Monday, July 17, 2017

वक़्त की चाल  .... The movement of Time....







नाराज़ है वक़्त  शायद 
तब ही तो यह करवट बदल रहा है 
तख़्त से तख्ती के सफर  के बीच 
सिसक सिसक के संभल रहा है 

सफर के आखिर में आकर ये खो बैठा मंज़िल का पता 
देखने में तो समंदर है पर फिर भी जल रहा है 
बेचाल कदम इसके पड़ते है इर्द गिर्द 
बौखलाए हुए ये बस यूँही टहल रहा है।  

गुज़र रहा है वक़्त यूँही गुज़रते गुज़रते 
है ये मुझे और मेरे शहर को निगल रहा है। 

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