As the government decides to harshly end the peaceful protest of Baba Ramdev against some serious issues it reminds us the times where we had British ruling over us and then inflicting atrocities on our citizens. Those were the times where India was imperially dominated. Today in the days of democracy also the demons of Democracy (Read the UPA government) have left no stones unturned to show their might by means of (un)lawful agencies to actually stop somebody from speaking the truth.
What I really feel that the citizens have become just resources for garnering votes. Just before the elections Stupid celebrities of Bollywood just gather in various commercials to actually propagate the Idea of voting, not understanding, actually what is the advantage of voting. For them democracy is all about voting and nothing else.
The poem below of mine is to make every people aware of the fact that today there is no role of "Praja" in "Prajatantra".
क्या करें अभी हम जनता
की अभी ये माहोल नहीं ...
प्रजातंत्र है मगर इस तंत्र में
प्रजा का कोई मोल नहीं ....
सरकारे बनती है, मिटते हैं
पर लोग अभी निराश है ...
हो किसान या मजदूर
हर वर्ग यहाँ हताश है .....
नौकरशाह और राजनेता है
बस और कोई सौल नहीं
प्रजातंत्र है, मगर इस तंत्र में
प्रजा का कोई मोल नहीं.....
कहीं दूर समंदर सात पार
बिकती है देश की साख
कठिन कमाई का धन जहाँ
पल भर में होता है राख ...
कब समझेंगे नेता ये देश है
कोई फूटबल नहीं .....
प्रजातंत्र है, मगर इस तंत्र में
प्रजा का कोई मोल नहीं...
कहीं पोलिस का डर तो
कहीं डर है खुद के खोने का
थकी आँखें करती है बयां
दास्तान जागती आँखों से सोने का ....
उन आँखों में जो है उम्मीदें
उन उम्मीदों का कोई तोल नहीं
प्रजातंत्र है, मगर इस तंत्र में
प्रजा का कोई मोल नहीं....
आवाज़ उठे जो कहीं पर
उस आवाज़ को करते खामोश है
बेवजह इस देश के नेता
दिखाते हमे रोष है .......
जनता में बस बचे हैं आंसूं
होंठों पर अब बोल नहीं...
प्रजातंत्र है, मगर इस तंत्र में
प्रजा का कोई मोल नहीं.......
पल पल तोडती दम लोकशाही में
कब तक ओधोगे कफ़न वोट का ......
कब तक चढाओगे इन हैवानो को
छप्पनभोग तुम नोट का??
इस गंदे पोखर में अब
तरता कोई शोल नहीं
प्रजातंत्र है, मगर इस देश में
प्रजा का कोई मोल नहीं....
लोगो का नेता जो बना
लोगो से ही दूर गया ..
सत्ता जो मिली हाथों में तो
नशे में सत्ता के चूर गया ....
कहता है बेशर्मी से फिर
"कोई दरवाज़ा तो खोल नहीं"
प्रजातंत्र है ; मगर इस तंत्र में
प्रजा का कोई मोल नहीं ........
मिलावट इरादों में है तो कहीं
है मिलावट खेल में .......
बहार खाने के है लाले तो
बाते बिरयानी जेल में ......
फिर कहते है "कानून में हमारे
अभी कोई लूप-होल नहीं "
प्रजातंत्र है ; मगर इस देश में
प्रजा का कोई मोल नहीं .......
फोन घूमके कर दिया गोल
धन राशि कई करोड़ ....
फिर उस काली कमाई से,
कानून का रास्ता देंगे मोड़
कानून के गलियारों में अब
शुन्य भी लगे गोल नहीं
प्रजातंत्र है; मगर इस देश में
प्रजा का कोई मोल नहीं ........
तो फिर तू बैठ खामोश
देख तमाशा वजीर का
तेरी जेब करके खाली वो
देगा दर्जा तुझे फकीर का
गिनने से पहले नोट सारे
गायब धन कर देगा वो
मन खट्टा जो हो तेरा तो
गायब तन कर देगा वो .....
फिर भी हर चुनाव में चीखेगा तू
कहेगा " निराशा का माहोल नहीं "
समझेगा कब तू इस प्रजातंत्र में
तेरा कोई मोल नहीं ........
तू है साधन चुनाव का
जेब-कतरों और चोरों का .....
हे प्रजा, भोली-भाली .....
तेरे होने का कोई मोल नहीं .........
Democracy ...... Failed.......and DEAD...
Democracy has not yet failed. Today if a MASS has gathered, voiced their concerns, it was all possible bcoz of democracy. Dont look at the lathi charge as a brutal act on democracy. If anything were to happen to the Law and Order of the country, we will again blame it on the Govt.
ReplyDeleteIf the govt gets busy handling fasts and protests, when will it have the time to GOVERN THE NATION? Cant the protesters and people going on HUNGER STRIKE, consider this.
Hi Viyoma, I am not saying that democracy as a principle has failed at large in this country. People still want to follow the guidelines of democracy and that is what was being done. However the executive that is democratically elected has made the significance of "people", who are the major part of democracy, reduced to miniscule proportions.
ReplyDeleteToday the argument is not whether Ramdev is right or he is wrong, however the dispersement of a crowd like this by rendering atrocities on the women and children is sign of the failure of the democratic system.
How do you expect the protesters to consider the system that they have only elected to beat up their children? How do you consider the protesters, who pay their hard earned money in taxes, by which these law agencies are built actually get a brunt from these agencies so brutally without no fault of theirs'?
I am not blaming the government, I am trying to make the government accountable for several problems that need to be addressed at the government level. That is called governing. After all you need to be present for all the problems and that is the reason you have a massive cabinet count. You have portfolios. You have the entire executive.
What I mean to say that the system has failed and the government is accountable for it.