Tuesday, April 27, 2021

ग़र हम न होते ( Telecom Engineers)


The poem is based on Telecom Engineers.

 Telecom engineers are today's Gods. 

 Nothing can happen without them. Basically you can't even call a doctor. If you do not feel that way then let's do a test. A Telecom engineer can live without a doctor for months A doctor cannot live without a phone for even a second.

Anyone who you meet in this world cannot live without a mobile phone and Telecom network these days. 

The world will come to a standstill if there were no Telecom network. However, there are no words of accolades that are given to this fraternity, such is the level of ignorance in this world. 

Sometimes, I really feel the world deserves a doom because the world has people with the most bizzare logic. 

This is the reason I wrote this poem for them. They are the warriors of warriors. Because without them nothing is possible.



ग़र हम न होते? (For Telecom Engineers) 

दूर किसीको कैसे देख पाते,  ग़र हम न होते?
मोदीजी को भी कैसे गलियाते,  ग़र हम न होते? 
ये जो सूर्पनखा सी सजकर तसवीरें वाज़े करती हो
दुनियाँ को इन्हें तुम कैसे दिखाते,  ग़र हम न होते? 
बब्बू शोना, जादू तोना, दूर से अपने होंठ भिगोना
हर पल पगलाई इश्क़ में, ये करतब जो करते हो, 
ये करतब भी कैसे कर पाते,  ग़र हम न होते? 
"Ooh Aah Doctor You are so great"
वबा के इन दिनों कहते थकते नहीं लबों से, 
पड़ बीमार, डॉक्टर को कैसे बुलाते,  ग़र हम न होते? 
आज दिल पिघला है तुम्हारा पुलिस वालों पर 
मुश्किल में कैसे पुलिस बुलाते,  ग़र हम न होते? 
सफाई वालों पर जो आज कलेजा यों पसीजा है, 
घर में कैसे तुम उन्हें बुलाते,  ग़र हम न होते? 

आते हो ज़ूम पर और कुछ शायरी पढ़ जाते हो
अरें ये भी कैसे तुम पढ़ पाते,  ग़र हम न होते। 
शुक्र मनाओ, WFH के नाम पर कोई काम तो है, 
इससे भी नदारद तुम हो जाते,  ग़र हम न होते। 
इतराती हो देख कर अपने Bank Balance को, 
कैसे फिर इसपर इतराती,  ग़र हम न होते? 

अजीब से इस दुनिया का तुम तसव्वुर करों
जहाँ तुम हो तुम्हारे हुनर के साथ, बिन हमारे
अच्छा ही होता, फिरते फिर गलियों में तुम
फाड़ के अपने बदन के कपड़े सारे। 
हमें बुलाते भी तो हम नहीं आते पास कभी
सभी तुम्हारे इरादे रह जाते धरे के धरे। 

ये Virtual मेहफिलें,  ये Meme के कारखाने
ये बेबहर सी शायरी,  ये कुछ बेसूरे से गाने। 
ये तितलियों की तसवीरें,  ये Online जगरातें
आज बिन हमारे,  खुदा भी पास न आते। 

फिर भी कुछ खुदा मानिंद ही तुम्हें माफ करते हैं
हमारी आदत भी कुछ परवर्दिगार सी हो गई है। 
खिदमत का तुम लाचारों की आदत है इतनी। 
अब कुछ इसमें ही ज़िंदगी खो गई  है। 
तुम्हारी रातों को जिन्सी तसविरों से करके रोशन
हमारी तो कई सौ राते अब सो गई हैं। 

फिर भी खुदा के दर्जे में आतें हैं
तभी तो बेरोक फर्ज़ निभाते हैं। 

जानते हैं,  ये Stupid Janta हैं, लाचार ओ बदहाल
ग़र हम न रहें दो पल,  तो पागल हो जाते हैं।

------------  ZalZala






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