कल को देखा है मैंने
झुके हुए कुछ सर
एक बेजान मोबाइल में क़ैद
कुछ ज़िंदा लोग जो गए मर
कल को देखा मैंने
आठ साल के झुके कंधे
तालीम से ज़्यादा तालीम का बोझ उठाते
और कुछ अनपढ़ लोग करते तालीम के धंधे
अगर देखना न हो तुम्हे वही कल जो मैंने देखा
अगर बदलना है तुम्हे इस जहाँ के किस्मत की रेखा
थोड़ा सांस लो और हवा बदलो
कमरे का ही नहीं पर दिमाग के खिड़की खोलो
Do not be enslaved by technology or system... Be the lord of it.....
Cheers,
Kalyan
No comments:
Post a Comment