Monday, January 9, 2012

पानी हूँ मैं



तुने जो छोड़ा अधूरा है
पुराने पन्नो की वोह कहानी हूँ मैं....
सिर्फ जिस्म को ही नहीं तेरे पर
तेरे रूह को भिगोने वाला पानी हु मैं......

कभी कम्बल के पीछे से झांकती नज़रें तेरी
उन तीखे नजरो का कभी शिकार था मैं ...
कम्बल के पीछे से अभी भी चलते तीर है वोह
जिन तीरों से होता बीमार था मैं ......
रुका नहीं हूँ आज भी ....तेरे प्यार की रवानी हूँ मैं
सिर्फ जिस्म को ही नहीं तेरे पर
तेरे रूह को भिगोने वाला पानी हूँ मैं ......

सफ़ेद ओधनी की चांदनी तेरी मुझे
नहलाती थे रात भर कुछ इस तरह
की हो कितनी भी सर्दी पर फिरसे
भीगने को तैयार था मैं .......
तेरे फूल जैसे नाज़ुक हाथों के बंधन में
हर वक़्त गिरफ्तार था मैं .....
तेरे रस भरे अधरों के बीच फासी कहानी हूँ मैं
सिर्फ जिस्म को ही नहीं तेरे पर
तेरे रूह को भिगोने वाला पानी हूँ मैं

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