसे हम ज़िंदगी को तोल देते है ....

कहता है कोई हमसे के
इतने बेताब क्यों है हम ?
हमे अब हसरत आसमान की है
उन्हें हम ये बोल देते हैं .......

दिल का धड़कना मजबूरी है
तो दिल को हम बनाते है ग़ुलाम
जो दिल धडके धडकनों के बिना
शायद उसी दिल को करते है सलाम

दिलजला मैं हूँ नहीं, आग इस दिल में प्यास की लगी हैं.....
जिस पल को ढूँढ रहा हूँ, उसकी तलाश में लगी है .....

शायद वोह पल कहीं यादों के पन्नो में खो गया है .....
की आज दिल भी करता है इशारे कुछ हो गया है.....

हवा का जो झोंका आता है
कहता है के आज होगी उम्मीदे पूरी
हवा को भी शायद कहीं
मेरे दिल को बेहलाना है ज़रूरी ......

पल पल उठता तूफ़ान जो
हसरतों को उडाता हैं
उन तुफानो के गिरफ्त में ही
हसरतों का अम्बार मिलता है .....

आज कहीं क़ैद है कुछ अरमान
दिलके सिसकते हुए कोने में ....
उन अरमानो को आज
आज़ादी का इकरार मिलता है .....

सोचता हूँ जब कहीं मैं
कि साँसों के तार क्यों बज रहे हैं
लगता हैं युहीं मुझे कि
कहीं दूर कहीं कई दुल्हन सज रहे हैं...

छुप के करते हैं इशारे
आँखों के रंगीन झरोखे से ....
वोह आँखें जो कभी
रहते थे हमसे रूखे-रूखे से....

सुनता हूँ मैं आहट तेरे
कहीं पास आने का ....
जैसे कोई महखाना सुनता शोर
छलकते पयमाने का .....

उन पयमानो में कुछ बूँदें हमारे नाम का रखना तू
ए ज़िंदगी इस खाकसार के लिए रंगीन शाम रखना तू ....

लालच मुझे तेरी लम्बाई का नहीं
हसरत मुझे तेरे ऊंचाई कि है .....
ए ज़िंदगी , फरेब के ताने बानो के बीच
तलाश मुझे तेरे सच्चाई कि है ......

Sunday, June 12, 2011

Badsoorat pyaar ( The ugly face of love)

As I wrote in the poem before that love may be beautiful or ugly, this poem is actually showing the ugly face of love. As there come deciet in relationships, they just fall appart. Deciet is not like a storm, rather it is like a termite, which actually eats you up from inside. A storm can be handled. One can actually duck down or seek shelter during storm but then when it is a "termite problem", it becomes rather diffucult to actually identify it in the first step and when the problem is revealed it is too late for anybody to respond or address it.
Deciet gives love that ugly face, that it sometimes deserves. If all love stories were rosy-dovy then there would not be any kind of uncertainity in any relationships, but then GOD makes the world a balanced place. So where there is the evolvement of love there also can be an element of deciet.




एक सफ़र जो कहीं हुआ
शुरू आज अधुरा है ...
के आज प्यार के इम्तेहान में
धोखे का मौका पूरा है ......

कहीं कहीं चर्चा आम हैं
इस दिल के टूटने का
तो फिर कहीं है एक शिकायत
एतबार के लुटने का ..

जब कहा था तुने के
प्यार तुझे है हर पल
तो शायद तेरे दिल से
झूठा इकरार हुआ था...
जब कहा था तुने के
तू भी रहा है जल
शायद वहेम मुझे हुआ
के तुम्हे प्यार हुआ था .......

प्यार की तेरी बदसूरती
मुझे कर गयी झंजोड़
कितनी आसानी से तुने
मेरे दिल को दिया तोड़ ..

इंतज़ार जो मैंने किया
क्या उस इंतज़ार का नहीं मोल
चाहता हु मैं की मैं राहू चुप
अब तू ही मुझे कुछ बोल ....

पल भर भी मैंने जिसे
आँखों से न किया ओझल
उस शक्स ने ही दिया
धोखा मुझे हर पल

गर प्यार है येही तो
प्यार की मुझे दरकार नहीं
की और भी हा ग़म मोहब्बत के सिवा
मैं प्यार के लिए बेक़रार नहीं ....

सारे जो बंधन तोड़े मैंने
वोह टूटे बंधन आज उड़ाते मज़ाक है
आग प्यार की लगी थी जो
धोखे की हवा अब उड़ाते राख है .....

सुरीली वोह बातें तुम्हारी
चुभती है आज इस दिल को मेरे
बांध करो कोई वो सारे तराने
गूंजते है आज भी जो महफ़िल में मेरे

आग लगाते प्यार को आज
आग लगे तो बेहतर है ....
की दिल जले किसीका तो बात क्या
ये मोहब्बत जले तो बेहतर है ....

काली शक्ल प्यार की ये
दिल को मेरे डराती है
की अँधेरा हर जगह है जो
अँधेरा वोह कराहती है

प्यार जो बनी गाली
उस प्यार को मैं भूल गया
प्यार को मैंने खुद लटकाया
और अपने आप में झूल गया

इस मोहब्बत का राक्षस आज
खाने मुझे आता है
मारा इसको तोडके तुझसे रिश्ता
अब अकेलापन की भाता है ....

परवाह मुझे अब ये नहीं
ज़माना मुझे क्या कहता है
की अब प्यार मुझे नहीं है और
नफरत लहू में बहता है ......

फाड़ा मैंने सारे ख़त वोह
जो तुने मुझे लिखे थे
रस्ते में मैं जाता नहीं
जिस रस्ते में तुम दिखे थे ....

नजराने प्यार के जला दिए
जब भरोसा तुमसे उठ गया
ज़िंदगी अभी भी चल रही है
क्या हुआ जो यार रूठ गया

समझना मत के प्यार की आग
मुझे भी जलाके बुझ जायेगी
की इतनी आग तो मुझमे भी है
दुनिया भी इसमें समा जायेगी

कहा था मैंने की सफ़र मेरा अधूरा है
पर लगता है अब मुझे की तेरे बिना ही सफ़र पूरा है

Not all things end on a happy-note. Love may also come with its ugly side. So never be blind in love.