मोहब्बत से परहेज़ नहीं मुझे
दिल्लगी से डर लगता है
मौत तो एक दिन आनी है, सच है
ज़िंदगी से डर लगता है
प्यार अगर सच्चा है तो, ज़माने से क्यों छुपाते हो
इश्क़ की तुम्हारी दास्ताँ बेढंग है
या तुम्हे ज़माने से डर लगता है ?
नज़रफ़रेब हुस्न हो या पाक शबनम रूह
उल्फत के इम्तहानों से पुरे जहाँ को डर लगता है
इश्क़ के फलसफे लिखे है दिल के हर सफो पे पर
सुर्ख सयाही को उड़ेलने में सबको डर लगता है
खुश हूँ मैं आज खुदगर्ज़ बनके,
उल्फत प्यार को बदनाम करके,
डर का नाम नहीं हैं,
हर पल पाना , हर पल खोना
थोड़ा थोड़ा हर पल जीना
अय्याशी के घुट पीना
क्या कहूँ...... अब डर को भी डर लगता है।
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