It was 2005 when I came to Mumbai and for the last 6 years I am yet to come to terms with this city. There are so many things in this city, so many problems, so much risk yet I don't know what is there in this city that actually binds everyone like a magnet. This city has just seen inflow of people and never there has been an exodus in any way and when I try to exit from this city there is something that stops me always. The poem below is dedicated to the everlasting spirit of Mumbai (Bombay) and to every one who lives in this wonderful city.
इस शेहेर मी कोई तो बात है
कि मन यहां से उठता नही ...
इस शेहेर जैसा और कोई शेहर
इस मन को जुठ्ता नही ......
सुरज कि पहली किरन
जाब इस शेहेर को जागाती है
हर तरफ से जैसे कोई
अरमान शोर मचाती है
सुन्न सांसो पर जब
लागता है पेहरा सवेरे का
हर तरफ जैसे गुल होता है
राज अंधेरे का
अंधेरे मी भी येह शेहेर मुझसे रूठ्ता नही
क्या है इस शेहेर मे जो मन उठता नही .....
समंदर का शोर भी
लोगो के सैलाब मी दब जाता है
देख कर इस शेहेर के जलवे हजार
शायद सहम कही रब जाता है ...
पर्बत कही तो कही है
लंबे रास्ते का सफर ...
रंगीन हा राते कही तो कही
चीप चीपाते दो पहर
पसीने कि नमी मी सुखा मन फुटता नही
क्या है इस शेहेर मे जो मन उठता नही ....
खडा मै रहा तो देखा मैने हसीन नजारा
गरीबी की सुरत कही तो कही अमिरी का शरारा
कोई शेहेर शायद हि हो जहा पल पल दिल रूकता नही
हा जाना मैने के क्यो मन उठता नही ........
Long live Mumbai.
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